हम नदियों के बारे में जब बात करते हैं तब एक नदी का उल्लेख जरूर आता है. ये नदी प्रयागराज के संगम में मिलने वाली नदियों में से एक है. जिसका नाम है सरस्वती नदी. अब जब इस नदी का नाम आता है तो आपने लोगों को ये भी कहते सुना होगा कि ये नदी अदृश्य है. तो आइए आज हम आपको बताते हैं कि वो कौन सी जगह है जहां सरस्वती नदी अदृश्य हो जाती है. उत्तराखंड के पवित्र बद्रीनाथ धाम से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है माणा गांव. जिसे भारत का अंतिम गांव भी कहा जाता है. ये गांव न केवल भौगोलिक दृष्टि से विशेष है, बल्कि धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से भी इसका अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है.

माणा गांव में स्थित भीम पुल वह स्थान है जहां एक अलौकिक दृश्य देखने को मिलता है. यहां सरस्वती नदी जिनको हम भारतीय मां सरस्वती कहते हैं, केवल कुछ ही पलों के लिए प्रकट होती हैं और फिर अचानक भूमिगत हो जाती हैं. इसे देवी सरस्वती की लीला माना जाता है. यानी ये नदी दृश्य है. लेकिन आगे ये कहीं नहीं दिखती. यही कारण है कि प्रयागराज के संगम में ये नदी अदृश्य रहती है. माना जाता है कि यह वही अदृश्य मां सरस्वती हैं जो प्राचीन काल में वेदों, ज्ञान और संगीत की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजी जाती थीं.

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भीम पुल अपने आप में एक चमत्कार है. मान्यता है कि जब पांडव स्वर्गारोहण के लिए इस रास्ते से जा रहे थे, तब भीम ने द्रौपदी के लिए विशाल पत्थर रखकर इस पुल का निर्माण किया था. यही वह पुण्यभूमि है जहां महामुनि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की थी और भगवान गणेश ने उसे लिपिबद्ध किया था. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी स्थान पर गणेश जी ने बिना रुके लिखने का वचन लिया था और व्यास जी ने शर्त रखी थी कि पहले अर्थ समझे बिना वे कुछ नहीं लिखेंगे.

यह स्थान श्रद्धा, रहस्य और पौराणिक इतिहास का अद्भुत संगम है. आज भी हजारों श्रद्धालु यहां आकर देवी सरस्वती की एक झलक पाने की आकांक्षा में भीम पुल के पास आते हैं. जहां जल की गर्जना के साथ नदी क्षणभर के लिए दर्शन देती है और फिर मौन होकर धरती के गर्भ में लुप्त हो जाती है.