PM मोदी (PM Modi) ने 25 मई 2025 को अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के काटेझरी गांव (Katejhari village in Gadchiroli) का उल्लेख किया, जहां पहली बार बस सेवा शुरू हुई है. यह जिला अब भारत के इस्पात उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला है और यहां दुनिया के सबसे बड़े इस्पात संयंत्र के निर्माण की योजना चल रही है.

गढ़चिरौली में स्थित JSW समूह ने फरवरी 2025 में 25 मिलियन टन क्षमता वाले इस्पात संयंत्र की घोषणा की है, जो विश्व का सबसे बड़ा होगा. इस परियोजना में करीब 1 लाख करोड़ रुपये का निवेश होगा और इसे सात वर्षों में पूरा किया जाएगा, जिसमें पहला चरण चार वर्षों में समाप्त होगा.

गढ़चिरौली का लौह अयस्क और खनन इतिहास

गढ़चिरौली में लौह अयस्क की खोज 1900 के दशक की शुरुआत में जमशेदजी टाटा ने की थी, लेकिन कोकिंग कोल की कमी के कारण तब जमशेदपुर को प्राथमिकता मिली. माओवादी प्रभावित क्षेत्र होने के कारण खनन गतिविधियां लम्बे समय तक बाधित रहीं. लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है.

लगभग पांच साल पहले, लॉयड मेटल्स एंड एनर्जी लिमिटेड (LMEL) ने यहाँ खनन की शुरुआत की. LMEL के पास लगभग 1 अरब टन लौह अयस्क भंडार है. इसके अलावा JSW और सूरजगढ़ इस्पात जैसी कंपनियां भी इस क्षेत्र में निवेश कर रही हैं.

गढ़चिरौली में खनन की वर्तमान स्थिति

गढ़चिरौली अब खनन का एक बड़ा केंद्र बन चुका है. हाल ही में LMEL को 23 मई 2025 को पर्यावरण मंत्रालय से 937 हेक्टेयर क्षेत्र में आयरन ओर संयंत्र स्थापित करने की वन मंजूरी मिली है.

JSW का 25 मिलियन टन क्षमता वाला संयंत्र इस क्षेत्र की इस्पात उत्पादन क्षमता को काफी बढ़ाएगा. सूरजगढ़ इस्पात का 2 मिलियन टन का संयंत्र भी काम कर रहा है. इन परियोजनाओं के पूरा होने पर गढ़चिरौली की कुल इस्पात क्षमता लगभग 33 मिलियन टन तक पहुंच जाएगी, जो भारत के लिए बड़ी उपलब्धि होगी.

आर्थिक लाभ और रोजगार

गढ़चिरौली के उच्च गुणवत्ता वाले लौह अयस्क (लगभग 64% रियलाइजेशन) की वजह से भारत आयात पर अपनी निर्भरता कम कर सकेगा. यह भारत को दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा लौह अयस्क उत्पादक बनने में मदद करेगा.

2024-25 में भारत का लौह अयस्क उत्पादन 182.6 मिलियन टन तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 3% अधिक है. गढ़चिरौली में खनन से हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा और यह क्षेत्र देश की आर्थिक प्रगति में योगदान देगा.

इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास

LMEL ने 1 मई 2025 को 85 किलोमीटर लंबी लौह अयस्क स्लरी पाइपलाइन शुरू की है, जो सूरजगढ़ से कोन्सारी गांव तक प्रतिदिन 30,000 टन अयस्क पहुंचाएगी. जून 2025 तक यहां पेलेट-मेकिंग यूनिट भी शुरू होने वाली है.

कौशल विकास के लिए कदम

खनन उद्योग के लिए कुशल श्रमिकों की कमी को देखते हुए गोंदवाना विश्वविद्यालय ने 7 मई 2025 को ऑस्ट्रेलिया के कर्टिन विश्वविद्यालय के साथ समझौता किया है. जुलाई 2025 से तीन साल का डिप्लोमा कोर्स शुरू होगा, जिसे GU, कर्टिन और LMEL ने मिलकर डिजाइन किया है. इसका उद्देश्य स्थानीय युवाओं को खनन क्षेत्र में प्रशिक्षित करना है.

भविष्य की संभावनाएं

यदि सुरक्षा और पर्यावरण की चुनौतियों का समाधान हो जाता है, तो गढ़चिरौली भारत के प्रमुख इस्पात केंद्रों में से एक बन जाएगा. JSW का संयंत्र और अन्य परियोजनाएं इस क्षेत्र की इस्पात उत्पादन क्षमता को 33 मिलियन टन तक बढ़ाने में सक्षम होंगी. यह भारत को 2028 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह में भी सहायक साबित होगा.