रायपुर. साध्वी प्रज्ञा की चर्चा पूरे देश में है. वे बीजेपी से भोपाल लोकसभा सीट की उम्मीदवार हैं. चुनाव में उतरने से पहले वो मालेगांव में बम धमाके के आरोपी के रुप में सुर्खियों में आई थी. इस मामले में प्रज्ञा ज़मानत पर रिहा हैं. भोपाल चुनाव में बीजेपी साध्वी प्रज्ञा को एक पीड़ित हिंदु महिला के रुप में पेश करने की कोशिश कर रही है. जबकि कांग्रेस समेत दूसरी विपक्षी पार्टियां उन्हें आतंकवाद के आरोपी के रुप में प्रोजेक्ट कर रही हैं. इन्हीं दोनों छवियों के बीच में प्रज्ञा चुनाव लड़ रही हैं. 
 
इस बीच प्रज्ञा को लेकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रज्ञा के चाकूबाज़ होने का बयान दे दिया . भूपेश बघेल का दावा है कि प्रज्ञा ने यहां 2000-2001 में रहते हुए शैलेंद्र देवांगन को चाकू मार दिया था. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि उन्हें ये जानकारी शैलेंद्र देवांगन से मिली. लेकिन इस बयान के बाद भी शैलेंद्र मीडिया के सामने नहीं आए. इस बीच बीजेपी के प्रभारी महामंत्री अनिल जैन ने सीएम भूपेश बघेल पर सच को ट्विस्ट करने का आरोप लगाकर कहा कि प्रज्ञा ने चाकू छेड़खानी के विरोध में किया था.
जैन के इस बयान के बाद प्रज्ञा के अतीत का सच जानने के लिए लल्लूराम डॉट कॉम की टीम बिलाईगढ़ जा पहुंची. यहां पता चला कि शैलेंद्र यहां का छोटा सा व्यापारी है. वो अपने बीवी-बच्चों के साथ गुज़र-बसर कर रहा है. यहां के लोगों ने इस बात की तस्दीक की- 2001 यहां चाकूबाज़ी की घटना हुई थी. जिसे प्रज्ञा सिंह ठाकुर नाम की महिला ने अंजाम दिया था.
कस्बे के लोगों को प्रज्ञा का नाम, उसका चेहरा, उसका गुस्सा सब याद है. लोगों ने बताया कि 2001 में प्रज्ञा अपने जीजा और दीदी के साथ रहती थी. वो बेहद हिम्मती थी. मोटरसाईकिल चलाती थी. बाल यूं ही छोटे थे. छोटे से कस्बे में टीशर्ट और जींस पहनकर घुमती थी. उस वक्त इतनी आधुनिक इस कस्बे में दूसरा कोई नहीं था.
लेकिन बड़ा सवाल था कि ये वही प्रज्ञा सिंह ठाकुर है या कोई और. जब ये सवाल हमने पूछा तो लोगों ने बताया कि प्रज्ञा वही साध्वी प्रज्ञा है. जिनका वास्ता 2001 की चाकूबाज़ी की घटना से पड़ा था, वो मालेगांव मामले में प्रज्ञा को देखते ही पहचान गए थे. लोगों ने बताया कि इसकी पुष्टि साध्वी के जीजा ने भी कर दी थी. प्रज्ञा के जीजा-जिन्हें सब भदौरिया जी के नाम से जानते हैं, वेयर हाऊस में स्टोर मैनेजर थे- एक केस के सिलसिले में 2 साल पहले तक बिलाईगढ़ आते रहे. उन्होंने भी इस बात की पुष्टि की ये साध्वी पज्ञा ही उनकी साली है.
शैलेंद्र की तलाश में लल्लूराम डॉट कॉम के राजनीतिक संपादक शैलेंद्र देवांगन के घर पहुंचे. वहां पता चला कि शैलेंद्र के चाचा का कुछ दिन पहले देहांत हो गया था. जिसके किसी कार्यक्रम के सिलसिले में शैलेंद्र घाट गए थे. शैलेंद्र की पत्नी पूर्व में पार्षद रह चुकी हैं.
थोड़ी देर बाद जब शैलेंद्र पहुंचा तो उससे बात हुई. शैलेंद्र ने मुख्यमंत्री द्वारा कही गई बात की पुष्टि की. उन्होंने बताया कि एक दिन प्रज्ञा आई और किसी बात पर चाकू मारा. उन्होंने पीछे हटकर जान बचाई. लेकिन चाकू उनके पेट के दाहिनी ओर लगी. चोट ज़्यादा गहरा नहीं था. चाकू ज़्यादा अंदर नहीं गई. इसके बाद वहां अफरा तफरी मच गई.
शैलेंद्र से बातचीत करने के बाद हम शैलेंद के चाचा और कांग्रेस के नेता द्वारिका देवांगन के पास गए. द्वारिका देवांगन उस वक्त बिलाईगढ़ के सरपंच थे. देवांगन ने बताया कि वो मौके पर मौजूद नहीं थे. लेकिन जब उनके भतीजे ने फोन करके बताया कि एक लड़की ने उन पर चाकू से हमला कर दिया है तो वे दोड़ते-दौड़ते थाने पहुंचे. जहां शहर के तमाम लोग मौजूद थे. वहां प्रज्ञा के जीजा भदौरिया जी भी पहुंच चुके थे. शहर के सबसे प्रतिष्ठित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परमेश्वर दयाल मिश्रा, जिन्हें सब सम्मान से बप्पा जी कहते थे- वहां पहुंचकर सुलह कराने की कोशिश कर रहे थे
बप्पा जी की बेटी उषा किरण मिश्र का कहना है कि अपने पिता की इस बात से वो नाराज़ थीं. वे चाहती थीं कि सरेआम चाकू चलाने वाली प्रज्ञा के खिलाफ एफआईआर हो. लेकिन पिताजी ने प्रज्ञा के महिला होने का हवाला देकर उन्हें डांट दिया. इसके बाद दोनों पक्षों के बीच राजीनामा हो गया. द्वारिका देवांगन का कहना है कि बप्पा जी की कोई भी बात काटी नहीं जा सकती थी. उनकी बात सबके लिए आदेश जैसा होता था.
शैलेंद्र का कहना है कि इस घटना के बाद वो बेहद खौफ में था. उषाकिरण ने बताया कि ये घटना हुई कैसे. बकौल उषा किरण का कहना है कि शैलेंद्र ने प्रज्ञा की भतीजी से पूछ लिया था ये तेरी कौन है. इसी से प्रज्ञा भड़क गई. वो प्रज्ञा को एक घमंडी और गुस्सैल लड़की के रुप में याद करती हैं. उषाकिरण ने बताया कि उनकी बड़ी दीदी आजकल प्रज्ञा के साथ चुनाव में है. उषाकिरण ने बताया कि दो साल पहले तक उनकी दीदी से अक्सर उनकी बात होती रहती थी. उनकी दीदी बिलासपुर में रहती थी. लेकिन उनके जीजा की मौत के बाद उस परिवार से उनका ताल्लुक टूट गया है.
साध्वी के साथ संपर्क में रहने वाले दूसरे लोग बताते हैं कि इसके बाद प्रज्ञा सिंह ठाकुर भोपाल चली गई. वहां वो पहले एबीवीपी फिर आरएसएस के साथ जुड़ी. इसी दौरान उन्होंने दीक्षा ले ली. प्रज्ञा का नाम फिर से सुर्खियों में मालेगांव धमाके में आया. फिर भोपाल से चुनाव लड़ने पर आया.