विक्रम मिश्र, लखनऊ. 104 साल के लखन सरोज (lakhan saroj) को अदालत ने बाइज्जत बरी कर दिया है. 48 साल पहले हुए विवाद में लखन सरोज (lakhan saroj) को पुलिस ने गिरफ्तार किया था. उसके बाद तारीख पर तारीख चलती रही और लखन के शरीर पर झुर्रियों का मकड़जाल गहराता गया.1977 में लखन सरोज का विवाद पड़ोस में रहने वाले उनके पट्टीदार प्रभु सरोज के साथ हुआ था. जिसमे प्रभु सरोज की मृत्यु हो गई थी उसी केस में लखन को सेशन कोर्ट ने आरोपी मानते हुए उम्र कैद की सजा सुनाकर जेल भेज दिया था. जिसके बाद वे अल्लाहाबाद अब प्रयागराज की नैनी जेल और कौशाम्बी की मंझनपुर जेल में अपनी सजा काटते रहे.

लखन की पांच बेटियां है. जिनकी शादियां हो चुकी है. लखन ने बताया कि अब वो अपनी बेटियों के घर पर ही रहते हैं. उनके बेटे ने लखन को छुड़ाने का कोई प्रयास नहीं किया. लखन जब जमानत पर आते तो वकील करते और केस की पैरवी करते थे. बाद में थक हारकर लखन ने पैरवी करना छोड़ दिया. लेकिन उनकी बेटियों ने हार नहीं मानी और वकील के जरिए केस में साक्ष्य देते रहे.

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रिहाई के फैसले पर फफक पड़े लखन

लखन बताते हैं कि सेशन कोर्ट के फैसले को लेकर वो उच्च न्यायालय तक गए लेकिन सिर्फ तारीख और वकीलों की मोटी फीस ही उन्हें याद आती है. जब विवाद हुआ था तब वो घर पर भी नहीं थे. लेकिन फिर भी उन्हें आरोपी बनाया गया. उनके साथ 3 लोग और आरोपी बनाए गए थे. लेकिन सबकी जमानत बहुत पहले हो चुकी थी. लखन के मुताबिक 1977 में प्रभु के परिवार के लोग लाठी डंडों के साथ नशे धुत होकर उनके घर पर धावा बोल दिए थे. जिसमें की प्रभु भी साथ थे. इसी विवाद में प्रभु की लाठी लगने से चोट लगी थी जिसमें बाद में उनकी मौत हो गई.

लखन बनाम राज्य

केस चलता रहा तरीख पड़ती रही, बाद में प्रभु के परिवार वाले ने केस में पैरवी करना बंद कर दिए तो केस लखन बनाम राज्य बन गया. इसके बाद लखन की बेटियों ने पैरवी करनी शुरू की फिर जाकर अदालत ने उन्हें बाइज्जत बरी किया. लखन अब 104 साल के हैं और बीमार रहते हैं बड़ी मुश्किल से खड़े हो पाते हैं.