उमरिया, भोपाल। सुधीर दंडोतिया। वैसे तो पहचान पत्र की जरूरत आपको हर एक छोटे बड़े काम मे पड़ती है।बैंक में खाता खुलवाने जाएं या कोई अन्य काम पर क्या जंगल मे रहने वाले वाइल्ड एनिमल्स को भी भला पहचान पत्र की क्या जरूरत पड़ती है।इसका उत्तर है हा अब जंगल मे रहने वाले वन्यजीवों को भी इसकी जरूरत पड़ने लगी है।सुनकर आश्चर्य होगा लेकिन इन दिनों विश्वप्रसिद्ध बांधवगढ़ टाईगर रिज़र्व में जंगली हाथियों के पहचान पत्र बनाए जा रहे है। यह बात अलग है कि फ़ोटो खिंचवाने के लिए हाथी खुद चलकर नही आ रहे है वल्कि उनकी लोकेशन पर खुद पार्क का अमला जाकर यह काम कर रहा है।बाधवगढ़ टाईगर रिज़र्व में मौजूद सभी वाइल्ड एलिफैंट की यूनिक आईडी बनाई जा रही है।अभी तक 20 हाथियों की आईडी बनाई जा चुकी है।

डिप्टी डायरेक्टर बांधवगढ़ टाईगर रिज़र्व बताते है कि अभी तक हम वाइल्ड एलिफैंट को ट्रैक करने के लिए यह देख रहे थे कि वे किस रुट से आ रहें है।किस किस रुट को फॉलो कर रहे है।इनका मूवमेंट कहा कहा से होता है।गर्मी,बरसात और ठंड में जंगली हाथियों की लोकेशन बदलती रहती है।जिसकी पूरी जानकारी हमने मैप में बना ली है।कुल 40 से 50 हाथियों की यह जानकारी तो हमने पहले बना ली है।अभी तक सिर्फ हम यही जानकारी बनाते थे कि कितने समूह में ये जंगली हाथी कहा कहा रहते है।कितने टस्कर और मखना हाथी अलग अलग रहते है।लेकिन अब हम जैसे टाइगर्स की यूनिक आईडी बना चुके है वैसे ही अब जंगली हाथियों की यूनिक आईडी बनाई जा रही है।

क्यों बनाई जा रही है यूनिक आईडी

डिप्टी डायरेक्टर बांधवगढ़ टाईगर रिज़र्व प्रकाश कुमार वर्मा बताते है कि जंगली हाथियों की यूनिक आई डी बनाने के पीछे का उद्देश्य यह है कि 40 से 50 हाथियों के बीच हर एक जंगली हाथी की व्यक्तिगत पहचान हो सके।इससे हर हाथी के क्षेत्र में भ्रमण की जानकारी एकत्र करने में आसानी होगी।जब किसी भी लोकेशन में  कोई भी कॉन्फ्लिक्ट होगी तो उक्त हाथी की पहचान करना आसान हो जाएगा।जब भी जंगली हाथियों के द्वारा कोई जनहानी की जाती है तो पूरे झुंड के हाथियों को जिनमे 3 से 4 हाथी होते है सभी को पकड़ने के आदेश दे दिए जाते है।

कैसे बनाई जा रही है हाथियों की यूनिक आईडी

डिप्टी डायरेक्टर बांधवगढ़ टाईगर रिज़र्व प्रकाश कुमार वर्मा बताते है कि यूनिक आईडी बनाने के लिए हाथी के दोनों कान की फ़ोटो और सामने से फ़ोटो चाहिए होती है।उक्त काम मे WRCS की टीम के साथ साथ रेंजर और फील्ड स्टाफ लगा हुआ है। साथ ही कैमरा ट्रैप के माध्यम से भी तस्वीरें एकत्र की जा रही है।कैमरा ट्रैप में कई बार हाथियों की अच्छी तस्वीर कैप्चर नही होती है।इसलिए टीम के द्वारा कोशिस की जाती है कि जब हाथियों के ग्रुप की लोकेशन जब बांधवगढ़ में कही मिलती है तो कोशिश की जाती है कि एक -एक हाथी की अलग- अलग तस्वीरों को ले लिया जाए।इस काम के लिए टीम लगी हुई हैं

यूनिक आईडी में किन किन अंगों की ली जाती है फ़ोटो

डिप्टी डायरेक्टर बांधवगढ़ टाईगर रिज़र्व प्रकाश कुमार वर्मा बताते है कि यूनिक आईडी बनाने के दौरान देखा जाता है कि हर हाथी का हेड का साइज अलग-अलग होता है। किसी हाथी का माथा चौड़ा होता है तो किसी हाथी का माथा सकरा होता है। हर जंगली हाथी का कान देखा जाता है कि उसका कान कैसा है कान कटा हुआ है या ज्यादा फोल्ड है या फिर काम फोल्ड है।टस्कर हाथियों के दांत का साइज देखा जाता है।किसी टस्कर के दोनो दांत छोटे बड़े होते है तो किसी टस्कर के दांत टेढ़े होते है।साथ ही हाथियों के हम्प के साइज के आधार पर इनकी आईडी में मार्क किया जा रहा है।अक्सर हाथियों के हम्प प्लेन ,उठे हुए या झुके हुए होते है। जंगली हाथियों की पूछ भी देखी जाती है। कई बार पूछ कटी हुई होती है तो हाथियों  पूछ में बाल होते हैं और हाथियों पूछ में बाल नहीं होते हैं।

बांधवगढ टाईगर रिज़र्व के सभी 9 वनपरिक्षेत्र में जंगली हाथियों के यूनिक आईडी बनाने के लिए टीम लगी हुई है। सभी फॉरेस्ट गार्ड को निर्देश दिए गए हैं कि जैसे ही उनके क्षेत्र में जंगली हाथियों की दस्तक होती है तो वह इसकी सूचना प्रबंधन को देंगे। सूचना प्राप्त होती ही ताला में मौजूद एक केंद्रीय टीम उक्त स्थल पर पहुंच करके यूनिक आईडी बनाने का काम करती है। इस टीम में हमारे रेंज ऑफिसर के साथ-साथ WRCS की टीम मौजूद है। कई बार जंगली हाथियों की फोटो मिल जाती है कई बार नहीं मिलती है। इस काम में रिस्क काफी है।

20 जंगली हाथियों की बन गई यूनिक आईडी

डिप्टी डायरेक्टर बांधवगढ़ टाईगर रिज़र्व प्रकाश कुमार वर्मा बताते है कि अभी तक 20 जंगली हाथियों की यूनिक आईडी बनाई जा चुकी है। 20 से 25 जंगली हाथियों की अभी यूनिक आईडी बनाया जाना बाकी है।

कहा से आए बांधवगढ़ में जंगली हाथी

डिप्टी डायरेक्टर बांधवगढ़ टाईगर रिज़र्व प्रकाश कुमार वर्मा बताते है कि झारखंड और छत्तीसगढ़ के मार्ग से जंगली हाथियों का समूह बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में वर्ष 2018-19 में पहुंचा था। इसके पहले भी एक दो हाथियों का आना-जाना लगा रहता था लेकिन जंगली हाथियों का इस समूह को जब बांधवगढ़ में एक बेहतर बायोडायवर्सिटी मिली तो यह यही बस गए।

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