पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद। चार साल से अपने हक की पुश्तैनी ज़मीन के लिए भटक रहे मुरहा नागेश को आखिरकार न्याय मिल गया। सोमवार को परिवार सहित कलेक्टोरेट के सामने भूख हड़ताल पर बैठे मुरहा को मंगलवार को प्रशासन ने उसकी 7 एकड़ कृषि भूमि का कब्जा वापस दिला दिया। राजस्व अमले की मौजूदगी में मैनपुर एसडीएम तुलसीदास मरकाम ने खुद मौके पर पहुंचकर कार्रवाई कराई।

यह कार्रवाई उस वक्त हुई जब मुरहा नागेश ने भूख हड़ताल के दौरान आत्मदाह की चेतावनी दी थी। परिवार के साथ वह सुबह से खाली बर्तन लेकर प्रदर्शन पर बैठा था और शाम होते-होते प्रशासनिक हलकों में हलचल मच गई थी। पहले तो अधिकारियों ने इसे न्यायालयीन मामला कहकर टालने की कोशिश की, लेकिन मामला बढ़ता देख रात 8 बजे प्रशासन ने लिखित आश्वासन देकर कब्जा दिलाने का वादा किया, जिसके बाद मुरहा ने भूख हड़ताल खत्म की।

प्रशासन ने दिखाई सख्ती, दोबारा कब्जे पर FIR का अल्टीमेटम
मंगलवार को प्रशासनिक अमला खरीपथरा गांव पहुंचा और मुरहा नागेश को उसकी पुश्तैनी ज़मीन पर विधिवत कब्जा दिलाया गया। अधिकारियों ने साफ किया कि यदि इस भूमि पर दोबारा किसी ने अवैध कब्जा किया तो संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर कठोर कार्रवाई की जाएगी।

रिश्वत, रिकॉर्ड हेराफेरी और न्याय की लड़ाई
मुरहा नागेश का आरोप था कि गांव के दबंगों ने राजस्व विभाग की मिलीभगत से ज़मीन का रिकॉर्ड बदलवा कर उनकी पुश्तैनी ज़मीन पर कब्जा कर लिया था। इस ज़मीन को वापस पाने के लिए उन्होंने करीब 2 लाख रुपये की रिश्वत भी दी थी। पिछले महीने तहसील ने उनके पक्ष में आदेश दिया, लेकिन कुछ ही दिनों में विरोधी पक्ष ने इसे एसडीएम कोर्ट में चुनौती दे दी और उन्हें खेती करने से रोक दिया गया।

जनदबाव और जमीनी संघर्ष से मिला हक
इस पूरी घटना ने एक बार फिर दिखा दिया कि जब नागरिक शांतिपूर्ण तरीके से अपनी लड़ाई को सामने रखते हैं, तो प्रशासन को सुनवाई करनी ही पड़ती है। मुरहा नागेश की लड़ाई उन हजारों किसानों के लिए मिसाल बन सकती है, जो ज़मीन विवादों में फंसे हैं और न्याय की आस में सिस्टम की परिक्रमा कर रहे हैं।
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