Ganga Dussehra: जब 60000 राजकुमारों की आत्मा के लिए धरती पर उतरी थीं मां गंगा?
गंगा, यह सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि तप, त्याग और अध्यात्म की प्रतीक है. यही वजह है कि हिंदू धर्म में ये सबसे पूज्यनीय है.
गंगा अवतरण की कथा जो आज भी पितृ ऋण और मोक्ष के दर्शन के साकार करती है.
एक समय की बात है अयोध्या के महान राजा सगर, जिनकी दो रानियां थीं, ने जब अश्वमेध यज्ञ आरंभ किया, तब कौन जानता था कि वह यज्ञ 60000 प्राणों का प्रश्न बन जाएगा.
राजा सगर के एक पुत्र असमंजस, जो प्रारंभ में क्रूरता का प्रतीक था, जीवन के उत्तरार्ध में वैराग्य धारण कर सच्चे सुधार की मिसाल बना.
लेकिन इस कहानी की असली शुरुआत तब हुई जब इंद्र ने राजा सगर के यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया और उसे पाताल लोक में कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया.
सगर के 60000 पुत्रों ने घोड़े की खोज में धरती को खोद डाला, जिससे चारों ओर सागर बन गए, जिनका नाम आज भी 'सागर' इन्हीं के कारण है.
लेकिन जैसे ही वे कपिल मुनि तक पहुंचे, अज्ञानवश उन पर आक्रमण कर बैठे. मुनि की दृष्टि खुलते ही वे सभी भस्म हो गए.
पंचांग अनुसार 5 जून 2025 को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाएगा. कहते हैं कि इसी दिन भगीरथ मां गंगा को पाताल लोक तक ले गए, जहां उन्होंने अपने पितरों की राख पर गंगा जल प्रवाहित किया.
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