जहां देश के अधिकतर युवा सरकारी नौकरी की तलाश में अपनी उम्र बिता देते हैं, वहीं एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखने वाले प्रभु रंजन ने महज़ 17 साल की उम्र में एक ऐसा फैसला लिया, जिसने उनकी जिंदगी की दिशा ही बदल दी.

आज, सिर्फ 21 साल की उम्र में, वे न तो किसी कॉरपोरेट दफ्तर में काम कर रहे हैं, न ही किसी बड़े शहर की भीड़ में खोए हैं — बल्कि अपने गांव में रहकर हर साल लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं. और वह भी एक ऐसे पेशे से जिसे अक्सर ‘साधारण’ समझा जाता है — खेती.

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पढ़ाई से मन उचटा, तो कारोबार का रास्ता चुना

प्रभु का मन पढ़ाई में कभी विशेष नहीं लगा. 10वीं कक्षा तक आते-आते उन्होंने तय कर लिया था कि नौकरी उनके लिए नहीं है. उन्हें कुछ अलग करना था — ऐसा जो उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाए और गांव में ही पहचान भी दिलाए.

उनकी सोच थी — कम लागत में अधिक मुनाफा कैसे कमाया जाए. इसी सोच ने उन्हें एक ऐसे विकल्प की ओर मोड़ा, जो अक्सर गांवों में किसी का ध्यान नहीं खींचता — मशरूम की खेती.

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धान-पुआल और बांस से शुरू हुआ सपना

प्रभु ने अपने घर के आस-पास की ज़मीन और संसाधनों का बखूबी इस्तेमाल किया:

  • धान का पुआल और गेहूं का भूसा
  • बांस के रैक
  • ₹5,000 की लागत में खरीदा गया मशरूम स्पॉन

इनका उपयोग कर उन्होंने 200 बैग बटन मशरूम लगाए. महज़ 30 दिन में फसल तैयार हुई और स्थानीय मंडी में बेचकर उन्हें ₹45,000 की पहली कमाई हुई.

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मौसमी से मशीनी खेती तक का सफर

शुरुआत में प्रभु ने केवल मौसमी खेती की. 2020 से 2023 के बीच हर सीजन में 200 बैग उगाए, जिससे हर साल लगभग ₹50,000 तक की कमाई होती रही. लेकिन उन्होंने यहीं रुकना स्वीकार नहीं किया.

2024 में उन्होंने 8×40 फीट की एयर-कंडीशंड यूनिट तैयार की, जिसमें 2,500 बैग लगाए. इससे न केवल उत्पादन बढ़ा, बल्कि कमाई भी कई गुना हो गई.

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ऑनलाइन ऑर्डर, अपनी खाद और स्मार्ट मार्केटिंग

  • दिल्ली से मंगाते हैं हाई-क्वालिटी स्पॉन
  • खुद ही बनाते हैं ऑर्गेनिक खाद
  • साल में चार बार करते हैं खेती
  • सालाना बेचते हैं लगभग 12 टन मशरूम
  • और कमाते हैं करीब ₹18 लाख प्रति वर्ष — वो भी गांव में रहकर

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सीख क्या है?

प्रभु रंजन की कहानी सिखाती है कि:

  • डिग्री नहीं, दिशा मायने रखती है
  • संसाधन नहीं, सोच बड़ी होनी चाहिए
  • नौकरी का इंतज़ार मत कीजिए, अपना रास्ता खुद बनाइए

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