शेख आलम, धरमजयगढ़। अस्पताल में इलाज के दौरान एक गर्भवती महिला की डिलीवरी करने के बाद खून की कमी से मौत हो गई. मां की मौत के बाद अस्पताल प्रबंधन ने बच्चे को भूख से तपड़ने दिया उसे एक बूंद दूध तक नहीं पिलाया. जबकि जच्चा बच्चा के तहत अस्पतालों में दूध दिया जाता है और मां के नहीं रहने पर बच्चे को तुरंत दूध पिलाना चाहिए था. मामला रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ सिविल अस्पताल का है.
जानकारी के अनुसार आज सुबह 11 बजे करीब गेरसा गांव से गर्भवती महिला केरवा बाई अपने परिजनों और स्वास्थ्य मितानिन के साथ प्रसव पीड़ा होने पर धरमजयगढ़ के बायसी अस्पताल पहुंची. जहां केरवा बाई ने बच्चे को जन्म दिया, लेकिन कुछ घंटो बाद उसकी हालत बिगड़ने लगी, तो डॉक्टरों ने धरमजयगढ़ सिविल अस्पताल ले जाने की सलाह दे दी. परिजन देरी न करते हुए अस्पताल पहुंचे, लेकिन कुछ देर बाद मां की मौत हो गई. मौत के बाद पता चला की मां के शरीर में सिर्फ 4 ग्राम खून बचा हुआ था, जिसकी वजह से मौत हुई.
महिला की मौत के बाद परिजन सदमें थे. उनका ध्यान महिला की ओर था. बच्चे को ध्यान नहीं दिया गया. लेकिन ऐसे वक्त में अस्पताल प्रबंधन की बड़ी लापरवाही सामने आई. बच्चे को 4 घंटे से ज्यादा समय तक दूध नहीं पिलाया गया. जबकि जननी सुरक्षा योजन के तहत जच्चा बच्चा दोनों के लिए दूध से लेकर सारे प्रोटीन आहार का व्यवस्था रहता है. ऐसे में मितानिन इंदर बाई ने ही अपने पैसे से बाहर दूकान से दूध लाकर बच्चे को पिलाई. ये सब धरमजयगढ़ सिविल अस्पताल प्रबंधन डॉ. एसएस भगत और डॉ लकड़ा के नज़रों के सामने हुआ.
बीएमओ एसएस भगत का कहना है धरमजयगढ़ के सरकारी बायसी हॉस्पिटल में डिलवरी के बाद हमारे यहाँ धरमजयगढ़ सिविल अस्पताल लेकर आए, तो जांच पर पता चला कि महिला के शरीर में 4 ग्राम खून था. जननी सुरक्षा योजना पर उनका कहना है जच्चा बच्चा दोनों को प्रोटीन युक्त आहार अस्पताल में निशुल्क दिया जाता है और हर तरह से देख भाल की जाती है, लेकिन इनका कहना इस केस के बारे में मुझे पता नहीं था ये बोलकर ये पल्ला झाड़ रहे हैं, जबकि बच्चे को दूध तक नहीं मिल पाया और ये इनके आँखों के सामने ये सब कुछ हुआ है.
बता दें कि सरकार जननी सुरक्षा योजना के तहत जच्चा बच्चा के स्वस्थ्य जीवन के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है और धरमजयगढ़ सिविल अस्पताल में आलम यह है कि मासूम के लिए दूध तक नसीब नहीं हुआ. अब इसे अस्पताल प्रबंधन का घोर लापरवाही कहें या फिर भ्रष्टाचार.