अजयारविंद नामदेव शहडोल। मध्यप्रदेश के शहडोल जिले में जल गंगा कार्यक्रम में अफसरों के नाम पर 14 किलो ड्रायफ्रूट खाने के मामले में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। अफसरों ने एक घंटे के जल संरक्षण कार्यक्रम में 14 किलो काजू-बादाम, 2 किलो घी और सैकड़ों समोसे उड़ाए, लेकिन ये सामान कभी खरीदा ही नहीं गया। दुकानदारों ने खुद किया खुलासा कि उन्होंने खाली बिल दिए थे और सचिव ने भर दी।
फर्जी बिलों के कारण पूरे प्रदेश में सुर्खियां बटोर रहा
जिले की जनपद पंचायत गोहपारू के ग्राम पंचायत भदवाही में 27 मई को आयोजित जल गंगा संवर्धन कार्यक्रम अब 14 किलो ड्रायफ्रूट, 2 किलो घी और सैकड़ों समोसे फल सब्जी के नाम पर फर्जी बिलों के कारण पूरे प्रदेश में सुर्खियां बटोर रहा है। मामले में लल्लूराम डॉट काम की पड़ताल में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। सचिव ने दुकानदारों से ब्लैंक बिल लेकर उसमें मनमानी से सामग्री जोड़कर राशि आहरित कर ली। एक घंटे का कार्यक्रम में 19 हजार की खातिरदारी की गई। कार्यक्रम के लिए लगाए बिलों में 5 किलो काजू, 5 किलो बादाम, 3 किलो किशमिश, 2 किलो घी, 6 लीटर दूध, 5 किलो शक्कर, 30 किलो नमकीन, 20 बिस्किट पैकेट, 5 दर्जन केला, 3 किलो अनार, 3 किलो अंगूर, और सैकड़ों समोसे पर खर्च हुए। कुल बिल ₹19,010, के अलावा ₹5,260 का एक और बिल अलग से पास किया गया, जिसमें घी प्रमुख सामग्री थी, लेकिन असलियत कुछ और ही निकली।
बिल पर कुछ भी लिखे बिना ले लिया
मामले में ग्राम हर्री के किराना दुकानदार गोविंद गुप्ता ने बताया कि सचिव ललन बैगा ने उनसे बिल पर कुछ भी लिखे बिना ले लिया था। वह पहले भी सचिव को सामान उधारी में देता रहा है। गोविंद का दावा मैंने कभी 5 किलो काजू या 5 किलो बादाम नहीं दिया, कभी 250 ग्राम या आधा किलो लिया होगा, बिल के पैसे आए तो सचिव ने ₹3500 नकद आकर ले लिए।
सचिव ने उनसे भी खाली बिल ले लिया
इसी प्रकार लल्लू केवट भवन निर्माण सामग्री विक्रेता ने बताया कि उन्होंने सिर्फ ईंटें बेची थीं, पर सचिव ने उनसे भी खाली बिल ले लिया। उस बिल में ऊपर साफ शब्दों में लिखा रेत, गिट्टी, मुरूम, सीमेंट भवन निर्माण एवं जर्नल आर्डर के सप्लायर, उस गिट्टी सीमेंट के बिल सचिव ने फल व घी जैसी वस्तुएं जोड़कर ₹5,200 की राशि पंचायत खाते से निकाल ली, जो बाद में सचिव ने फोन-पे से अपने भतीजे के खाते में डलवाकर खुद ले ली। अब सवाल यह है कि जब सामान ही नहीं खरीदा गया, तो किसने खाया काजू-बादाम फल, दूध, घी और सबसे बड़ा सवाल प्रशासन अभी तक क्यों चुप है?
कोई कार्रवाई तक शुरू नहीं हुई
जानकार बताते हैं कि ग्राम पंचायत में किसी भी भुगतान के पहले, जरूरत का प्रस्ताव बनता है, कोटेशन मंगाए जाते हैं, क्रय समिति की सहमति, स्टॉक पंजी में प्रविष्टि व सत्यापन, सरपंच-सचिव के संयुक्त हस्ताक्षर, डिजिटल साइन से भुगतान, यानी सचिव अकेले इस घोटाले को अंजाम नहीं दे सकता। सरपंच, जनपद के अधिकारी व भुगतान निरीक्षण करने वाले कर्मचारी भी जिम्मेदार हैं। पर आश्चर्यजनक रूप से जब तक मीडिया में यह मामला नहीं आया, कोई कार्रवाई तक शुरू नहीं हुई।
भ्रष्टाचार की एक जीती-जागती तस्वीर
जल संरक्षण के नाम पर जनता के पैसों से ड्रायफ्रूट और समोसे की दावत, और फिर बिना सामान लिए फर्जी बिलों से भुगतान यह दर्शाता है कि नीचे से लेकर ऊपर तक व्यवस्था में कैसे भ्रष्टाचार ने घर बना लिया है। सचिव, सरपंच, और जनपद से जुड़े जिम्मेदारों पर FIR और विभागीय कार्रवाई होनी चाहिए। यह मामला सिर्फ 14 किलो ड्रायफ्रूट का नहीं, बल्कि व्यवस्था में घुले भ्रष्टाचार की एक जीती-जागती तस्वीर है।

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