मुख्य न्यायाधीश भूषण रामाकृष्ण गवई (BR Gawai)ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की थी कि जजों को लंबित मामलों के लिए दोषी ठहराया जाता है, जबकि असल में वकील काम करने में रुचि नहीं रखते. इस पर सोमवार, 26 मई, 2025 को चर्चा हुई, जिसमें दो वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने CJI की बात को अदालत में दोहराया और कहा कि इस संदर्भ में उनकी बातों के कारण ही वे अदालत में उपस्थित हुए हैं.

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हर वर्ष मई के अंतिम सप्ताह से लेकर जुलाई के पहले सप्ताह तक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश समर वेकेशन पर रहते हैं. हाल ही में  सीजेआई बी आर गवई की बेंच के समक्ष एक मामला प्रस्तुत हुआ, जिसमें वकील ने अनुरोध किया कि इस मुकदमे की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की छुट्टियों के बाद की जाए. इस पर सीजेआई ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि वेकेशन से पहले 5 दिन बेंच कार्यरत रहेगी, तो फिर वेकेशन के बाद की तारीख की आवश्यकता क्यों है. उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि वकील काम करने में रुचि नहीं रखते और लंबित मामलों के लिए न्यायाधीशों को दोषी ठहराया जाता है.

सीजेआई गवई की टिप्पणी का उल्लेख करते हुए सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी और सिद्धार्थ दवे ने नाराजगी व्यक्त की, जैसा कि बार एंड बेंच की रिपोर्ट में बताया गया है. यह प्रतिक्रिया जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच के समक्ष दी गई. मुकुल रोहतगी उस समय किसी अन्य मामले की सुनवाई के लिए कोर्ट में उपस्थित थे. जब उन्होंने बेंच के सामने अपनी बात रखी, तो जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस सूर्यकांत ने उनसे पूछा कि वे वेकेशन में कोर्ट में क्यों हैं. रोहतगी ने उत्तर दिया कि सीजेआई गवई ने कहा है कि पहले पांच दिन बेंच सुनवाई के लिए बैठेंगी, इसलिए सभी को कोर्ट आना आवश्यक है, जो आंशिक रूप से कार्य सप्ताह के रूप में माना जाएगा.

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दूसरे वकील सिद्धार्थ दवे ने सीजेआई गवई की टिप्पणी का उल्लेख करते हुए अपनी नाराजगी व्यक्त की और कहा कि हमारी आलोचना की गई है, इसलिए हम अदालत में आए हैं. इस पर जस्टिस विक्रम नाथ ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि आप सीजेआई की अदालत में जाइए, क्योंकि वह रोस्टर के मास्टर हैं, लेकिन मैं अपनी अदालत का मास्टर हूं. जज की इस बात पर सभी लोग हंस पड़े.

जस्टिस विक्रम नाथ ने सुझाव दिया कि कोर्ट में सीनियर एडवोकेट की अनुपस्थिति की पुरानी प्रथा को फिर से लागू किया जाना चाहिए. जस्टिस सूर्यकांत ने इस बात से सहमति जताते हुए कहा कि इसकी आवश्यकता है. बेंच की इस चर्चा को सुनकर दोनों एडवोकेट्स ने खुशी व्यक्त की. कोर्टरूम में मौजूद सभी लोग इस पर जोर से हंस पड़े.