वैभव बेमेतरिहा/शिवम मिश्रा की रिपोर्ट
सरगुजा। रात के तकरीबन 11 बज रहे थे, हम मैनपाट के नर्मदापुर पर स्थित रिसोर्ट ( जहां ठहरे हुए थे ) के बाहर घूम रहे थे. इसी दौरान पास के गांव से ग्रामीणों की चिल्लाने, शोर करने की आवाज आने लगी. हम लोग अपनी गाड़ी से पास के गांव कण्डराजा पहुंचे, कुछ देर हम गांव की गलियों में घूमते रहे. हमें चौराहों पर खड़े कुछ लोग और युवा दिखाई दिए.
हम लोगों ने ग्रामीणों से पूछा कि रात के 11 बज चुके हैं, आप लोग अभी तक जाग रहे हैं. सोये क्यों नहीं ? उन्होंने कहा कि हम लोगों की रातें इसी तरह से कटती है, जागते-जागते सोते हैं. हमने पूछा कि ऐसा क्यों है, उन्होंने बताया कि कण्डराजा में बीते कुछ दिनों से लगातार हाथियों का आना-जाना जारी है. रात में किसी भी वक्त हाथियों का प्रवेश गांव में हो जाता है. हम लोग गांववालों से कई विषयों पर बातचीत करते हुए वापस लौट रहे थे कि तभी वन विभाग की एक गाड़ी सायरन बजाते हुए गांव की तरफ आती हुई नजर आई. हम लोग वन विभाग की टीम को देखकर रुक गए. पूछने पर पता चला कि दो दंतैल हाथी गांव के एक घर में घुस गए हैं.

हाथियों के पहुंचते ही गांव में अफरा-तफरी का माहौल हो गया था. जिस घर में हाथी घुसे थे वहां पर गांववालों की चिल्लाने की आवाज और तेज हो गई थी. वन विभाग की टीम भी गजराज वाहन के साथ गांव पहुंच चुकी थी. गजराज वाहन से सर्च लाइट और सायरन के साथ हाथियों को बाहर निकालने की कोशिशें शुरू हो गई. दूसरी तरफ से गांव के कुछ युवा ट्रैक्टर दौड़ाते हुए उस घर के पास पहुंच गए.
ट्रैक्टर से भी लाइट की तेज रौशनी हाथियों पर मारी गई. कुछ लोग आग जलाने में लग गए. घर के चारों तरफ बड़ी संख्या में महिला, बच्चे, युवा इकट्ठा हो गए थे. तकरीबन आधे घंटे की मशक्कत के बाद हाथियों को घर से बाहर खदेड़ने में ग्रामीण और वन विभाग की टीम कामयाब हुई.

परमेश्वर का दुख
हाथी परमेश्वर के घर घुसे थे. दोनों हाथियों ने घर को काफी नुकसान पहुंचा दिया था. रात के अंधरे में टार्च की रौशनी में घर को दिखाते हुए परमेश्वर बहुत दुःखी हो जाता है. माटी और खफरैल वाले मकान के आधे हिस्से को हाथियों ने तोड़ दिया था. घर के अंदर का सारा सामान बिखर गया था. परमेश्वर कहता है कि क्या करे सर इसी तरह से हमें नुकसान पर नुकसान उठाते रहना पड़ता है. आज की महंगाई में कच्चा मकान बनाने में बड़ी लागत लगती है. आप ही बताइए कि कैसे खुद को इस विपदा से बचाएं.

मुआवजा आसान नहीं
मुआवजे के सवाल पर परमेश्वर थोड़ा और दुखी हो जाता है. वो कहता कि बीते साल भी हाथियों ने नुकसान पहुंचाया था. एक साल से मुआवजे का प्रकरण बना हुआ है, लेकिन पैसे अब तक नहीं मिले.

रात जागरण बड़ी मजबूरी
गांव के ही कुछ युवकों ने बताया कि कण्डराजा में रात जागरण अब आम बात हो गई है. हाथियों का डर बहुत ज्यादा है इसलिए हमें गांव में घूमते रहना पड़ता है. गांव के कुछ लोगों ने अपने घरों पर सर्च लाइटें लगाई है. उससे हाथियों के चहल-कदमी की जानकारी मिल जाती है. एक युवक अपने घर को दिखाते हुए कहता है कि अभी दो दिन पहले ही नुकसान पहुंचाया है. गांव में हाथियों की आवाजाही को रोकने लिए मास्क और सर्च लाइटें और अधिक लगाई जानी चाहिए.
15 गांव प्रभावित
नर्मदापुर के एक रिसोर्ट में सुरक्षाकर्मी की नौकरी करने वाले कुमार पासवान ने बताया कि मैनपाट के करीब 15 गांव हाथी प्रभावित हैं. हाथियों से गांववालों को बचाने की कोशिशें जो होती है वो संसाधन के लिहाज से कम है. गांववालों को घरों के बाहर भी सोना पड़ता है. उन्हें खुद ही अपनी सुरक्षा को लेकर उपाय और व्यवस्था करनी होती है. सरकार की ओर से मदद के नाम पर कुछ भी खास नहीं है.

हाथियों को भगाने एक्सपर्ट टीम नहीं
वन विभाग के सुरक्षाकर्मियों ने बताया कि हमें जैसी ही सूचना मिलती है बिना देर किए प्रभावित गांव में पहुंच जाते हैं. पूछने पर बताया कि पूरे अंबिकापुर में सिर्फ एक ही गजराज वाहन है. अभी यह वाहन मैनपाट में हमारे पास है. इसी वाहन से हाथियों को भगाने टीम के साथ प्रभावित क्षेत्रों में पहुंचते हैं. हाथियों के लिए मैनपाट में पहले कुछ एक्सपर्ट सुरक्षा गार्ड तैनात थे, लेकिन अभी नहीं है. अब फील्ड के साथ हाथियों को लेकर भी जिम्मेदारी हमारी है. पूछने पर यह भी संकोच करते हुए बताया कि प्रभावित गांवों के हिसाब से वन सुरक्षाकर्मियों की संख्या बल पर्याप्त नहीं है. फिर भी हम पूरी निष्ठा के साथ दिन-रात ग्रामीणों की मदद के लिए तैयार रहते हैं. गजराज वाहन टीम के साथ ही एक उड़नदस्ता टीम भी रहती है. यह टीम जरूरत पड़ने पर मदद के लिए पहुंच जाती है.
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