सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने अग्रिम जमानत की मांग पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि NDPS एक्ट के तहत अग्रिम जमानत नहीं दी जाती है. हाई कोर्ट ने नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट 1985 के तहत दर्ज एफआईआर के आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इनकार करते हुए याचिका को खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस निर्णय में हस्तक्षेप करने से भी मना कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की. बेंच ने याचिकाकर्ता को सलाह दी कि वह ट्रायल कोर्ट में आत्मसमर्पण कर नियमित जमानत के लिए याचिका दायर कर सकता है, जिसे विधि के अनुसार निपटाया जाएगा. अभियोजन पक्ष ने अदालत को सूचित किया कि सह आरोपी ने पुलिस को दिए गए बयान में याचिकाकर्ता का नाम उजागर किया है, और उसके पास से 60 किलोग्राम डोडा पोस्त तथा 1 किलोग्राम 800 ग्राम अफीम की बरामदगी हुई है.
अभियोजन पक्ष ने अदालत को सूचित किया कि सह आरोपी ने याचिकाकर्ता को प्रतिबंधित पदार्थ का सप्लायर बताया है. इसके साथ ही, अभियोजन ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर अग्रिम जमानत आवेदन का विरोध करते हुए जमानत न देने की मांग की. राज्य सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रतिबंधित पदार्थ वाणिज्यिक मात्रा में है, जो NDPS अधिनियम की धारा 37 के अंतर्गत आता है. उन्होंने यह तर्क भी दिया कि मादक पदार्थों की तस्करी और आपूर्ति के संबंध में याचिकाकर्ता की कस्टडी में पूछताछ आवश्यक है, जिससे महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होने की संभावना है. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने अदालत में यह दावा किया कि उसे झूठे आरोपों में फंसाया जा रहा है और न तो वह मादक पदार्थ का सप्लायर है और न ही किसी गिरोह का सदस्य.
हाई कोर्ट ने खारिज की थी जमानत याचिका
हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान यह पाया कि याचिकाकर्ता को सह आरोपी ने मादक पदार्थों का सप्लायर बताया है. दोनों के बीच मोबाइल पर लगातार बातचीत हुई है, जिसकी ऑडियो रिकॉर्डिंग भी प्रस्तुत की गई है. इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ता और सह आरोपी के बीच बैंक के माध्यम से लेनदेन का ठोस सबूत भी मिला है. इन सबूतों के आधार पर, हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर की गई अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने अग्रिम जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि NDPS एक्ट के मामलों में अग्रिम जमानत का मुद्दा अत्यंत गंभीर है. कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह इस पर विचार करे कि क्या आरोपी द्वारा दी गई अग्रिम जमानत याचिका को रद्द करने के लिए अदालत में आवेदन प्रस्तुत किया जाए.
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