हेमंत शर्मा, इंदौर। देख नहीं सकतीं, सुन नहीं सकतीं, बोल भी नहीं सकतीं… लेकिन हौसला ऐसा कि सरकारी नौकरी पाने वाली भारत की पहली बन गईं बहु-दिव्यांग युवती गुरदीप कौर। इंदौर की गुरदीप कौर वासु की यह कहानी, हर भारतीय के लिए एक मिसाल साबित हुई है।
लाखों दिव्यांगजनों को नई राह दिखाई
प्रधानमंत्री दिव्यांगजन योजना के तहत गुरदीप को वाणिज्यिक कर विभाग (जीएसटी) में चतुर्थ श्रेणी की नौकरी मिली है। उनकी सफलता ने देशभर के लाखों दिव्यांगजनों को नई राह दिखाई है। संघर्षों से भरा गुरदीप का जीवन मुंबई के ‘हेलेन केयर’ संस्थान से शुरू हुआ और पिछले 8 सालों से इंदौर में विशेष शिक्षकों ज्ञानेंद्र और मोनिका पुरोहित की देखरेख में उन्होंने पढ़ाई और ट्रेनिंग ली।
आज उनका पहला दिन था
गुरदीप अब सरकारी सेवा में कार्यरत हैं आज उनका पहला दिन था और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास साफ झलक रहा था।गुरदीप ने जो कर दिखाया है, वो सामान्य लोगों के लिए भी प्रेरणा है। तीनों इंद्रियों (आंख, कान और मुंह) से अक्षम होने के बावजूद उसने मेहनत नहीं छोड़ी और आज सरकारी नौकरी हासिल की है। ये किसी चमत्कार से कम नहीं।
टैक्टाइल साइन लैंग्वेज से करती हैं संवाद
मोनिका पुरोहित ने बताया कि गुरदीप टैक्टाइल साइन लैंग्वेज के माध्यम से संवाद करती हैं। वे सामने वाले के हाथों और उंगलियों को छूकर अपनी बात समझती और समझाती हैं। उनके माता-पिता प्रीतपाल सिंह वासु और मनजीत कौर बताते हैं कि गुरदीप का जन्म समय से पूर्व हुआ था। दो माह तक अस्पताल में रखना पड़ा। जब वह पांच माह की हो गई, तब भी किसी प्रतिक्रिया का संकेत नहीं दे रही थी। तब उन्हें समझ आया कि गुरदीप न केवल देख और सुन नहीं सकती, बल्कि बोल भी नहीं पाती। अब उसी गुरदीप ने कल्पना से बढ़कर सफलता हासिल की है।
यह है टैक्टाइल साइन लैंग्वेज
टैक्टाइल साइन लैंग्वेज एक विशेष प्रकार की संकेत भाषा है, जिसका उपयोग वे लोग करते हैं जो दृष्टिहीन, मूक और बधिर होते हैं। इसमें संवाद के लिए स्पर्श का उपयोग किया जाता है। यह सामान्य संकेत भाषा की तरह ही होती है, लेकिन इसमें इशारों को देखने के बजाय महसूस किया जाता है, जैसे किसी के हाथों की मुद्राओं और गतिविधियों को छूकर।


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