नई दिल्ली. पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि यूपीए के कार्यकाल में कई सर्जिकल स्ट्राइक्स हुई थी, लेकिन हमने कभी इनका इस्तेमाल वोट के लिए नहीं किया. यह हिंदुस्तान के विरोधियों को माकूल जवाब देने की यूपीए सुरक्षा रणनीति का हिस्सा थीं. लगातार दो बार देश के प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह ने एक निजी अखबार द्वारा किये गए साक्षात्कार के दौरान सवालों के बेबाक जवाब दिए.

प्रश्न: आपने परमाणु हथियारों पर हमेशा चुप रहने को प्राथमिकता दी. जबकि अभी प्रधानमंत्री ने कहा कि, वो सिर्फ दीवाली के लिए नहीं रखी हैं. क्या आपको लगता है कि यह जनता की भावना के ज्यादा करीब है?

जवाब: हमारी परमाणु क्षमताएं हमारी ताकत और हमारी सुरक्षा का जरिया है. इसकी नींव पंडित नेहरू ने रखी। इंदिरा गांधी ने पोखरण में 1974 को पहला न्यूक्लियर परीक्षण किया. तब से अब तक, कांग्रेस की हर सरकार ने हमारे सैन्य, नागरिक व परमाणु कार्यक्रम को शक्तिशाली बनाने और आगे ले जाने का काम किया है. इसी का परिणाम है की हमारी परमाणु क्षमता को 13 दिन की वाजपेयी सरकार ने जांचा था. नाभिकीय निरस्त्रीकरण और न्यूक्लियर ताकत का शांतिपूर्ण इस्तेमाल हमारे देश की समय के साथ सार्थक सिद्ध हुई जिम्मेदार नीतियां हैं.

आपको याद होगा कि देश के लिए नाभिकीय ऊर्जा निकालने हेतु हमने कांग्रेस-UPA सरकार के अस्तित्व को खतरे में डाला था. पूरे देश को पाखंडी भाजपा का वो अविश्वास प्रस्ताव याद होगा जो भारत को न्यूक्लियर ऊर्जा में ताकतवर और स्वतंत्र बनाने के रास्ते मे रोड़ा बना था. तब नरेन्द्र मोदी और भाजपा ने इसका विरोध क्यों किया था? फिर भी हमने कभी इसका राजनीतिक इस्तेमाल नही किया. ये हमारा, हमारी नाभिकीय क्षमता के प्रति संवेदनशीलता और जिम्मेदारी को दर्शाता है. किसी भी प्रधान मंत्री ने हमारी नाभिकीय क्षमताओं को मुद्दा बनाकर उसका राजनैतिक इस्तेमाल नही किया है. ये हार को सामने देखकर छाई निराशा दर्शाता है.

प्रश्न: क्या आप सहमत हैं कि भाजपा ने सुरक्षा और आतंक को चुनावी मुद्दा बनाने में सफलता पा ली है और कांग्रेस के रोजगार और ग्रामीण संकट के मुद्दे इस चुनाव में पीछे छूट गए हैं?

जवाब: सिर्फ बातों की शेर, मोदी सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर बुरी तरह असफल है. पिछले पांच सालों में केवल जम्मू कश्मीर में होने वाले आतंकी हमले 176% बढ़े हैं. पाकिस्तान द्वारा सीमा पर सीजफायर उल्लंघन की घटनाएं 1000% बढ़ी हैं. हमारी सुरक्षा पर 17 बड़े आतंकी हमले हुए हैं। रक्षा पर खर्च को जीडीपी के प्रतिशत में निकाले तो पिछले 57 वर्षों में न्यूनतम है। क्या इससे इस सरकार की प्राथमिकताएं पता नही चलती?

कोई कैसे कह सकता है कि रोजगार या ग्रामीण संकट या आजीविका की समस्या को आंतरिक सुरक्षा से बदला जा सकता है? सच्चाई यह है कि मोदीजी ने दो करोड़ सालाना रोजगार का वादा किया था, पर उनकी नोटबन्दी और दोषपूर्ण जीएसटी जैसी विन्ध्वंसकारी नीतियों ने युवाओं से चार करोड़ रोजगार के अवसर छीन लिए हैं. बेरोजगारी 6.1% वृद्धि के साथ पिछले 45 सालों में सबसे ज्यादा है. कांग्रेस-यूपीए सरकार के समय 2011-12 मे ये 2.2% थी [NSSO रिपोर्ट, 2017-18] नोटबन्दी जैसी आपदा और दोषपूर्ण GST से भारत का विकास चरमरा गया है, जिसे कांग्रेस-UPA ने सफलतापूर्वक बनाया था. सिर्फ नोटबन्दी की भयंकर असफलता ने GDP को वापिस 2% पर पहुँचा दिया और भारत की अर्थव्यवस्था को 3 लाख करोड़ का नुकसान पहुचाया. इससे असंगठित क्षेत्र के हज़ारों लघु और मध्यम वर्गीय उद्योग धन्धे प्रभावित हुए हैं। देशवासियों के मेहनत की गढ़ी कमाई जमापूंजी रातोरात स्वाहा हो गई। क्या सरकार को आजीविका के इन मुद्दों पर जवाबदेह नही होना चाहिए?

ग्रामीण संकट ने भारत के किसानों की सबसे ज्यादा कमर तोड़ी। भाजपा ने लागत मूल्य पर 50% लाभ देने का वायदा किया था पर अब तक घोषित समर्थन मूल्य भी किसानों को नही मिला है। इसमे कोई आश्चर्य नही की 10 साल के UPA सरकार के समय की जो औसत कृषि विकास दर 4.2% थी, अब गिरकर 2.9% हो गई है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना भी किसानों की बजाय निजी बीमा कम्पनियों की मददगार साबित हो रही है. तेजी से नीचे जाता कृषि निर्यात और बढ़ते कृषि आधारित सामान के आयात से भी किसानों की मुश्किलें बढ़ी हैं. क्या भारत के किसान भारत का हिस्सा नही हैं?

प्रश्न: अब जबकि हम 2019 के चुनावों के अंतिम चरण में जा रहे हैं, भाजपा नरेंद्र मोदी को भारत के सबसे मजबूत प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट कर रही है, जिसने पुलवामा जैसे आतंकी हमलों के समय निर्णयात्मक जवाब दिया, वो कहते हैं कि मोदी एकमात्र हैं जो भारतीय सीमाओं की सुरक्षा कर सकते हैं। उनकी तुलना बांग्लादेश को बनाने में इंदिरा गांधी की भूमिका से की जा रही है. आप इसे कैसे देखते हैं?

जवाब: भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर कोई भी समझौता स्वीकार नहीं है. हमारे सबसे सुरक्षित राष्ट्रीय राजमार्ग पर हुए पुलवामा आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 बहादुर जवान शहीद हुए. यह इंटेलिजेंस और राष्ट्रीय सुरक्षा की बड़ी नाकामी है. घटना के बाद यह यह तथ्य सामने आया कि सीआरपीएफ और बीएसएफ द्वारा जवानों को एयरलिफ्ट करने की अनुमति मांगी गई थी जिसे मोदी सरकार ने अस्वीकार कर दिया.

सरकार ने जम्मू-कश्मीर पुलिस के इंटेलिजेंस द्वारा दिये गए आईडी हमले के इनपुट को भी नजरअंदाज कर दिया और आतंकी संगठनों द्वारा जारी वीडियो चेतावनी की तरफ से भी मुँह फेर लिया. पिछले पांच सालों में पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों ने पम्पोर, उरी, पठानकोट, गुरदासपुर, सुनजवां इत्यादि भारतीय मिलिट्री कैम्प को लगातार निशाना बनाया है और अमरनाथ यात्रा पर भी हमला किया है.

पठानकोट एयरबेस हमले की जांच करने हेतु पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई को आमंत्रण देना मोदी सरकार की सबसे बड़ी कूटनीतिक भूल है. इससे हमारा सशस्त्र बल हतोत्साहित हुआ. पिछले 5 सालों में अवसरवादी बीजेपी-पीडीपी गठबन्धन और पाकिस्तान के लिए स्पष्ट नीति न होने के कारण जम्मू कश्मीर के अंदरूनी हालत काफी खराब हैं.

आपको याद दिला दूँ कि भारतीय सशस्त्र बल को बाहरी धमकियों से निपटने की खुली छूट हमेशा मिली हुई थी। हमारे समय मे भी कई सर्जिकल स्ट्राइक्स हुई. हमारे लिए सैन्य अभियान के मायने सामरिक निवारण और भारत-विरोधी ताकतों को मुँह-तोड़ जवाब देना होता था, न कि वोट जुटाने के तरीके. पिछले 70 सालों में सत्ता में बैठी किसी सरकार को हमारी सेना की वीरता के ओट लेकर अपनी कमियां नही छिपानी पड़ीं। सेना का ऐसा राजनीतिकरण करना शर्मनाक और अस्वीकार्य है. ये सब कवायदें केवल मोदी सरकार की आर्थिक, रोजगार, ग्रामीण संकट, MSME और अनोपचारिक क्षेत्र में नाकाबिलेमाफी विफलताओं से ध्यान हटाने के लिए की जा रही हैं.

जहां तक 1971 के बांग्लादेश स्वातंत्र्य युद्ध में श्रीमती गांधी की राजनीतिक भूमिका की बात है, या फिर 1965 की लड़ाई में स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री की राजनीतिक भूमिका की बात है, ये एक मजबूत और निर्णायक नेतृत्व के उदाहरण हैं. इनकी महानता की तुलना वर्तमान सरकार के ओछेपन से नहीं की जा सकती. इन नेताओं को इनकी लोकतांत्रिक भूमिका और क्षेत्र की भौगोलिक रेखाएं बदलने की अगुवाई करने के लिए जाना जाता है न कि युद्ध जीतने में सेना का क्रेडिट लेने के लिए.

प्रश्न: मोदी समर्थक आपकी सरकार पर यह कहते हुए हमला करते हैं कि 26/11 के बाद आपका जवाब मजबूत नही था. पीछे देखते हुए, क्या आपको लगता है कि ऐसा और कुछ था जो आप कर सकते थे?

जवाब: तथ्यों के अभाव में इतिहास की आलोचना कोई भी कर सकता है. मैं इस बात से असहमत हूँ कि हम दंडात्मक सैन्य कार्यवाही करने को तैयार नहीं थे. लेकिन, अलग-अलग मसलों पर अलग तरीके से जवाब दिया जाता है. तब हमारा जवाब था कि कूटनीतिक तौर पर पाकिस्तान को आतंक का अड्डा साबित करते हुए उसे अलग-थलग करे और अंतरराष्ट्रीय मंच को आतंकवादियो के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने हेतु एकत्रित करे. हम इसमे सफल भी हुए. मुम्बई हमले के 14 दिनों के भीतर चीन ने हाफिज सईद को संयुक्त राष्ट्र संघ के 1267 sanctions समिति के अंतर्गत वैश्विक दहशतगर्द माना. UPA की ही कोशिशें ही थी कि अमेरिका ने मुम्बई हमले के ज़िम्मेदार और पाकिस्तान स्थित लश्करे ताइबा के शीर्ष आतंकी पर 10 मिलियन डॉलर का इनाम रखा. हमले के एक और मास्टरमाइंड, डेविड हेडली को कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान ही 2013 में 35 साल की सज़ा हुई. संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी लश्करे तैयबा के सदस्य मुम्बई हमले के आरोपियों को आतंकवादियों की लिस्ट में डाला हुआ है. इससे लश्करे तैयबा आज प्रभावहीन हो गया है.

हमने लश्कर के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद का मुकाबला करने हेतु प्रभावशाली सहयोग प्राप्त किया है. सऊदी अरब और चीन जैसे देशों ने भी इसमे हमारा सहयोग किया. पाकिस्तान से बाहर छिपे कई आतंकवादियों को पकड़ कर हिंदुस्तान सुपुर्द किया गया. 26/11 का हैंडलर और हरकत-उल-जिहाद अल-इस्लामी चीफ शेख अब्दुल ख्वाजा को कोलोंबो (श्रीलंका) में पकड़कर भारत के हैदराबाद लाया गया, जहां उसे जनवरी 2010 में औपचारिक तौर पर गिरफ्तार किया गया. ज़ैबुद्दीन अंसारी को सऊदी अरब से सुपुर्दगी कराने के बाद दिल्ली एयरपोर्ट में जून 2012 में गिरफ्तार किया गया. 26/11 के बाद कांग्रेस-UPA सरकार ने तटीय सुरक्षा को मजबूत किया और राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधी दस्ते का आइडिया रखा लेकिन तत्कालीन गुजरात मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसका विरोध किया. हमने NATGRID की भी स्थापना की जो देश की सभी सुरक्षा एजेंसियों के डेटाबेस को कलेक्ट कर इंटेलिजेंस का एक पैटर्न बनाता है, जिससे सुरक्षा एजेंसियों को मदद मिल सकती थी लेकिन मोदी सरकार ने NCTC और NATGRID को ठंडे बस्ते में डाल दिया.

प्रश्न: PM ने अपने हालिया साक्षात्कारों में कहा है कि किस तरह उन्होंने PMO में देर रात बैठकर और 3-4 घण्टे सोकर PMO के काम करने के वातावरण को बदला है. उनके समर्थक भी उनके एक शहर से दूसरे शहर एक ही दिन में कैंपेनिंग करने की तारीफ करते हैं. आपको क्या लगता है? ऐसा करने से नेतृत्वक्षमता प्रभावी होती है?

जवाब: PMO एक बेहद ज़िम्मेदारी का कार्य है. कोई भी प्रधानमंत्री, जिसने बिना थके काम किया है, ने देश पर कोई एहसान नही किया है. ये देश कि सेवा करने वाले का दायित्व है. सभी प्रधान मंत्रियों ने एक अनुशासन, गरिमा, और कार्य संस्कृति का पालन किया है जो इस पद हेतु आवश्यक है. इस तरह की पब्लिसिटी करके आप अपने पद की गरिमा को छोटा करते हैं.

प्रश्न: भाजपा का एक नारा है hard work vs harvard आप खुद oxbridge से हैं और आपकी कैबिनेट में कई ivy league वाले रहे हैं। आप ऐसी तुलना पर क्या कहना चाहते हैं?

जवाब: क्या भाजपा को लगता है कि वो लोग जो हार्वर्ड या आइआइटी-आईआईएम या देश विदेश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में पढ़ते हैं, वो मेहनत नही करते? शिक्षा से ज्ञान और विवेक के दरवाजे खुलते हैं. शिक्षा से चरित्र का निर्माण होता है और सच का मूल्य समझ आता है. शिक्षा से ही जीवन के विभिन्न सामान्य पृष्ठभूमि से आये लोग अग्रणी पदों तक पहुँचे हैं.

क्या सावित्रीबाई फुले, डॉ अंबेडकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, होमी जहांगीर भाभा, हरगोबिंद खुराना, डॉ आर के नारायणन, डॉ अब्दुल कलाम और ऐसे अनगिनत लोग जिन्होंने भारत को आगे बढ़ने की राह दिखाई है, के योगदान को कम करके आंका जा सकता है? उन्होंने कभी अपनी तकलीफ को सामने रखकर उसका फायदा उठाने की कोशिश नही की. डॉ अंबेडकर गरीबी और सामाजिक अन्याय के बावजूद स्कालरशिप में अमेरिका गए और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से शिक्षा प्राप्त की. क्या इनके योगदान पर हम सवाल उठाएंगे?

यदि तुलना करनी ही है, तो देश की प्रति आपकी सेवा की करनी चाहिए. गरीबी हटाने ले लिए आपकी प्रतिबद्धता, कृषि संकट हटाने आपके प्रयास, युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने की आपकी कोशिश, भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की आपकी दृढ़ता. लच्छेदार जुमले भारत की समृद्धि और राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता की जगह नही ले सकते.

प्रश्न: आपके और PM मोदी के बीच यदि कुछ समानता है, तो वह है आप दोनों की पृष्ठभूमि. जहां वो चाय बेचा करते थे, वहीं आप एक ऐसे गांव से पढ़कर निकले, जहां बिजली नहीं थी और आपको काफी दूर चलकर स्कूल जाना होता था. आपने हमेशा कहा कि आप नहीं चाहते ये देश आपकी पृष्ठभूमि पर तरस खाये, पर क्या आपको लगता है कि इस पृष्ठभूमि के कारण जनता आपसे ज्यादा जुड़ाव महसूस करती है?

जवाब: यह हमारे उस संविधान की देन है। संविधान सभी को बराबरी का अवसर देता है. देश की उन्नति और पिछली सरकारों की नीतियों से भी देश मे अवसर बढ़े हैं और सशक्तिकरण हुआ है। मैं आज जो हूँ या मोदी आज जो भी हैं, इसमे भी उसकी भूमिका है.

महत्वपूर्ण ये नहीं कि आप कहाँ से आये हैं? महत्वपूर्ण ये है कि लाखों अन्य को बेहतर भविष्य देने में आपने क्या योगदान दिया? 10 सालों के अपने प्रधानमंत्री के कार्यकाल में हमने मनरेगा, आरटीआई, शिक्षा का अधिकार, वानिकी संरक्षण और खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू किया, जिससे 140 मिलियन लोग गरीबी के चक्र से बाहर आ सकें. जब हम अपने कार्यकाल के अंत मे आते हैं तो यही एक सवाल बचता है कि क्या हमारी साधारण पृष्ठभूमि ने हमे इस काबिल बनाया की हम अपने पीछे दया और सामंजस्य की विरासत छोड़े, न कि विभाजन की! यही एकलौती और असली परीक्षा है.

प्रश्न: क्या एक अर्थशास्त्री के रूप में आपको नही लगता कि NYAY से देश को राजकोषीय धक्का लगेगा?

जवाब: न्यूनतम आय योजना कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की जबरदस्त योजना है, जिसके दो उद्देश्य हैं- गरीबी को हटाना और भारत की रुक चुकी आर्थिक गतिविधियों को फिर से गति देना. nyay में भारत की 20% सबसे गरीब जनता को वार्षिक 72000 रुपये प्रति परिवार दिए जाएंगे. मुझे खुशी है कि इसका लोगो ने स्वागत किया है और यह देश भर में चर्चा का विषय बनी हुई है. आजादी के बाद विभिन्न सरकार द्वारा उठाये गए कदमो से गरीबी 70% से कम होते हुए 22% तक आ गई है. अब अंतिम बची हुई गरीबी को भी खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है. nyay से यह होगा. nyay से अर्थव्यवस्था फिर चल उठेगी जो आज बन्द पड़ी है. जरूरतमंद के हाथ मे पैसा आने से पैसे की गतिविधि बढ़ेगी, जिससे रोजगार बढ़ेगा.

हमने इसका हिसाब लगा लिया है. NYAY अपने सर्वोच्चतम बिंदु पर सकल घरेलू उत्पाद का 1.2-1.5% होगी और हमारी 3 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी ये भार सह सकती है. हम NYAY हेतु मध्यम वर्ग का tax नही बढाएंगे. बल्कि इससे अर्थव्यस्था फिर पटरी पर आएगी. इसे विशेषज्ञों की राय लेकर ही बनाया गया है. जिस तरह हम 1991 में right to work MNREGA लाये थे, उसी तरह कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार 2019 में NYAY लेकर आएगी जो सामाजिक न्याय और विवेकपूर्ण अर्थव्यवस्था में नया अध्याय होगा. मुझे यकीन है कि NYAY के बाद भारत भी गरीबी रहित देशों की श्रेणी में आ जाएगा.

प्रश्न: GST और नोटबन्दी को आप कैसे handle करेंगे?

जवाब: कांग्रेस वर्तमान GST नियमों के बदले GST 2.0 लाएगी, जो वाकई में एक वैल्यू एडेड अप्रत्यक्ष कर होगा, जिसमें सिंगल, स्टैण्डर्ड रेट लगेगा न कि अभी की तरह अलग-अलग दर. कांग्रेस पार्टी द्वारा लाई गई GST करदाताओं द्वारा समझने में और लागू करने में आसान होगी. उससे व्यापार में विकास होगा और रोजगार बढ़ेगा. करदाताओं को अपने व्यापार के लिए साल में 4 आसान तिमाही और एक वार्षिक रिटर्न केवल भरना पड़ेगा. GST कौंसिल एक नीति-निर्णायक निकाय होगी जिसमें कर अर्थशास्त्री, कर नीति विशेषज्ञ इत्यादि शामिल होंगे ताकि राजनीतिक प्रभुत्व कम किया जा सके. उसकी मीटिंग के minutes public को उपलब्ध होंगे.

प्रश्न: यदि राहुल गांधी प्रधान मंत्री बनते हैं, क्या आप उनकी कैबिनेट का हिस्सा बनना चाहेंगे?

जवाब: मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मैंने पिछले 6 दशकों में देश मे विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं दी हैं. मुझे गर्व है कि एक दशक तक मैंने प्रधान मंत्री के रूप में देश का नेतृत्व किया है. अब समय आ गया है कि युवाओं को आगे किया जाए. मुझे राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता और देश के प्रति प्रतिबद्धता पर पूरा भरोसा है. मैं देश की सेवा करने को हमेशा तैयार हूं.

प्रश्न: रघुराम राजन कैसे मंत्री साबित होंगे?

जवाब: रघुराम राजन बेहतरीन अर्थशास्त्रियों में से एक हैं. उनकी विशेषज्ञता का लाभ हमने और वर्तमान सरकार ने भी उठाया है. उनके भविष्य की भूमिका पर बेहतर जवाब वो खुद ही दे सकते हैं.

प्रश्न: प्रियंका गांधी के आने से कांग्रेस में क्या बदलाव देखते हैं?

जवाब: प्रियंका गांधी कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से सहज जुड़ी हुई हैं. उनकी समस्या के मूल पर पकड़ और लोगों का दर्द कम करने की उनकी लगन से उन्हें जनता का प्यार मिलता है. वो कांग्रेस में बहुत आगे जाएंगी. उनको उत्तर प्रदेश में अभी चुनौतीपूर्ण कार्य मिला है. वो प्रतिदिन दौरे करती हैं. कार्यकर्ताओ में उनके आने से उत्साह है. मैं उनके लिए शुभकामना व्यक्त करता हूँ.

हिंदुस्तान टाइम्स से साभार