दिल्ली में 1 जुलाई से लागू हुए नए नियमों के तहत, 10 साल पुरानी डीजल और 15 साल पुरानी पेट्रोल गाड़ियों को सड़क पर चलने की अनुमति नहीं है. इस नियम के अनुसार, पेट्रोल पंप मालिकों ने इन गाड़ियों को ईंधन देने से मना कर दिया. हालांकि, इसके बावजूद उन पर जुर्माना लगाया गया, जिससे वे नाराज होकर कोर्ट में याचिका दायर करने को मजबूर हुए. अब कोर्ट ने दिल्ली सरकार और एयर क्वालिटी मैनेजमेंट कमेटी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.

दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस मिणी पुष्कर्णा की बेंच ने दिल्ली पेट्रोल डीलर्स एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका की सुनवाई करते हुए दोनों पक्षों को नोटिस जारी किया है. मामले की अगली सुनवाई सितंबर माह में निर्धारित की गई है.

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दिल्ली HC में याचिकाकर्ताओं ने दी दलील

दिल्ली में 1 जुलाई से पुरानी गाड़ियों को पेट्रोल और डीजल न देने का आदेश कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट द्वारा लागू किया गया है. इस दिशा में दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग, पुलिस और ट्रैफिक विभाग ने एक व्यापक योजना तैयार की है.

याचिकाकर्ताओं ने इन निर्देशों की मंशा का समर्थन करते हुए यह स्पष्ट किया है कि उनका विरोध इस तथ्य पर है कि पेट्रोल पंप मालिकों पर ऐसे नियम लागू किए जा रहे हैं, जिनका प्रवर्तन करने का उनके पास कोई कानूनी अधिकार नहीं है.

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दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क प्रस्तुत किया कि पेट्रोल पंप संचालकों के खिलाफ मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 192 के तहत कार्रवाई की जा रही है, जबकि यह धारा उनके लिए लागू नहीं होती. उन्होंने यह भी कहा कि पेट्रोल पंप डीलरों को दिल्ली सरकार द्वारा जारी निर्देशों का पालन करने की जिम्मेदारी दी जा रही है, जो उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है.

इस प्रकार की स्थिति में यदि कोई अनजाने में गलती कर देता है, तो भी उसे दंडित किया जा रहा है. याचिका में यह उल्लेख किया गया है कि एक पेट्रोल पंप पर प्रतिदिन लगभग तीन हजार वाहन ईंधन भरवाने आते हैं, और कई बार एक साथ विभिन्न यूनिटों से ईंधन प्रदान किया जाता है. ऐसे में गलती की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.

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क्या पेट्रोल पंप मालिकों पर कानून लागू करना गलत?

दिल्ली उच्च न्यायालय में प्रस्तुत याचिका के अनुसार, पेट्रोल पंप संचालक निजी संस्थाएं हैं जो तेल विपणन कंपनियों के साथ अनुबंध के तहत कार्य करती हैं. इन संस्थाओं को कानून लागू करने की जिम्मेदारी सौंपना कानून के शासन के सिद्धांतों का उल्लंघन माना जाता है. याचिका में यह भी स्वीकार किया गया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण नियंत्रण के लिए कठोर उपायों की आवश्यकता है.

सरकारी अधिकारियों के अनुसार, सीएनजी से चलने वाले पुराने वाहनों को वर्तमान में इस नियम से छूट दी गई है. ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि अदालत में दायर याचिका पर सरकार क्या प्रतिक्रिया देती है. सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में दिल्ली में 10 साल से अधिक पुराने डीज़ल और 15 साल से पुराने पेट्रोल वाहनों पर प्रतिबंध लगाया था, जबकि NGT का 2014 का आदेश भी 15 साल से पुराने वाहनों की सार्वजनिक स्थानों पर पार्किंग पर रोक लगाता है.