चंडीगढ़ : पंजाब विधानसभा के विशेष सत्र के चौथे और अंतिम दिन मंगलवार, 15 जुलाई को धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी से संबंधित बिल पर गहन चर्चा हुई। यह बिल सोमवार को मुख्यमंत्री भगवंत मान द्वारा पेश किया गया था, लेकिन चर्चा के बाद इसे पास नहीं किया गया।
मुख्यमंत्री के प्रस्ताव पर बिल को सिलेक्ट कमेटी को भेज दिया गया, जो अगले 6 महीनों में सभी धार्मिक संगठनों और जनता से राय लेकर इसे और मजबूत करेगी। इसके बाद बिल को दोबारा विधानसभा में पेश किया जाएगा।
“यह नमोशी बिल नहीं, ऐतिहासिक कदम” – सीएम मान
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने स्पष्ट किया कि इस बिल को “नमोशी बिल” कहना गलत है। उन्होंने इसे ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण कदम करार देते हुए कहा, “हम शब्दों से जुड़े हैं और उनका सम्मान करते हैं। हमारी गुरमुखी लिपि और गुरु ग्रंथ साहिब को हम जीवित गुरु मानते हैं। धार्मिक ग्रंथों का अपमान, जलाना या फाड़ना सबसे बड़ा अपराध है।” उन्होंने 2015 की बेअदबी की घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि सही कानून के अभाव में दोषियों को सजा नहीं मिल पाती, जिससे ऐसी घटनाएं बार-बार होती हैं।

कानून की कमी से दोषी बच जाते हैं
सीएम मान ने कहा कि अंबेडकर की मूर्तियों को मिट्टी से लथपथ करने जैसी घटनाओं ने लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। कानून की कमी के कारण दोषी कुछ साल बाद छूट जाते हैं और समाज में सम्मान पाने लगते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी करने वालों को कड़ी सजा देने के लिए मजबूत कानून जरूरी है। मान ने पर्यावरण का जिक्र करते हुए कहा कि गुरु ग्रंथ साहिब में हवा, पानी और धरती को गुरु, पिता और माता का दर्जा दिया गया है, लेकिन हम इन्हें बचाने में विफल रहे हैं।
कांग्रेस विधायक की आपत्ति
कांग्रेस विधायक अवतार सिंह जूनियर ने बिल पर चर्चा के दौरान इसे “नमोशी” शब्द से संबोधित किया और कहा कि बिल में स्पष्टता की कमी है। उन्होंने सुझाव दिया कि सभी धर्मों के प्रतिनिधियों को शामिल कर एक संस्था बनाई जाए और बेअदबी की जांच डीएसपी की बजाय न्यायिक आयोग द्वारा 3-4 महीनों में पूरी की जाए। उन्होंने कहा कि बिल में धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की व्यापक गुंजाइश है, जिसे स्पष्ट करना जरूरी है।
सीएम मान ने प्रस्ताव रखा कि बिल को जल्दबाजी में पास करने की बजाय सिलेक्ट कमेटी को भेजा जाए। कमेटी सभी धर्मों के संगठनों और 3.5 करोड़ लोगों से राय लेगी। सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को कमेटी में शामिल किया जाएगा, ताकि एक ऐसा कानून बने जो लंबे समय तक प्रभावी रहे। कमेटी को 6 महीने का समय दिया गया है, जिसके बाद संशोधित बिल विधानसभा में दोबारा पेश किया जाएगा।
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