रवींद्र कुमार भारद्वाज, रायबरेली. जनपद के डलमऊ ब्लॉक के अमरहा गांव की रहने वाली 75 वर्षीय अरुणा देवी आज जीवन के अंतिम पड़ाव में दुखद और दयनीय परिस्थितियों में जी रही हैं. अरुणा देवी स्वर्गीय रामकुमार की विधवा हैं. जिन्होंने देश की रक्षा में अपने प्राणों का बलिदान दिया था. एक वीर सैनिक की पत्नी होने के बावजूद, अरुणा देवी को आज न तो समाज का सम्मान मिल रहा है और न ही सरकार की ओर से कोई सहायता. उनके पास न पक्का मकान है, न ही जीवन यापन के लिए पर्याप्त संसाधन.

अरुणा देवी की उम्र और कमजोर स्थिति के कारण वह स्वयं कोई काम करने में असमर्थ हैं. उनके परिवार में कोई अन्य सहारा नहीं है और वह गांव में एक जर्जर कच्चे मकान में रहने को मजबूर हैं. बारिश और अन्य प्राकृतिक आपदाओं में ये जर्जर मकान भी सुरक्षित नहीं है. बुनियादी सुविधाओं जैसे शौचालय, बिजली, और स्वच्छ पेयजल तक की कमी उनके जीवन को और कठिन बना रही है. एक सैनिक की विधवा होने के नाते, जिसने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया, उनकी यह स्थिति समाज और प्रशासन के लिए शर्मनाक है.
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अरुणा देवी की इस स्थिति की ओर न तो स्थानीय जनप्रतिनिधियों का ध्यान गया है और न ही जिला प्रशासन ने कोई पहल की है, न ही कोई सामाजिक संगठन या गैर-सरकारी संस्था उनकी मदद के लिए आगे आई है. वह न तो किसी योजना का लाभ ले पा रही हैं और न ही केंद्र या राज्य सरकार की किसी आवास योजना का. उनकी यह हालत न केवल उनके साथ अन्याय है, बल्कि उन सभी सैनिक परिवारों के प्रति उदासीनता को दर्शाती है, जो देश की सेवा में सब कुछ न्योछावर कर देते हैं.
इस वृद्ध महिला की एकमात्र मांग है कि उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने के लिए एक पक्का मकान उपलब्ध कराया जाए. केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना और उत्तर प्रदेश सरकार की आवास योजना ऐसी योजनाएं हैं, जो जरूरतमंद लोगों को पक्का मकान प्रदान करती हैं. अरुणा देवी जैसे सैनिक परिवार को इन योजनाओं का लाभ दिलाना न केवल प्रशासन की जिम्मेदारी है, बल्कि यह देश के प्रति उनकी सेवा का सम्मान भी होगा.
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स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि अरुणा देवी की स्थिति को देखकर उन्हें दुख होता है. गांव के कुछ युवाओं ने सोशल मीडिया के माध्यम से उनकी व्यथा को उठाने की कोशिश की है, लेकिन अभी तक कोई ठोस परिणाम नहीं मिला है. अब यहां पर एक सवाल जिम्मेदारों से है कि क्या ये जिम्मेदारों का दायित्व नहीं है कि सैनिक के पीछे उसके परिवार की देखभाल की जाए. या उनकी सुध ली जाए. या जिम्मेदार और समाज ये मानता है कि जवान के शहीद होने पर उसे श्रद्धांजलि देना ही पर्याप्त है? सिर्फ इतना कर लेने से ही उनकी जिम्मेदारी पूरी हो जाती है?
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