क्या आपने कभी सोचा है कि कुछ घरों या मंदिरों में देवी की मूर्ति को रात में ढककर क्यों रखा जाता है? या फिर क्यों मां काली, दुर्गा या लक्ष्मी की मूर्तियों को ‘शयन’ कराया जाता है? यह कोई साधारण परंपरा नहीं है, बल्कि शक्ति, संतुलन और सुरक्षा से जुड़ी एक गहरी आध्यात्मिक मान्यता है.
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देवी: शक्ति का मूर्त रूप
हिंदू धर्म में देवी को शक्ति का सजीव प्रतीक माना गया है. विशेष रूप से मां काली, दुर्गा, चामुंडा, भैरवी आदि को रात्रिकाल की शक्तिशाली देवियाँ माना जाता है. ये न केवल रक्षक हैं, बल्कि रात के समय इनकी ऊर्जा अत्यधिक प्रभावशाली और सक्रिय मानी जाती है. इसलिए रात में देवी की मूर्ति को बिना शयन कराए या बिना ढंके छोड़ देना अनुचित माना जाता है. यह परंपरा केवल श्रद्धा का विषय नहीं, बल्कि ऊर्जा-संतुलन से जुड़ी हुई है.
रात्रिकाल और तांत्रिक प्रभाव
तंत्र शास्त्र के अनुसार, रात का समय तामसिक ऊर्जा का होता है. इस समय देवी की खुली मूर्ति, विशेषकर बिना पूजा-पाठ के, ऊर्जा असंतुलन या नकारात्मक शक्तियों को आकर्षित कर सकती है. इसलिए रात्रिकाल में देवी विग्रह को ढंकना या उनका ‘शयन’ कराना आवश्यक माना गया है.
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किन देवी-देवताओं की मूर्तियों को ढकना चाहिए?
परंपरा के अनुसार निम्नलिखित देवी मूर्तियों को रात में ढकना आवश्यक माना जाता है:
- मां काली
- मां दुर्गा
- मां लक्ष्मी
- मां चामुंडा
- मां भैरवी
वहीं, भगवान शिव, श्री गणेश, श्रीराम और श्रीकृष्ण की मूर्तियों को ढकने की आवश्यकता नहीं होती. इनकी पूजा के बाद दीपक बुझा देना पर्याप्त माना जाता है.
क्या मूर्ति घर में रखनी चाहिए?
यदि कोई व्यक्ति नियमित पूजा नहीं कर सकता, तो देवी-देवताओं की मूर्ति रखने के बजाय केवल तस्वीर रखना उचित माना गया है. और अगर मूर्ति रखी गई है, तो प्रतिदिन पूजा न सही, तो कम से कम रात्रिकाल में उसे कपड़े या चादर से ढंकना जरूरी है.
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