
राग सरकार
सरकार चारपाई की तरह होती है, जिसका एक पाया भी दरक गया या टूट गया तो बाकी तीन का कोई औचित्य नहीं रह जाता. लड़खड़ा कर गिरना तय है. सूबे की सरकार में चार पाये हैं, जो रह-रह कर लड़खड़ा जाते हैं. कोई पाया अपनी धुन पर है, तो कोई अपनी. सुर मिल नहीं पा रहा है. ‘राग सरकार’ नाम का यह राग बीच-बीच में बेसुरा हो जाता है. कोई राग ठाट, समय, स्वर, आरोह, अवरोह, वादी स्वर, संवादी स्वर और भाव से मिलकर बनता है. ‘राग सरकार’ में बाहर से देखने पर यह सब गुण दिखते हैं, बावजूद इसके ‘राग सरकार’ की समझ रखने वाले हैरान हैं कि सरकार के चार पायों के सुर आपस में मिल क्यों नहीं रहे हैं? विश्लेषणकर्ता कहते हैं कि दिखाए जाने और वास्तविक होने के बीच यही एक बड़ा फर्क है. यह एक तरह का इल्यूजन (भ्रम) है, जो देखने और अनुभव करने में असली लगते हैं, लेकिन असलियत वैसी नहीं होती, जैसी होनी चाहिए. इल्यूजन भी दो तरह के होते हैं. एक ऑप्टिकल इल्यूजन, जिसमें दो लाइनें बराबर लंबाई की होती है, लेकिन एक बड़ी और दूसरी छोटी दिखती है. दूसरा इल्यूजन है, काग्निटिव इल्यूजन जिसे आप मानसिक भ्रम भी कह सकते हैं. इसका सीधा मतलब है कि दिमाग किसी चीज को गलत समझने लगता है, जैसे कि अंधेरे में रस्सी को कोई सांप समझ ले. ‘राग सरकार’ में यह दोनों बातें हैं. सरकार की ऊपरी ताकतों के बीच अपनी-अपनी लाइनों को समझने का फेर है. दूसरी बात यह भी है कि यदि कोई ताकत अपने अधीनस्थ ताकत को रस्सी का सहारा दे तो उसे सांप समझ लिया जाता है. शायद इसलिए ही हेरारकी जैसी व्यवस्था बनाई गई थी, जिसमें व्यक्ति को पद, महत्व और अधिकार के अनुसार क्रमबद्ध किया गया था. हेरारकी अब भी है, लेकिन पर्दे के पीछे इसे मानता कौन है? अब आप सरकार के उन चार पायों को ढूंढने में दिमाग खपा सकते हैं कि किनके-किनके सुर बेसुरे हो गए हैं.
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बेलगाम विधायक
‘पावर सेंटर’ में हमने एक दफे यह लिखा था कि सूबे की सरकार के ज्यादातर विधायक ओटीपी यानी वन टाइम पासवर्ड जैसे साबित होंगे. यदि भूले भटके पार्टी टिकट दे भी दे, तो जनता औंधे मुंह पटक देगी. विधायकों की करतूत जनता खुली आंखों से देख रही है. उत्तरी छत्तीसगढ़ के इलाके में पूर्ववर्ती सरकार के एक मंत्री के विरूद्ध शौर्य और पराक्रम का तमगा लगाकर सीना फुलाए घूमने वाले एक युवक को जनता ने बड़ी उम्मीदों से विधायक बनाया था, अब वही जनता उसकी शानो-शौकत देख अपने फैसले पर आंसू बहा रही है. विधायक का गाड़ी प्रेम उन्हें रास नहीं आ रहा. डेढ़ साल की सरकार में विधायक ने तीन बड़ी गाड़ियां खरीद ली है. तीनों गाड़ियां काले रंग की है. विधायक महोदय जब इस पर सवार होकर गुजरते हैं, तो लोग कहते हैं कि उनकी करतूते इतनी उजली है कि उसे छिपाने के लिए उन्हें काली गाड़ियों का सहारा लेना पड़ता है. खैर, कौन जानता था कि कभी गांव की पगडंडियों में मोटर साइकिल से धूल उड़ाने वाले को यूं अचानक विधायकी मिल जाएगी और उसका कमाया गया शौर्य राजनीति की चमक-दमक के आगे घुटनों के बल बैठ जाएगा. इधर मैदानी इलाके के एक दूसरे विधायक की करतूत भी संभाले नहीं संभल रही. सामाजिक राजनीति ने उन्हें मेनस्ट्रीम की राजनीति में धकेल दिया. विधायक बन गए. सत्ता का सुख देख लिया. आंखें चौंधिया गई. काला चश्मा लगाए काली फॉर्च्यूनर में घूम वह विधायकी का आनंद ले रहे हैं. आनंद लेते-लेते कब उनका पैर फिसल जाए कोई नहीं जानता. पहले भी फिसल चुके हैं, लेकिन लोगों ने उन्हें बचा लिया था. इन विधायकों को यह समझना चाहिए कि काली गाड़ी ने कभी किसी का काला चरित्र नहीं छिपाया है? विधायक अपने इलाके में सरकार होते हैं. साख पर सवाल उठने लगे, इससे पहले जरूरी है कि ऐसे विधायकों की क्लास लगाई जाए.
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फट पड़े मंत्री
पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री की मौजूदगी में हुए एक कार्यक्रम में सूबे के एक सीनियर मंत्री तमतमा गए. मंच पर ही उनके गुस्से का बम फूट पड़ा. विस्फोट इतना तीव्र था कि केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री समेत सभी मंचासीन वीआईपी अचंभित हो उठे. मंत्री का गुस्सा अश्लील गालियों की शक्ल में कलेक्टर पर निकला. मंत्री के फट पड़ने की वजह बेहद मामूली थी. अतिथियों के स्वागत क्रम में उनका नाम बाद में पुकारा गया था. बात छोटी थी, लेकिन बड़ी बन गई. चर्चा में आ गई. जो हुआ, ठीक नहीं हुआ. मंत्री के गुस्से की अपनी वजह हो सकती है, मगर कलेक्टर पर सार्वजनिक टिप्पणी उचित नहीं मानी जा सकती. कलेक्टर जिले का प्रशासनिक मुखिया होता है. कम से कम मंत्री महोदय को कलेक्टर की साख की चिंता कर लेनी चाहिए थी. यकीनन उनकी कुर्सी ऊंची हो सकती है, मगर भाषा का स्तर नीचे नहीं गिरना चाहिए.
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कूलर दिला दें…
शराब के नशे में एक पूरी सरकार डूब गई. पूर्व सरकार में शराब मंत्री रहे नेता जी जेल में है. जांच एजेंसियों का रडार उन तक घूमा और पकड़ में आ गए. बीते 5 महीनों से वह जेल की हवा खा रहे हैं. जब जेल दाखिल हुए थे, तब ठंड का मौसम था. अब गर्मी बढ़ गई है. गर्म हवा उन्हें परेशान कर रही है. गर्म हवा से शराब का नशा उतर गया है. पूर्व मंत्री के करीबी इस दौड़-भाग में हैं कि एसी न सही, एक अदद कूलर का इंतजाम हो जाए, जिससे उन्हें गर्मी से थोड़ी राहत मिल सके. कूलर के इंतजाम की सारी कोशिशें नाकाम साबित हो रही है. पिछले दिनों पूर्व मंत्री के एक करीबी अपने कुछ परिचितों को इस उम्मीद से फोन मिला रहे थे कि कोई तो होगा जो कूलर का इंतजाम करा सके. ‘पॉवर सेंटर’ के इस स्तंभकार के एक बेहद करीबी शख्स के पास ऐसा ही फोन आया. उस शख्स की संवेदना इतनी है कि बुरे कर्म वालों की भी तकलीफ देख उनकी आंखों से दो बूंद आंसू गिर जाए, मगर वह भी क्या करते? सिवाए हाथ मलने के अलावा वह कुछ न कर सके. जवाब में उन्होंने सिर्फ इतना कहा, ‘यह जेल है भाई साहब. यहां मौसम का इलाज नहीं, सिर्फ सजा मिलती है’. कहीं और होते, तब की स्थिति दूसरी होती. कूलर ही क्या, किसी को कह कर एसी का बंदोबस्त करा आते. बहरहाल, हंसने खेलने वाले मंत्री का यह हाल हो सकता है, तो कुछ भी हो सकता है.
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दो टूक
राजस्व से जुड़ी शिकायतों पर सरकार ने आंख तरेरनी शुरू कर दी है. कलेक्टर्स कॉन्फ्रेंस के दौरान भी मुख्यमंत्री ने कमिश्नरों और कलेक्टरों को राजस्व मामलों की शिकायतों पर घुड़की दी थी, लेकिन सारी की सारी घुड़की सिर से ऊपर निकल गई. अब जब मुख्यमंत्री सुशासन तिहार में सीधे जमीन पर जाकर निगरानी कर रहे है, तब सबका कच्चा चिट्ठा सामने आ रहा है. पिछले दिनों मुख्यमंत्री राजनांदगांव में प्रशासनिक कामकाज की समीक्षा कर रहे थे, तब मालूम पड़ा कि वहां भी हाल बेहाल है, सो नाराज होकर उन्होंने राज्य भर के कमिश्नरों और कलेक्टरों के लिए फरमान जारी कर दिया. मुख्यमंत्री ने दो टूक कह दिया कि अब से कमिश्नर और कलेक्टर ब्लाक स्तर तक नियमित दौरा करें, रात बिताएं, राजस्व मामलों की सुनवाई के लिए नियमित कोर्ट लगाएं. विशेष परिस्थिति में ही कोर्ट रद्द करें. राजस्व अधिकारियों का कैलेंडर बनाए. जाहिर है सरकार अब समझ रही है कि राजस्व मामले सरकार की साख पर सबसे ज्यादा चोट करते हैं. समय रहते इसका इलाज नहीं ढूंढा गया, तो आगे चलकर दिक्कत हो सकती है. ऐसे तो दिक्कत दूर होने से रही, सख्ती ही इसका इलाज है. सरकार अब सख्ती बरत रही है.