प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी पांच देशों की विदेश यात्रा के दौरान अब ब्राजील की राजधानी ब्रासीलिया पहुंच चुके हैं. यहां पर उनका स्वागत शिव तांडव स्तोत्र और भारतीय शास्त्रीय नृत्य से किया गया. यह उनका एक राजकीय दौरा है. इससे पहले उन्होंने रियो डी जेनेरियो में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया था. रियो में बैठकें पूरी करने के बाद प्रधानमंत्री अब ब्रासीलिया में द्विपक्षीय चर्चा के लिए मौजूद हैं. ब्रासीलिया स्थित होटल में भारतीय समुदाय ने प्रधानमंत्री मोदी का जोरदार स्वागत किया. पीएम मोदी ने भी भारतीय प्रवासियों से गर्मजोशी से मुलाकात की और बातचीत भी की.

अहम समझौतों पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद

ब्रासीलिया में प्रधानमंत्री मोदी और ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला दा सिल्वा के बीच द्विपक्षीय बैठकें होने वाली हैं. ब्राजील में भारतीय राजदूत दिनेश भाटिया ने पहले ही जानकारी दी थी कि इस मुलाकात के दौरान अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए जाएंगे.

इन समझौतों में आतंकवाद के खिलाफ साझा रणनीति, गोपनीय जानकारी की शेयरिंग, रेन्वेबल एनर्जी में सहयोग और एग्रीकल्चरल रिसर्च जैसे क्षेत्र शामिल हैं. दोनों देशों के बीच इन समझौतों से आपसी विश्वास और रणनीतिक साझेदारी मजबूत होंगे. विदेश मंत्रालय के मुताबिक, दोनों नेता व्यापार, रक्षा, ऊर्जा, अंतरिक्ष, तकनीक, स्वास्थ्य और कृषि जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा करेंगे.

ब्रिक्स सम्मेलन रहा सफल

ब्रासीलिया पहुंचने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6-7 जुलाई को हुए ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लिया. पीएम ने इस सम्मेलन में कहा, “ब्राजील यात्रा का रियो फेज बेहद सफल रहा. हमने ब्रिक्स सम्मेलन में कई मुद्दों पर विचार-विमर्श किए. मैं राष्ट्रपति लूला और ब्राजील सरकार को इस सफल अध्यक्षता के लिए बधाई देता हूं.” उन्होंने कहा कि ब्रिक्स को और प्रभावी मंच बनाने में ब्राजील की भूमिका सराहनीय है.

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अब नामीबिया की ओर बढ़ेंगे पीएम मोदी के कदम

भारतीय PM 2 जुलाई से 10 जुलाई तक 5 देशों की यात्रा पर हैं. अब तक वे घाना, त्रिनिदाद एंड टोबैगो, अर्जेंटीना का दौरा कर चुके हैं. फिलहाल वे ब्राजील दौरे पर हैं और यहां से नामीबिया जाएंगे. यह उनकी पांच देशों की यात्रा का अंतिम चरण होगा. विदेश मंत्रालय ने बताया कि नामीबिया यात्रा भी रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने की दिशा में अहम साबित होगी.

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ट्रम्प की BRICS से जुड़ने वाले देशों पर 10% एक्स्ट्रा टैरिफ की धमकी

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने BRICS से जुड़ने वाले देशों को धमकी दी है। उन्होंने रविवार को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा कि जो भी देश अमेरिका विरोधी BRICS नीतियों के साथ खुद को जोड़ेंगे, उन पर 10% अतिरिक्त टैरिफ लगाया जाएगा। इसमें किसी को भी छूट नहीं मिलेगी।

दरअसल, BRICS घोषणा पत्र में विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के खिलाफ बढ़ते टैरिफ पर चिंता जताई गई। इन टैरिफ को वैश्विक व्यापार और आपूर्ति श्रृंखला के लिए खतरा बताया गया। हालांकि, इसमें सीधे तौर पर अमेरिका का नाम नहीं लिया गया।

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BRICS क्या है?

BRICS की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक वह 11 प्रमुख उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का एक समूह है। इनमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), सऊदी अरब और इंडोनेशिया शामिल हैं।

इसका मकसद इन देशों के बीच आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक सहयोग को बढ़ावा देना है। इसमें शुरुआत में 4 देश थे, जिसे BRIC कहा जाता था। यह नाम 2001 में गोल्डमैन सैक्स के अर्थशास्त्री जिम ओ’नील ने दिया था।

तब उन्होंने कहा था कि ब्राजील, रूस, भारत और चीन आने वाले दशकों में वैश्विक अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाएंगे। बाद में ये देश एक साथ आए और इस नाम को अपनाया।

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क्यों पड़ी BRICS को बनाने की जरूरत

सोवियत संघ के पतन के बाद और 2000 के शुरुआती सालों में दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पश्चिमी देशों का दबदबा था। अमेरिका का डॉलर और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) फैसले करती थीं।

इस अमेरिकी दबदबे को कम करने के लिए रूस, भारत, चीन और ब्राजील BRIC के तौर पर साथ आए, जो बाद में BRICS हो गया। इन देशों का मकसद ग्लोबल साउथ यानी विकासशील और गरीब देशों की आवाज को मजबूती देना था। 2008-2009 में जब पश्चिमी देश आर्थिक संकट से गुजर रहे थे। तब BRICS देशों की अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही थी।

आर्थिक संकट से पहले पश्चिमी देश दुनिया की 60% से 80% अर्थव्यवस्था को कंट्रोल कर रहे थे, लेकिन मंदी के दौर में BRICS देशों की इकोनॉमिक ग्रोथ से पता चला कि इनमें तेजी से बढ़ने और पश्चिमी देशों को टक्कर देने की क्षमता है।

2009 में रूस के येकातेरिनबर्ग में हुई बैठक में BRICS देशों ने मल्टीपोलर वर्ल्ड यानी बहुध्रुवीय दुनिया की कल्पना की गई, जहां पश्चिमी देशों की आर्थिक पकड़ कमज़ोर हो और सभी देशों को बराबरी का हक मिले।

2014 में BRICS ने एक बड़ा कदम उठाते हुए न्यू डेवलपमेंट बैंक बनाया, जो इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए फंड देता है। इसके साथ-साथ एक रिजर्व फंड भी बनाया गया ताकि आर्थिक संकट के समय इन देशों को अमेरिकी डॉलर पर निर्भर न रहना पड़े।

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