Lalluram Desk. ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी को मनाई जाने वाली धूमावती जयंती का तंत्र साधना में विशेष स्थान है. दस महाविद्याओं में से एक देवी धूमावती को विधवा देवी के रूप में जाना जाता है. वे जीवन की कटु सच्चाइयों, त्याग, वैराग्य और गहन आत्मज्ञान की प्रतीक हैं. इस बार धूमावती जयंती को मनाई जाएगी

तंत्र साधकों के लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह साधना, सिद्धि और आत्मबल की प्राप्ति का अत्यंत शुभ अवसर होता है. इस दिन देवी की विशेष कृपा से अदृश्य बाधाओं, शत्रु दोषों और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति पाई जा सकती है.

वहीं, आम व्यक्ति भी इस दिन कुछ सरल उपायों के माध्यम से देवी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है. जैसे—सरसों के तेल का दीप जलाकर “ॐ धूं धूमावत्यै नमः” मंत्र का जप, काले तिल का दान, तथा जरूरतमंद विधवा महिला को वस्त्र या अन्न का दान करना. यह उपाय जीवन की दरिद्रता, रोग, और दुखों को दूर करने में सहायक होते हैं.

भारत में माता के प्रमुख मंदिर

वाराणसी (काशी), उत्तर प्रदेश
यह सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख धूमावती मंदिर है.काशी के विख्यात कमाच्छा देवी मंदिर परिसर में.यहां धूमावती देवी की उपासना तांत्रिक परंपरा के अनुसार होती है. साधकों के लिए यह मंदिर विशेष रूप से सिद्धि प्राप्ति का केंद्र माना जाता है.

सिवालिक पर्वतमाला, उत्तराखंड
कुछ गुप्त तांत्रिक परंपराओं में धूमावती माता के मंदिर हिमालय क्षेत्र में होने का उल्लेख है.यह स्थान विशेष साधकों को ही ज्ञात होते हैं और आम दर्शनार्थियों के लिए खुले नहीं होते.

गया और मुंगेर, बिहार
तंत्र साधना की परंपराओं के लिए प्रसिद्ध इस क्षेत्र में भी धूमावती माता के कुछ पूजास्थल हैं, हालांकि ये अधिकतर गुप्त तांत्रिक पीठों के रूप में जाने जाते हैं.

कामख्या, असम
कामख्या देवी परिसर में धूमावती माता की एक उपस्थिति मानी जाती है, यद्यपि यहां उनका अलग मंदिर नहीं है, लेकिन तांत्रिक साधना में उन्हें प्रमुख रूप से पूजा जाता है.