शैलेंद्र पाठक,बिलासपुर। सुकमा जिला अस्पताल में डॉक्टर के उपस्थित नहीं होने और ऑक्सीजन सिलेंडर खाली होने के कारण मरीज की मौत मामले में हाईकोर्ट ने अस्पताल प्रबंधन की घोर लापरवाही माना है. हाईकोर्ट ने पीड़िता को दस लाख रुपए मुआवजा और बच्चे के नाम से ढाई लाख एफडी जमा करने का सरकार को निर्देश दिया गया है. राशि का भुगतान 2 महीने के अंदर करने के लिए कहा है.

दरअसल बस्तर के जगदलपुर में रहने वाले हितेश देवांगन की तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर परिजनों ने बीपीएल कार्डधारी होने के आधार पर राज्य शासन के संजीवनी योजना के तहत आर्थिक मदद की गुहार लगाते हुए सिविल सर्जन को आवेदन दिया था. सिविल सर्जन ने इसे राज्य शासन को फारवर्ड कर दिया था, लेकिन इस पर भी कोई निर्णय नहीं लिया गया. इधर मरीज की स्थिति बिगड़ने पर जगदलपुर के डॉक्टरों ने हैदराबाद ले जाने की सलाह दी. मरीज के परिजन उसे कार से जगदलपुर से हैदराबाद ले जा रहे थे. इसी दौरान सुकमा के पास स्थिति ज्यादा बिगड़ने पर उसे दोपहर के करीब 2.15 बजे सुकमा के जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया. यहां डॉक्टर उपस्थित नहीं थे. सांस लेने में तकलीफ होने के कारण परिजनों ने ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत बताई, लेकिन जिला अस्पताल में उपलब्ध ऑक्सीजन सिलेंडर खाली था. कुछ देर बाद मरीज की मौत हो गई.

पत्नी ने सरकारी अस्पताल की स्थिति और मुआवजा अनुकंपा नियुक्ति की मांग की, जस्टिस गौतम भादुड़ी ने मामले की सुनवाई करते हुए सरकारी अस्पताल की इसे घोर लापरवाही माना और पत्नी को दस लाख मुवायजा और बच्चे के नाम से ढाई लाख एफडी जमा करने का सरकार को निर्देश दिया है. जस्टिस भादुड़ी ने इस मामले में सरकारी अस्पताल के लिए कमेटी बनाये जाने और रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है. पूर्व में 2016 में फर्जी रिपोर्ट दी थी की सरकारी अस्पताल की अव्यवस्था दूर कर दी गई है, लेकिन कोर्ट स्वास्थ सुविधा पर लापरवाही के लिए नारजगी भी जाहिर की और नए सिरे से रिपोर्ट देने का आदेश दिया है.