दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए स्पष्ट किया है कि घरेलू हिंसा के मामलों में केवल वही व्यक्ति आरोपी बनाए जा सकते हैं, जो एक ही छत के नीचे निवास करते हैं. इसके अनुसार, यदि कोई व्यक्ति संबंधित घर से दूर रहता है, तो उसे आरोपी नहीं माना जा सकता.

न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने घरेलू हिंसा कानून की व्याख्या करते हुए स्पष्ट किया कि किसी भी रिश्ते की निकटता के बावजूद, जब तक संबंधित व्यक्ति एक ही घर या छत के नीचे नहीं रहते, तब तक उनके खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला नहीं चलाया जा सकता. पीठ ने यह भी कहा कि घरेलू हिंसा का दायरा केवल उन लोगों तक सीमित है जो एक साथ निवास करते हैं, और परिवार के अलग रहने वाले सदस्यों को इस मामले में शामिल नहीं किया जा सकता.

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पीठ ने एक महिला की सास, देवर और देवरानी को घरेलू हिंसा के मामले में आरोपी बनाने की याचिका को खारिज कर दिया. न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत ने सही निर्णय लेते हुए याचिकाकर्ता की सास, देवर और देवरानी को आरोपी के रूप में समन करने से मना कर दिया था. हाईकोर्ट ने इस आदेश को बरकरार रखा है.

21 साल बाद आरोप लगाने वाली महिला की शादी 2001 में हुई थी. उसने दावा किया कि शादी के दूसरे दिन से ही उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाने लगा. इस दौरान उसने एक बेटी को जन्म दिया, लेकिन परिवार की प्रताड़ना लगातार बढ़ती रही. महिला ने अपनी याचिका में उल्लेख किया कि वह अपने पति से बहुत पहले ही अलग हो चुकी थी, जबकि सास और अन्य ससुराल वाले अलग घर में रहकर भी उसे परेशान कर रहे थे. इस संदर्भ में, महिला ने 2022 में कड़कड़डूमा अदालत की फैमिली कोर्ट में घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराया, लेकिन फैमिली कोर्ट ने सास, देवर और देवरानी को आरोपी बनाने से इनकार कर दिया. इस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है.

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पति के खिलाफ चल रहा है मुकदमा

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता महिला के पति के खिलाफ घरेलू हिंसा सहित अन्य मामलों की सुनवाई चल रही है, जिसमें गुजाराभत्ता याचिका भी शामिल है. चूंकि पति उसके साथ रह रहा था, इसलिए यह मामला बनता है. पीठ ने स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के अनुसार, केवल एक ही घर में रहने वाले व्यक्ति घरेलू हिंसा के आरोपी हो सकते हैं. इस स्थिति में, सास और ससुराल के अन्य सदस्यों को आरोपी बनाने का याचिकाकर्ता का दावा निराधार है. इसके अलावा, पीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता स्वयं स्वीकार कर रही है कि सास, देवर और देवरानी लंबे समय से अलग घर में रह रहे हैं, इसलिए उन पर मुकदमा चलाने की मांग उचित नहीं है.