CM Omar Abdullah: शहीद दिवस (Martyrs Day) के दिन जम्मू-कश्मीर (Jammu & Kashmir ) के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को शहीदों की कब्रगाह पर श्रद्धांजलि देने से रोके जाने के बाद विवाद खड़ा हो गया है। सीएम उमर अब्दुल्ला को नक्शबंद साहब का फातिहा पढ़े जाने से रोकने के लिए पश्चिम बंगाल सीएम ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) और तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन (M K Stalin) समेत विपक्ष ने केंद्र सरकार की आलोचना की है। विपक्षी दलों ने भाजपा सरकार और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से माफी की मांग की है।

शहीद दिवस पर सीएम उमर अब्दुल्ला ने गेट फांदकर पढ़ी फातिहा, पुलिस पर हाथापाई के लगाए आरोप, कहा- ‘ये समझते हैं कि हम इनके गुलाम हैं, देखें वीडियो

दरअसल 14 जुलाई 2025 (सोमवार) को शहीद दिवस के दिन नक्शबंद साहब की दरगाह पर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को फातिमा पढ़ने से पुलिस प्रशासन ने रोक दिया था। इस दौरान पुलिस ने उनके साथ धक्का-मुक्की की थी। प्रशासन की तरफ से रोके जाने के बाद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री नक्शबंद साहब का दरवाजा फांदकर अंदर गए और फातिहा पढ़ी। उन्होंने पूरे घटनाक्रम का वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर शेयर किया था। इस घटना ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है।

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा, “यह केवल दुर्भाग्यपूर्ण नहीं, बल्कि एक नागरिक के लोकतांत्रिक अधिकारों को छीनना है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि यह दर्शाता है कि स्थिति कितनी बिगड़ चुकी है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार राज्य सरकारों के अधिकारों को धीरे-धीरे खत्म कर रही है।

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विपक्षी दलों की तीखी प्रतिक्रिया
सीपीआई (एम) ने केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि भाजपा अपनी मनमानी थोप रही है और शहीद दिवस की छुट्टी को खत्म कर, डोगरा महाराजा के जन्मदिन को छुट्टी घोषित कर रही है। पार्टी ने उमर अब्दुल्ला के साथ हुई बदसलूकी की निंदा की। डी राजा ने उमर अब्दुल्ला की कब्रगाह की दीवार फांदते हुए तस्वीर साझा की और कहा कि यह पूरी तरह अस्वीकार्य है कि एक निर्वाचित मुख्यमंत्री को श्रद्धांजलि देने से रोका गया। उन्होंने इसे लोकतंत्र पर सीधा हमला बताया और राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग दोहराई।

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“मूर्खों” द्वारा लिया गया मूर्खतापूर्ण और दूरदृष्टिहीन फैसला: उमर अब्दुल्ला

इसे लेकर उमर अब्दुल्ला ने भाजपा पर जमकर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि यह “मूर्खतापूर्ण और दूरदृष्टिहीन” फैसला था जो “मूर्खों” द्वारा लिया गया। उन्होंने एक बार फिर जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग की। उमर ने कहा, “यह सिर्फ मेरे या मेरे साथियों के साथ हुई घटना नहीं है, बल्कि एक बड़ा संदेश है कि सरकार लोगों को powerless साबित करना चाहती है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर लोगों को लगातार दबाया गया तो इसके राजनीतिक परिणाम भुगतने होंगे।

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पहलगाम आतंकी हमले पर बोले – यह एलजी की नाकामी थी
उमर ने यह भी कहा कि 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के लिए वह नहीं, बल्कि खुद उपराज्यपाल ने अपनी विफलता मानी थी। उन्होंने कहा कि यह चूक हमें युद्ध के कगार पर ले गई। पहलगाम हमले में 26 लोगों की जान गई थी, जिनमें अधिकतर नागरिक थे। इसके बाद भारत ने पाकिस्तान और पीओके में आतंकियों के ठिकानों पर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चलाया।

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13 जुलाई 1931 का जिक्र, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से जोड़ा मामला
उमर अब्दुल्ला ने 13 जुलाई 1931 की घटना का हवाला देते हुए कहा कि उस दिन लोग ब्रिटिश शासन के खिलाफ खड़े हुए थे। उन्होंने आरोप लगाया कि मुस्लिम होने के कारण शहीदों को अलग नजरिए से देखा जा रहा है। उमर ने चेतावनी दी कि यदि चुनावों में कम मतदान हुआ तो इसके लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार माना जाएगा, क्योंकि वह लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर रही है।

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फिर गहराया राज्य-सरकार बनाम एलजी विवाद
इस पूरी घटना ने एक बार फिर जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक और प्रतीकात्मक टकराव को उजागर कर दिया है। लोगों और विपक्ष की ओर से केंद्र से यह मांग तेज हो गई है कि बिना देरी किए जम्मू-कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए।

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