Election Commission On Voter List Revision: सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) से पहले वोटर लिस्ट रिवीजन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि आधार, वोटर आईडी, राशन कार्ड को भी पहचान पत्र मानें। विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) यानी वोटर लिस्ट रिवीजन पर अदालत में करीब 3 घंटे सुनवाई हुई। अब अगली सुनवाई 28 जुलाई को सुनवाई होगी। सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में जानकारी दी कि वोटर लिस्ट का रिवीजन देशभर में होगा।
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दरअसल बिहार में चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ (SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार (10 जुलाई, 2025) को अहम सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं ने इस प्रक्रिया को जल्दबाजी और मनमाना बताया। वहीं चुनाव आयोग ने इसे संवैधानिक जिम्मेदारी बताते हुए प्रक्रिया को सही ठहराया।
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याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि कानून में वोटर लिस्ट को संशोधित करने का प्रावधान है और यह या तो सीमित (summary) हो सकता है या व्यापक (intensive), लेकिन इस बार आयोग ने ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ जैसा नया शब्द गढ़ा है। उन्होंने तर्क दिया कि 2003 में भी ऐसा हुआ था, लेकिन तब मतदाताओं की संख्या काफी कम थी। अब राज्य में 7 करोड़ से ज्यादा वोटर हैं और प्रक्रिया बेहद तेज गति से चलाई जा रही है, जो कई नागरिकों के अधिकारों पर असर डाल सकती है।
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उन्होंने कहा कि आयोग 11 दस्तावेज स्वीकार कर रहा है, लेकिन आधार कार्ड और वोटर आईडी जैसे अहम पहचान दस्तावेजों को मान्यता नहीं दी जा रही। आयोग का तर्क है कि 2003 की सूची में जिनका नाम है, उन्हें अपने माता-पिता के दस्तावेज नहीं देने होंगे, लेकिन जो उस सूची में नहीं हैं, उन्हें नागरिकता साबित करनी होगी।
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जज बोले- ‘प्रक्रिया संवैधानिक है, लेकिन पारदर्शिता जरूरी’
जस्टिस सुधांशु धुलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि चुनाव आयोग का यह कार्य उसकी संवैधानिक जिम्मेदारी है। आयोग को यह देखने का अधिकार है कि कोई अयोग्य व्यक्ति वोटर न बन सके। साथ ही कोर्ट ने यह भी माना कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है और मतदाता बनने के लिए नागरिकता का प्रमाण आवश्यक हो सकता है। जस्टिस धुलिया ने कहा, “अगर 2003 की लिस्ट है तो यह दलील दी जा सकती है कि अब घर-घर जाने की जरूरत नहीं है, लेकिन सवाल यह है कि वोट डालते आ रहे लोगों से दोबारा नागरिकता क्यों मांगी जा रही है?
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चुनाव आयोग की सफाई- ‘प्रक्रिया पूरी होने दें, सभी को मिलेगा मौका
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि आयोग को यह शक्ति संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत मिली है। उन्होंने कहा कि आयोग केवल अपना काम कर रहा है और यह कहना गलत है कि हम बड़े पैमाने पर नाम हटाने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अभी प्रक्रिया चल रही है। लोगों को ड्राफ्ट लिस्ट के बाद आपत्ति दर्ज करने और सुनवाई का पूरा मौका दिया जाएगा। उन्होंने कोर्ट से कहा कि आयोग को अपनी प्रक्रिया पूरी करने दी जाए। उन्होंने कोर्ट में आश्वासन दिया कि किसी को बिना सुनवाई के लिस्ट से बाहर नहीं किया जाएगा। इस दौरान चुनाव आयोग ने कहा कि सिर्फ बिहार में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में वोटर लिस्ट का रिवीजन किया जाएगा।
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चुनाव आयोग ने दिए 2 बड़े तर्क
1. डेढ़ लाख एजेंट जुटे हैं, किसी का नाम नहीं कटेगा
बिहार में फिलहाल करीब 7 करोड़ 89 लाख वोटर हैं। इसमें से करीब 4 करोड़ 96 लाख वोटर 2003 के वोटर लिस्ट में भी शामिल थे। उनका वेरिफिकेशन नहीं होगा। यानी बाकी बचे 2 करोड़ 93 करोड़ वोटरों का ही वेरिफिकेशन किया जाएगा। इसके लिए राजनीतिक दलों के करीब डेढ़ लाख बूथ लेवल एजेंट (BLA) इस मुहिम में जुटे हैं। इसमें सभी दलों के लोग शामिल हैं। ऐसे में किसी वैध वोटर के नाम कटने की गुंजाइश कम है। अभी भी सभी राजनीतिक दल ज्यादा से ज्यादा BLA बनाकर लिस्ट को पारदर्शी बना सकते हैं।
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2. पिछली बार भी 31 दिन में हुआ था वेरिफिकेशन
चुनाव आयोग का कहना है कि पिछली बार यानी 2003 में 31 दिन में ही SIR हुआ था। इस बार भी कमोबेश एक महीने का टाइम है। अभी करीब डेढ़ लाख BLA काम पर जुटे हैं। एक BLA एक दिन में अधिक से अधिक 50 आवेदन बूथ लेवल आफिसर (BLO) के पास जमा कर सकता है। इस तरह एक दिन 75 लाख से अधिक आवेदन BLO के पास जमा हो सकता है।
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