रायपुर। राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल भीमराव अंबेडकर स्मृति चिकित्सालय के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट (एसीआई) में कार्डियोथोरेसिक एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने एओर्टो बाई पाप्लीटियल बाईपास सर्जरी के द्वारा एक बुजुर्ग मरीज को नया जीवन प्रदान किया. मेडिकल भाषा में इस बीमारी का नाम है एओर्टो इलायक एंड पाप्लीटियल आर्टरी डिजीस। इस बीमारी को सामान्य भाषा में पेरीफेरल वैस्कुलर डीजिस (PAD) कहा जाता है. इस बीमारी में पेट की मुख्य नस जिसको महाधमनी (एब्डामीनल एओर्टो) से होकर घुटने तक की धमनी (पाप्लीटियल आर्टरी) में ब्लॉक था. इस ऑपरेशन को एओर्टो बाई पाप्लीटियल बाईपास कहा जाता है। ऑपरेशन के बाद मरीज स्वस्थ्य होकर आज डिस्चार्ज लेकर घर चला गया।

कार्डियोथोरेसिक एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू के अनुसार, इस तरह का यह प्रदेश में पहला ऑपरेशन है। इसके पहले एसीआई में ही इसी तरह का आपरेशन हुआ था परंतु उसमें सिर्फ जांघ तक की नस का बाईपास हुआ था। आयुष्मान योजना से मरीज का ऑपरेशन पूर्णतः निः शुल्क हुआ। एक अनुमान के मुताबिक निजी अस्पतालों में यह सर्जरी लगभग 4.5 लाख रुपये तक में होती है।

जांघ एवं दोनों घुटने तक की नसें थीं पूरी तरह ब्लॉक

मध्यप्रदेश के बालाघाट निवासी 72 वर्षीय बुजुर्ग पेशे से किसानी कार्य करता था। बुजुर्ग मरीज को बचपन से ही बीड़ी पीने की आदत थी। उसे 6 माह पहले पैर में दर्द होना प्रारंभ हुआ जिसके लिए उन्होंने बालाघाट के जिला अस्पताल में इलाज कराया परंतु वहां से संतुष्ट न होकर मेडिकल कॉलेज में सर्जरी विभाग में भर्ती हो गया। उस समय उसकी स्थिति बहुत ही नाजुक हो गई थी एवं पैर की सडन (गैंगरीन) बायें घुटने तक पहुंच चुका था एवं मरीज सेप्टिसीमिया (अति संक्रमण) में जा चुका था फिर सर्जरी विभाग में उसकी स्थिति को सामान्य लाया गया एवं आगे के उपचार के लिए एसीआई भेजा गया जहां पर डॉ. कृष्णकांत साहू ने उसकी जांच की। जांच में पता चला कि यह नसों की रूकावट के कारण हो रहा है। रेडियोलॉजी विभाग से सीटी एन्जियोग्राफी करवा कर देखा कि नसों में रूकावट कहां से कहां तक है एवं ऑपरेशन के लायक है या नहीं। सीटी एन्जियोग्राफी से पता चला कि उसकी पेट की मुख्य धमनी (एओर्टा) से लेकर जांघ एवं दोनों घुटने तक की नसों में पूर्ण ब्लाक था। साथ ही साथ घुटने से लेकर एड़ी तक की नसों (एन्टेरियर टिबियल आर्टरी एवं पोस्टेरियर टिबियल आर्टरी) में ब्लाक था। पहले सोचा कि यह मरीज ऑपरेशन के लायक नहीं है फिर उनके घर वालों को रिस्क समझा कर ऑपरेशन के लिये तैयार किया गया। इस आपरेशन में दूसरा चैलेंज यह था कि मार्केट में कोई ग्राफ्ट इतना लम्बा नहीं होता कि पेट से लेकर घुटने पहुंच जाये।

गैंगरीन होने के कारण

तंबाकु, गुटखा, बीड़ी, सिगरेट अनियंत्रित मधुमेह, एथेरेस्केलोसिस एवं वैस्कुलाईटिस के कारण रक्त धमनी प्लॉक बनने के कारण धीरे धीरे बंद हो जाती है। प्रारंभ में व्यक्ति को दर्द का एहसास नहीं होता परंतु जैसे जैसे रूकावट बढ़ता है पैरों में खून की सप्लाई कम होते जाती है तो दर्द होना प्रारंभ होता है एवं असहनीय दर्द होता है। जब नस पूर्णतः बंद हो जाती है तो पैरों में गैंगरीन होना प्रारंभ हो जाता है। ठीक उसी प्रकार इसको भी बायें पैर में गैंगरीन हो गया था।

क्या है महाधमनी इलियक आर्टरी, फीमोरल आर्टरी, पाप्लीटियल आर्टरी

हृदय से निकलने वाली मुख्य धमनी जिसको महाधमनी कहते हैं पेट में जाकर दो भागों में बंट जाती है जो दायें पैर एवं बायें पैर को खून की सप्लाई करता है। इस धमनी को इलियक आर्टरी कहा जाता है एवं आगे चलकर यह जांघ में फीमोरल आर्टरी कहलाता है एवं घुटने के पास इसको पाप्लीटियल आर्टरी कहते हैं।

ऐसे हुआ आपरेशन

सबसे पहले मरीज को हाईरिस्क के बारे में समझा दिया गया था। दूसरी चुनौती उसका संक्रमण था जो पूरे शरीर में फैल चुका था। तीसरी और मुख्य चुनौती थी इतनी लम्बी ग्राफ्ट कहां से लाया जाय। इस बार भी ग्राफ्ट मुम्बई से मंगाया गया एवं दो अलग-अलग प्रकार का ग्राफ्ट प्रयोग किया गया। पहले ग्राफ्ट को वाई ( Y ) ग्राफ्ट कहा जाता है जो डेक्रान मटेरियल का होता है तथा इसकी साइज 7 mm X14 mm होती है। दूसरे ग्राफ्ट को पीटीएफई ग्राफ्ट कहा जाता है एवं इसकी साइज 7 mm होती है।

Y ग्रॉफ्ट की लम्बाई बढ़ाने के लिए उसके दोनों सिरों में 7 mm के पीटीएफई ग्राफ्ट को जोड़ दिया गया जिससे Y ग्रॉफ्ट की लम्बाई बढ़ गई एवं पेट से घुटने तक आसानी से पहुंच गया यह अपने तरह का नया प्रयोग था।

इसमें पेट को खोल कर पेट की मुख्य धमनी (जिसको एओर्टा कहते हैं) से वाई आकर के डेक्रॉन ग्राफ्ट को दोनों घुटने नसों तक पहुंचाया गया एवं उसको जोड़ दिया गया जिससे दोनों पैरों में खून की सप्लाई प्रारंभ हो गया।

इस ऑपरेशन को एओर्टो बाई पाप्लीटियल (Aorta Bi Popliteal) बाइपास कहा जाता है। घुटने से नीचे की धमनी की नस की सफाई की गई जिसको एन्डआरटेटेक्टामी (Endarterectomy) कहा जाता है।

इस ऑपरेशन में चार यूनिट ब्लड का उपयोग हुआ एवं यह ऑपरेशन चार घंटे तक चला।

सर्जरी करने वाली टीम

कार्डियोवैस्कुलर सर्जन – डॉ. कृष्णकांत साहू (विभागाध्यक्ष)
एनेस्थेटिस्ट – डॉ. ओ. पी. सुंदरानी
नर्सिंग स्टॉफ – राजेन्द्र, चोवाराम।