वीरेन्द्र गहवई, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में बिना मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों पर हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। प्रदेश के सभी गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों में नए शैक्षणिक सत्र के लिए छात्रों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई है। इसके साथ ही उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने शिक्षा विभाग के सचिव को व्यक्तिगत शपथपत्र प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। बिलासपुर हाईकोर्ट ने यह आदेश एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया है।


11 जुलाई 2025 को उच्च न्यायालय (हाईकोर्ट) के मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ती रविन्द्र कुमार अग्रवाल के खण्डपीठ नें निःशुल्क बाल शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के तहत प्रस्तुत जनहित याचिका में सुनवाई करते हुए नए शैक्षणिक सत्र में प्रवेश लेने वालों छात्र छात्राओं के हित में एक अहम आदेश पारित किया है। उच्च न्यायालय की खण्डपीठ द्वारा 30 जून 2025 को उक्त प्रकरण में सुनवाई के बाद संचालक, लोक शिक्षण विभाग को विकास तिवारी द्वारा प्रस्तुत हस्तक्षेप याचिका के संबंध में व्यक्तिगत शपथपत्र प्रस्तुत करने के लिए निर्देशित किया था। उच्च न्यायालय के आदेश के परिपालन में दिनांक 11 जुलाई 2025 को संचालक, लोक शिक्षण विभाग ने शपथपत्र प्रस्तुत कर अवगत कराया कि प्रारंभिक शिक्षा में उम्र 6 से 14 वर्ष तक के बच्चे कक्षा पहली में जिन शालाओं में प्रवेश लेते हैं, तो ऐसी शालाओं को मान्यता लेना अनिवार्य है, किंतु जिन शालाओं में कक्षा नर्सरी से केजी 2 तक की कक्षाएं संचालित होती है, तो ऐसी गैर शालाओं को मान्यता लेना अनिवार्य नहीं है। संचालक, लोक शिक्षण विभाग ने न्यायालय को इस तथ्य से भी अवगत कराया कि जिन कक्षाओं के संचालन के लिए गैर शालाओं को मान्यता लेना अनिवार्य है और ऐसी शालाएं बिना मान्यता के संचालित हो रही है, तो ऐसी गैर शालाओं के विरुद्ध जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा आर्थिक दण्ड अधिरोपित किया जा रहा है, तथा जिन शालाओं के द्वारा मान्यता लेने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया है, ऐसे आवेदन जिला स्तर पर लंबित है।
साथ ही साथ इस तथ्य से भी अवगत कराया गया कि पूरे प्रदेश में गैर शासकीय शालाएं कक्षा नर्सरी से केजी 2 तक की संख्या 72, कक्षा नर्सरी से प्राथमिक शालाओं की संख्या 1391 कक्षा नर्सरी से पूर्व माध्यमिक शालाओं की संख्या 3114, कक्षा नर्सरी से उच्चतर माध्यमिक शालाओं की संख्या 2618 है। संचालक, लोक शिक्षण विभाग द्वारा यह भी बताया गया कि ऐसी गैर शासकीय शालाएं जहां कक्षा नर्सरी से केजी 2 की कक्षाएं संचालित होती है, उन्हे मान्यता लेना अनिवार्य नहीं है।
हस्तक्षेपकर्ता विकास तिवारी के अधिवक्ता संदीप दूबे और मानस वाजपेयी में संचालक, लोक शिक्षण विभाग द्वारा प्रस्तुत शपथपत्र का खण्डन करते हुए उच्च न्यायलय के खण्डपीठ को अवगत कराया, कि निःशुल्क बाल शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के तहत छग शासन द्वारा 7 जनवरी 2013 को विनियम लागू किया गया था, जिसमें समस्त गैर शासकीय शालाएं जहां कक्षा कक्षा नर्सरी से केजी 2 की कक्षाएं संचालित है, ऐसी गैर शासकीय शालाओं की भी मान्यता लेना अनिवार्य है।
प्रकरण में विकास तिवारी की हस्तक्षेप याचिका पर सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय की खण्डपीठ ने छ ग शासन, शिक्षा विभाग के सचिव को निर्देशित किया है कि अगले सुनवाई के पूर्व व्यक्तिगत शपथपत्र प्रस्तुत कर बताए कि 2013 के विनियम के अनुसार गैर शासकीय शालाएं कक्षा नर्सरी से केजी 2 को मान्यता लेने संबंधी दिशा निर्देश के विपरीत क्यों गैर शासकीय शालाएं बिना मान्यता के संचालित की जा रही है जिससे बच्चों के भविष्य का नुकसान किया जा रहा है साथ ही साथ उनके अभिभावकों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। साथ ही साथ यह भी आदेशित किया कि आगामी आदेश तक बिना मान्यता वाले गैर शासकीय शालाएं में नए सत्र के लिए बच्चों के प्रवेश पर रोक लगाएं। ऐसे कई छात्र है, जिनका प्रवेश निरस्त कर दिया गया था, उनमें से कुछ छात्रों द्वारा माननीय न्यायालय में याचिका प्रस्तुत कि गई थी, ऐसी याचिकाओं में सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय में आदेशित किया है कि जिन छात्रों का प्रवेश हो गया है उसे निरस्त नही किया जावे, न्यायालय के रजिस्ट्री को आदेशित किया है कि ऐसी याचिकाओं को न लिया, ताकि जिन छात्रों के प्रवेश को निरस्त किया गया है उनके अभिभावकों को कठिनाई न उठाना पड़े तथा यह भी आदेशित किया कि यह आदेश सभी पर लागू होगा। साथ ही साथ निर्देशित किया कि शिक्षा विभाग पूरे प्रदेश के गैर शासकीय शालाओं के प्रवेश को आगामी आदेश तक निषेधित करे, तथा ऐसी गैर शासकीय शालाएं जो मान्यता प्राप्त करने के पश्चात संचालित हो रही है, उन पर यह आदेश लागू नहीं होगा।
उच्च न्यायालय की खण्डपीठ में छ.ग. शासन, शिक्षा विभाग के सचिव को यह भी निर्देशित किया है किइस संबंध में जांच रिपोर्ट प्रस्तुत कर न्यायालय को अवगत करावें। प्रकरण में आगे सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता सी.वी. भगवंत राव के अधिवक्ता देवर्षि ठाकुर ने उच्च न्यायालय की खण्डपीठ के अवगत कराया कि प्राईवेट स्कुल ऐसोशिएसन में सन् 2022 में याचिका प्रस्तुत कर को उच्च न्यायालय के एकलपीठ से अंतरिम राहत प्राप्त किया है, जिसमें राज्य शासन प्राईवेट स्कुल एसोशिएसन द्वारा संचालित स्कूलों को बाजार में उपलब्ध निजी पुस्तकों का उपयोग करने के लिए राज्य नहीं रोकेगी, उक्त आदेश के बाद प्राईवेट स्कूल एसोशिएसन अभिभावकों को अत्यधिक मंहगे निजी पब्लिकेशन के पुस्तकों को क्रय करने का दबाव बना रहे है, जिससे अभिभावकों को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। उपरोक्त तथ्यों को अपने संज्ञान में लेते हुए उच्च न्यायालय द्वारा उक्त प्रकरण की सुनवाई निःशुल्क बाल शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के तहत प्रस्तुत जनहित याचिका के साथ करने के लिए आगामी तिथि 05 अगस्त निर्धारित की गई है।
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