Lalluram Desk. केदारनाथ धाम की यात्रा शुरू हो गई. बाबा केदारनाथ के दर्शन करने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा है. बाबा की एक झलक पाने के लिए कोई पैदल, तो कोई खच्चर पर. पहाड़ियों के ऊपर स्थित बाबा के दरबार तक पहुंचना इतना आसान नहीं है. जवानों के लिए यह सफर कठिन होता है, तो फिर बुजुर्गों की बात करना बेमायने है. लेकिन बुजुर्ग श्रद्धालुओं के भी श्रद्धा, आस्था और भक्ति के सफर को पूरा कराने में मदद करते हैं नेपाल के पुरुष…

केदारनाथ धाम की यात्रा पर गए लल्लूराम डॉट कॉम के डिजिटल स्टेट हेड प्रतीक चौहान कहते हैं कि केदारनाथ धाम तक पहुंचने के लिए गौरीकुंड से ऊपर चढ़ाई चढ़नी पड़ती है. 16 किलोमीटर के इस सफर को शब्दों में बयां करना मुश्किल है. डेढ़े-मेढ़े रास्तों से पहाड़ी की चढ़ाई में बुजुर्ग और अधिक वजन के लोगों के लिए पालकी या डंडी ही एकमात्र सहारा है.

यात्रा मुश्किल होने के बाद भी लोगों की बाबा के दर्शन की उत्कट इच्छा का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि गत दिवस 24 मई को पांच लाख से अधिक श्रद्धालु बाबा केदार के दर्शन कर चुके हैं. शारीरिक तौर पर अक्षम श्रद्धालुओं को बाबा के दर्शन कराने के लिए सौ-दो सौ, पांच सौ नहीं बल्कि करीबन 18 से 20 हजार पालकी गौरीकुंड और केदारनाथ धाम में लगे हैं.

एक पालकी को उठाने के लिए चार लोग लगते हैं, इस लिहाज से 55 से 60 हजार नेपाली मूल के लोग इस कार्य में लगे हैं. केवल नेपाली पुरुष ही नहीं बल्कि नेपाली महिलाएं भी सेवा के कार्य में जुटी हैं. बस उनका काम पालकी की जगह केदारनाथ तक सामान लाने-ले जाने का होता है. इस तरह से नेपाली परिवार श्रद्धा के इस सफर में श्रद्धालुओं की मदद करता है.

केदारनाथ की यात्रा पर निकले बुजुर्ग श्रद्धालु केतन भाई बताते हैं कि यात्रा इतनी आसान नहीं है, कल्पनाओं के परे यह एक बहुत ही दुरुह सफर है, लेकिन नेपालियों की मदद से बड़ी उम्र के लोग भी बिना कठिनाई के पहाड़ पर पहुंच जाते हैं. अगर ये नेपाली यहां न हों तो बहुत से लोग यात्रा से वंचित रह जाएंगे.

एक अन्य श्रद्धालु सागर शर्मा बताते हैं कि पालकी की सवारी आम आदमी के लिहाज से खर्चीली है, लेकिन जिस तरह से नेपाली लोग पहाड़ के टेढ़े-मेढ़े रास्तों से होकर चढ़ाई करते हैं, उससे सफर की कठिनाई का बिना थके बाबा के दर्शन के साथ नेपालियों के प्रति मन में श्रद्धाभाव पैदा हो जाता है.

यमनोत्री की और अधिक कठिन चढ़ाई

उत्तराखंड स्थित चारों धाम की यात्रा आसान नहीं है. केदारनाथ धाम से ज्यादा कठिन यमनोत्री की यात्रा है. यहां दूरी कम है, लेकिन चढ़ाई सीधी होने की वजह से ज्यादा दुष्कर हो जाता है. लेकिन यहां भी नेपाली उम्रदराज श्रद्धालुओं की मदद के लिए आगे आते हैं. पालकी पर बुजुर्ग अथवा अशक्त श्रद्धालुओं को पहाड़ की सीधी चढ़ाई पर बखूबी ले जाते हैं. यह कहें कि इस साल अब तक ढाई लाख श्रद्धालुओं की देवी यमुना के दर्शन में नेपालियों का बड़ा योगदान है.

* सभी तस्वीरें प्रतीक चौहान द्वारा खींची गई…