सुशील सलाम, कांकेर. शिक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए सरकार भले ही “स्कूल चलो अभियान”, “सब पढ़े-सब बढ़े”, मध्याह्न भोजन जैसी योजनाएं चला रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। जिला मुख्यालय से महज 23 किमी दूर बाबूदबेना गांव में स्कूल की हालत बेहद दयनीय है। यहां का प्राथमिक शाला भवन पूरी तरह जर्जर हो चुका है। हालात इतने खराब हैं कि पिछले 10 दिनों से स्कूल एक ग्रामीण के घर में चल रहा है। यही नहीं, उसी मकान की रसोई में मध्याह्न भोजन पक रहा है और शिक्षकों का कार्यालय भी वहीं संचालित किया जा रहा है।

गांव की सरपंच हेमलता भरत ने बताया कि स्कूल भवन की हालत बेहद खराब है। मरम्मत की कोशिश की गई थी, लेकिन छज्जा पूरी तरह ढह गया। बच्चे बीते एक साल से रंगमंच में पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन बरसात के कारण अब वहां बैठना मुश्किल हो गया। ऐसे में गांव के अंकित पोटाई ने अपना पक्का मकान स्कूल चलाने के लिए नि:शुल्क दिया है।

नए भवन का प्रस्ताव भेजा है पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही : सरपंच

सरपंच हेमलता ने बताया कि नए भवन के लिए प्रस्ताव भेजा गया है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। हैरानी की बात यह है कि जिला शिक्षा विभाग को इस जर्जर स्कूल भवन की भनक तक नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि जब शिक्षा विभाग को जमीनी हालात की खबर ही नहीं है तो योजनाओं का लाभ कैसे मिलेगा?

जर्जर स्कूल भवनों की मरम्मत कराई जाएगी : कलेक्टर

इस मामले में कलेक्टर निलेश कुमार महादेव क्षीरसागर ने कहा, जर्जर स्कूलों में बच्चों को न पढ़ाने के निर्देश दिए गए हैं। रेनोवेशन के लिए जर्जर स्कूली की सूची बनाई जा रही है। आने वाले समय में जर्जर स्कूल भवनों की मरम्मत कराई जाएगी। इससे पहले जितने भी पोटाकेबिन भवन जर्जर थे उनकी मरम्मत कराई गई है।