गृह मंत्रालय (एमएचए) ने बांग्लादेश और म्यांमार से आए संदिग्ध अवैध प्रवासियों की पहचान और उनके दस्तावेजों की जांच के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 30 दिनों की समय सीमा निर्धारित की है. मंत्रालय के निर्देशों के अनुसार, यदि इस अवधि के भीतर प्रवासियों के दस्तावेजों की पुष्टि नहीं होती है, तो उन्हें देश से निर्वासित कर दिया जाएगा.

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गृह मंत्रालय द्वारा इस महीने जारी किए गए निर्देशों में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अवैध प्रवासियों की पहचान, जांच और निर्वासन की प्रक्रिया शुरू करने के लिए अपने वैधानिक अधिकारों का उपयोग करने का निर्देश दिया गया है. इसके साथ ही, सभी राज्यों को जिला स्तर पर पर्याप्त हिरासत केंद्र स्थापित करने के लिए कहा गया है, जहां संदिग्ध प्रवासियों को निर्वासन की प्रक्रिया पूरी होने तक रखा जाएगा. यह कदम केंद्र सरकार की उस नीति का हिस्सा है, जिसके अंतर्गत बांग्लादेश और म्यांमार से आए अवैध प्रवासियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जा रही है.

क्या-क्या हैं निर्देश?

गृह मंत्रालय के अनुसार, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को बांग्लादेशी नागरिकों और रोहिंग्या प्रवासियों का रिकॉर्ड रखना अनिवार्य होगा, जिन्हें सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और तटरक्षक बल द्वारा निर्वासन के लिए सौंपा जाता है. इसके साथ ही, हर महीने की 15 तारीख को इस संबंध में केंद्र सरकार को रिपोर्ट प्रस्तुत करना आवश्यक होगा. मंत्रालय ने ब्यूरो ऑफ इमिग्रेशन को निर्देशित किया है कि निर्वासित व्यक्तियों की सूची एक सार्वजनिक पोर्टल पर उपलब्ध कराई जाए. यह जानकारी आधार नंबर, मतदाता पहचान पत्र और पासपोर्ट जारी करने से रोकने के लिए यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई), निर्वाचन आयोग और विदेश मंत्रालय के साथ साझा की जाएगी. यदि अवैध प्रवासियों के पास पहले से ऐसे दस्तावेज मौजूद हैं, तो उन्हें निष्क्रिय कर दिया जाएगा.

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सीमा सुरक्षा बल और असम राइफल्स को निर्देश

गृह मंत्रालय ने बांग्लादेश और म्यांमार से सटी भारतीय सीमाओं की सुरक्षा के लिए सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और असम राइफल्स के महानिदेशकों को नए निर्देश जारी किए हैं. एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, पहले अवैध प्रवासियों को वापस भेजने की प्रक्रिया में कोई निश्चित समय सीमा नहीं थी, जिससे अन्य राज्यों से सत्यापन रिपोर्ट प्राप्त करने में कई बार महीनों लग जाते थे. नए निर्देशों के माध्यम से इस प्रक्रिया को तेज और सुव्यवस्थित करने का प्रयास किया गया है.

राज्यों में कार्रवाई शुरू

गृह मंत्रालय के निर्देशों के अनुपालन में कई राज्यों ने अवैध प्रवासियों की पहचान और हिरासत की प्रक्रिया आरंभ कर दी है. गुजरात में सूरत और अहमदाबाद में चलाए गए तलाशी अभियानों के दौरान लगभग 6,500 संदिग्ध प्रवासियों को हिरासत में लिया गया. इसी प्रकार, राजस्थान ने हाल ही में 148 अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को विशेष विमान से पश्चिम बंगाल भेजा, जहां उनकी स्वदेश वापसी की प्रक्रिया शुरू की जाएगी.

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झारखंड ने अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या प्रवासियों की पहचान और निर्वासन के लिए एक राज्यव्यापी अभियान की शुरुआत की है. गृह मंत्रालय ने इस संदर्भ में एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की है, जिसमें जिला स्तर पर बायोमेट्रिक डेटा एकत्र करने और उसकी जांच करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है.

‘पुश बैक’ की प्रक्रिया

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने जानकारी दी है कि बांग्लादेश सीमा पर ‘पुश बैक’ प्रक्रिया को असम सरकार ने औपचारिक रूप दे दिया है. यह अवैध प्रवासियों से निपटने का एक वैकल्पिक उपाय है, जो पारंपरिक कानूनी प्रक्रियाओं से भिन्न है. हाल ही में, कई मामलों में बांग्लादेश और म्यांमार से आए व्यक्तियों को उनकी मूल सीमाओं में वापस ‘धकेल’ दिया गया है.

हालांकि, इस प्रक्रिया पर कुछ विवाद भी उत्पन्न हुए हैं. इस सप्ताह सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि दिल्ली में हिरासत में लिए गए 38 रोहिंग्या शरणार्थियों को बलात म्यांमार भेजा गया. लेकिन कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि याचिका में इन आरोपों को समर्थन देने के लिए कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया.

भारत 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन और इसके 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप देश में शरणार्थियों के लिए कोई राष्ट्रीय नीति या कानून नहीं है. गृह मंत्रालय के अनुसार, बिना वैध यात्रा दस्तावेजों के भारत में प्रवेश करने वाले विदेशी नागरिकों को अवैध प्रवासी माना जाता है.