नितिन नामदेव, रायपुर। छत्तीसगढ़ में 2025 रजत जयंती का वर्ष है। चारों ओर हर्ष और उत्कर्ष है। लेकिन इन्हीं सबके बीच उत्कृष्ट खिलाड़ियों का संघर्ष है। गरीबी है… मजबूरी है… दर्द है… जिन्होंने छत्तीसगढ़ को गौरवान्वित किया उनसे सिस्टम ने मुँह फेर लिया… जिन्होंने देश-दुनिया में जीत का परचम लहराया। उन्हें राज्य के सरकारी महकमे ने रुलाया। राष्ट्रीय खिलाड़ियों से बेरोजगारी और गरीबी ने क्या-क्या नहीं कराया। किसी को सब्जीवाला, किसी को चायवाला, किसी को मिस्त्री, तो किसी को रिक्शा चालक बनाया और यह दिखाया कि छत्तीसगढ़ में खिलाड़ियों की दुर्दशा क्या है। 25 साल होने के बाद भी छत्तीसगढ़ में खेलों का भविष्य क्या है? क्या होना चाहिए? इसी की करेंगे आज पड़ताल और पूछेंगे सरकार और सिस्टम से सवाल। आखिर क्यों नहीं मिल रही है उत्कृष्ट खिलाड़ियों को नौकरी? डेढ़ लाख करोड़ बजट वाले राज्य में आखिर क्यों हैं खिलाड़ी बदहाल?

लल्लूराम डॉट कॉम संवाददाता नितिन नामदेव की स्पेशल रिपोर्ट…

छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में छत्तीसगढ़ को गौरवान्वित करने वाले प्रदेशभर के सैकड़ों खिलाड़ी पिछले 7-8 वर्षों से बेरोजगार घूम रहे हैं। नौबत ये आ पड़ी है कि अपनी प्रतिभा के दम पर मेडल जीतने वाले खिलाड़ी नौकरी के अभाव में चाय ठेला, ई-रिक्शा और सब्जी बेचने को मजबूर हैं।

लल्लूराम डॉट कॉम की टीम ने उत्कृष्ट खिलाड़ियों से एक्सक्लूसिव बातचीत कर पाया है कि उत्कृष्ट खिलाड़ी कितनी परेशानी में अपना दो वक्त का गुजारा कर रहे हैं। हमारी टीम ने एक-एक खिलाड़ी के काम और घर में जाकर हर एक पहलू पर बहुत ही बारीकी से उनसे बातचीत कर यह रिपोर्ट तैयार की है और सभी से उनके दैनिक दिनचर्या के दौरान रुबरु होकर उनकी परेशानियों को देखा है।

केस स्टोरी – 1

शुरुआत जगदीश महानंद से जो एक सॉफ्टबॉल खिलाड़ी हैं। खेल छोड़कर जगदीश अब फॉल सीलिंग का काम करते हैं। लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत करते हुए जगदीश ने कहा कि उन्होंने कोलकाता दत्ता पुलिया सीनियर नेशनल गेम में गोल्ड हासिल किया। दूसरी बार नागपुर गए थे। वहां गोल्ड मेडल मिला और तीसरी बार जंगल रेड्डी आंध्रप्रदेश गए थे। जगदीश ने बताया कि घर में कमाने वाला कोई नहीं जिसके चलते खेल की दुनिया से दूर होकर फॉल सीलिंग करना पड़ रहा है। सरकार ने कहा था नौकरी मिलेगी लेकिन उम्र बढ़ती गई और नौकरी अब तक नहीं मिली।

केस स्टोरी – 2

सॉफ्टबॉल खिलाड़ी नरेश निर्मलकर चाय बेचने को मजबूर हैं। नरेश सुबह जिम में ट्रेनर का काम करते हैं और शाम में चाय बेचने का काम करते हैं। नरेश ने बातचीत करते हुए कहा कि घर की आर्थिक स्थिति बहुत ही ज्यादा खराब है। उनके पिता का 3 महीने पहले ही निधन हुआ है। इसके बाद पूरे घर की जिम्मेदारी नरेश के ऊपर ही आ गई। चाय बेचकर नरेश अपने और अपने परिवार का गुजारा कर रहे हैं।

नरेश की स्थिति जानने के लिए हम नरेश के घर पहुंचे, जहां पाया कि नरेश की माँ दूसरों के कपड़े प्रेस (स्त्री) करके घर चलाती है। घर में नरेश का छोटा भाई और बूढ़ी बीमार दादी है, जिसका पूरा खर्चा नरेश वहन करता है।

अपने घर के हालात पर बात करते हुए नरेश की माँ के आँसू छलक पड़े। नरेश की माँ ने बताया कि बचपन से ही नरेश खेलों में काफी सक्रिय है। नरेश के पिता का सपना था की उसे सरकारी नौकरी में देखें, लेकिन उनके पिता का सपना टूट गया। नरेश को अब तक नौकरी नहीं मिली और उनके पिता 3 महीने पहले इस दुनिया से चल बसे हैं।

बरहाल, इन आँसुओं को बह जाने दीजिए… शायद कुछ दर्द कम हो सके… सरकार शायद इसे देखकर पिघल जाए… शायद कुछ रहम हो सके… वैसे रहम कहना ठीक भी नहीं… क्योंकि यहाँ सवाल हक का है… अधिकार का है… वही अधिकार जिसकी लड़ाई नरेश लड़ रहा है… राष्ट्रीय स्तर के सॉफ्टबॉल खिलाड़ी नरेश सरकारी योजना का लाभ पाने वर्षों से भटक रहा है… न जाने मसला कहाँ लटक रहा है।

केस स्टडी 3

कहानी यहीं नहीं रुकती, एक कहानी ऐसी भी है जिसे देखकर आपका दिल पसीज जाएगा। हम बात कर रहे हैं इंटरनेशनल सॉफ्टबॉल के प्लेयर निखिल नायक की जो रायपुर के कुकुर बेड़ा स्थित एक छोटी सी बस्ती में रहते हैं। निखिल भारत के अन्य राज्यों के साथ-साथ हांगकांग और कनाडा में भी इंटरनेशनल गेम खेल चुके हैं, जिसके लिए उन्हें कई इंटरनेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया। मजबूरी ये है कि निखिल ई-रिक्शा चलाने को मजबूर हैं।

वहीं मैडल, शील्ड और प्रशस्तिपत्र से उनका भरा था। निखिल की मां ने बातचीत करते हुए बताया कि निखिल को खेल में काफी ज्यादा रुचि है। उसके सपने को पूरा करने के लिए निखिल की मां ने घर और अपने सोने-चांदी के गहने गिरवी रखकर कई लाख रुपए खर्च करके विदेश भेजा। और निखिल ने मैडल और शील्ड प्राप्त किया। आज सरकारी नौकरी नहीं मिलने पर निखिल सवारी ई-रिक्शा चलाकर गुजारा कर रहा है। सरकार से अपील करते हैं कि निखिल को नौकरी दी जाए।

इन तस्वीरों को देखकर समझा जा सकता है कि प्रदेश के उत्कृष्ट खिलाड़ियों की क्या दुर्गति हो गई है। ये वही खिलाड़ी हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा के दम पर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतकर प्रदेश को गौरवान्वित किया है। और सरकार ने इनकी प्रतिभा को देखकर उत्कृष्ट खिलाड़ी के रूप में सम्मानित किया है। मगर सरकार की पॉलिसी के आधार पर भी इन उत्कृष्ट खिलाड़ियों को 6 साल बाद भी नौकरी नहीं मिल पाई। दरअसल प्रदेश के सरकारी विभागों के खाली पदों में 2 प्रतिशत पद खिलाड़ियों के लिए आरक्षित हैं। जानकारी के मुताबिक 2007 के बाद करीब 78 खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी मिली है। 2015 के बाद से अब तक एक भी उत्कृष्ट खिलाड़ी को सरकार नौकरी नहीं दे सकी है। लिहाज़ खिलाड़ी अपनी प्रैक्टिस के साथ पेट पालने के लिए ऐसे काम करने को मजबूर हैं। ऐसा नहीं है कि इन खिलाड़ियों ने अपने हक के लिए लड़ाई नहीं लड़ी। कई आंदोलन किए। बावजूद इसका समाधान नहीं निकला। खिलाड़ियों को यह भी डर है कि आवाज उठाएंगे तो उनका करियर बर्बाद हो जाएगा। तो कुछ खिलाड़ी जल्द नौकरी नहीं मिलने पर आंदोलन की राह पर जाने की तैयारी कर रहे हैं।

ये हमारे छत्तीसगढ़ के गौरव हैं… ये वो हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा का दुनिया में लोहा मनवाया है। ये वो हैं जिन्होंने राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पदक दिलाया है। ये खिलाड़ी आम नहीं… बेहद खास हैं… लेकिन क्या करें… सरकारी सिस्टम के आगे हताश हैं… निराश हैं… हताशा और निराशा से भरे राज्य में सैकड़ों सच्ची कहानियाँ हैं। इन कहानियों के कई संघर्षशील नायक हैं, जिनके हिस्से आज गरीबी है… बेरोजगारी है… मजबूरी है… दर्द है… लेकिन सरकार आप दर्द का दवा बन सकते हैं… चाहे तो चुटकियों में घाव भर सकते हैं… आप चाहे तो कुछ भी कर सकते हैं… इसीलिए आपको हमारी ये पड़ताल देखनी चाहिए… आपको जाना चाहिए राज्य के उत्कृष्ट खिलाड़ियों की दशा क्या है? छत्तीसगढ़ में खेलों की दिशा क्या है?

निखिल, नरेश, जगदीश जैसे सैकड़ों खिलाड़ी हैं, जिनकी ऐसी कहानियाँ हैं, जहाँ उत्कृष्ट प्रदर्शन के बाद दुर्गति ही दुर्गति है। जाने खेल विभाग की ये कैसी नीति है? वैसे नीति उत्कृष्ट खिलाड़ियों को नौकरी देने की है। इस पर साल-दर-साल अमल होता भी रहा है। लेकिन जाने ऐसा क्या हुआ सिस्टम में कि 2015 के बाद से अभी तक किसी भी उत्कृष्ट खिलाड़ी को सरकारी नौकरी नहीं दी गई है। जबकि खिलाड़ियों के लिए 2 प्रतिशत पद सभी विभागों में आरक्षित रहता है।

सरकारी विभागों में 2 प्रतिशत पद आरक्षित

  • करीब 200 उत्कृष्ट खिलाड़ियों की होनी है घोषणा!
  • करीब 78 खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी मिली
  • उत्कृष्ट खिलाड़ियों को नौकरी देने बनी है कमेटी
  • मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय हैं कमेटी के अध्यक्ष
  • 6 वर्षों से भटक रहे खिलाड़ी
  • आज तक नहीं मिली नौकरी

खेल मंत्री टंक राम वर्मा सहित कई मंत्रियों को दिया ज्ञापन

इस पूरे मामले में खेल विशेषज्ञ जशवंत क्लॉडियस ने कहा यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है। उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार अपनी तरफ से नीतियां बनाती है और उन्हें लागू करने के लिए जिम्मेदारी होती है। उत्कृष्ट खिलाड़ी को मौका नहीं दिया जा रहा है। यह सबसे बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण बात है। खिलाड़ियों के अभिभावक चाहते हैं कि उनका बेटा या बेटी अच्छा खेले और आगे बढ़े और अपने पैरों पर खड़ा हो सके, लेकिन यह दुर्भाग्य की बात है कि खिलाड़ियों को नौकरी नहीं मिली है।

क्या कहते हैं खेल मंत्री टंक राम वर्मा

विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने कांग्रेस सरकार में उत्कृष्ट खिलाड़ियों को नौकरी नहीं देने का मुद्दा खूब उठाया था। लेकिन सरकार में आने के बाद सरकार ने खेल अलंकरण समारोह तो शुरू किया मगर खिलाड़ियों को नौकरी देने का वादा 18 महीने बाद भी पूरा नहीं हो सका है। हालांकि सरकार ने इसके लिए कमेटी भी बनाई है। कमेटी की कई बैठकों के बाद भी नौकरी देने पर निर्णय नहीं हो सका है। इस बारे में मंत्री टंक राम वर्मा ने कहा कि कमेटी इस पर जल्द निर्णय लेगी। उन्होंने खिलाड़ियों की दुर्दशा के लिए पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।

टंक राम वर्मा, खेल मंत्री

बता दें कि ओलंपिक गेम्स, कॉमनवेल्थ, एशियन गेम्स और नेशनल गेम्स के खेलों में मेडल और स्थान भी प्राप्त करने वाले 200 से ज्यादा खिलाड़ी भटक रहे हैं। इसके लिए उन्होंने पिछले कई सालों से खेल विभाग से लेकर मंत्री के बंगले के घेराव तक का संघर्ष किया है। उत्कृष्ट खिलाड़ी नौकरी के इंतजार में ओवरएज तक हो भी गए हैं। बताया जा रहा है इन्हीं 200 खिलाड़ियों में से कई खिलाड़ी दूसरे राज्य में पलायन तक कर चुके हैं। कुछ चाय बेचकर गुजारा कर रहे हैं। वहीं कई खिलाड़ी आज भी नौकरी की प्रतीक्षा में हैं। अब देखना होगा सरकार इस पर कब तक निर्णय लेती है।

खिलाड़ियों ने एक उम्मीद और विश्वास बांधी हुई हैं कि सुशासन में खिलाड़ी के हिस्से भी आएगा। भविष्य में शायद फिर कोई छत्तीसगढ़ को गौरव दिलाने वाला सब्जी बेचते, चाय बेचते, मजदूरी करते नजर नहीं आएगा।

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