संपूर्ण ब्रह्मांड में जिनका नाम बल, भक्ति और पराक्रम का प्रतीक है, वो हैं भगवान हनुमान. जिनके बल और बुद्धि का कोई पार नहीं, जिनके सामने देवता भी नतमस्तक हो जाते हैं, ऐसे बाहुबली हनुमान जी को भी एक बार पराजय का सामना करना पड़ा था और यह पराजय किसी सामान्य योद्धा के हाथों नहीं, बल्कि महान योगी मछिंद्रनाथ के हाथों हुई.

मछिंद्रनाथ कौन थे?

मछिंद्रनाथ (या मत्स्येंद्रनाथ), नाथ संप्रदाय के प्रमुख सिद्ध गुरु माने जाते हैं. वे गोरखनाथ के गुरु थे. मछिंद्रनाथ को अष्टसिद्धियों के स्वामी, तंत्र-विद्या और योग के महान ज्ञाता के रूप में माना जाता है.

ऐसे शुरू हुआ युद्ध!

यह कथा नाथ संप्रदाय की लोकपरंपराओं में प्रसिद्ध है. नाथ योगियों के आदि सिद्ध थे, उन्होंने तप, तंत्र और योगशक्ति के माध्यम से अपार सिद्धियाँ प्राप्त कर ली थीं. जब उन्होंने अपनी तांत्रिक शक्तियों से स्वर्ग और देवताओं के कार्यों में हस्तक्षेप करना शुरू किया तो देवगण चिंतित हो उठे और सहायता के लिए हनुमान जी को बुलाया. हनुमान जी ने मछिंद्रनाथ से सामना किया, लेकिन यह युद्ध सामान्य नहीं था.

यह बल और तंत्र, शक्ति और चेतना, भक्ति और योग के बीच का द्वंद्व था. मछिंद्रनाथ ने अपने योगबल से हनुमान जी को वश में कर लिया और प्रतीकात्मक रूप से उन्हें पराजित कर दिया और बाद में हनुमान जी ने अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी थी. यह प्रसंग हमें यह सिखाता है कि बल के साथ साथ बुद्धि, विनम्रता और आत्मज्ञान भी आवश्यक हैं और यही सच्ची विजय है.