सुबह स्नान के बाद व्यक्ति शुद्ध होता है, तन से भी और मन से भी. यही समय होता है जब हम अपने जीवन के ऊर्जा स्रोत, सूर्य देव को अर्घ्य देकर उन्हें धन्यवाद देते हैं और दिन की सकारात्मक शुरुआत करते हैं. हर दिन सुबह स्नान के बाद सूर्य को जल अर्पित करना एक प्राचीन परंपरा है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस परंपरा के पीछे वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण क्या हैं?

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तांबे के लोटे से जल अर्पण का रहस्य: कैसे सूर्य को दिया गया जल बदल सकता है आपका भाग्य

तांबे के लोटे से जल अर्पण का रहस्य: कैसे सूर्य को दिया गया जल बदल सकता है आपका भाग्य

सूर्य की किरणों को फ़िल्टर करता है जल

जब हम लोटे से जल अर्पित करते हैं, तो उसकी धार से निकलती जलधारा प्रिज़्म की तरह सूर्य की किरणों को छानती है. इससे आंखों को राहत मिलती है और शरीर को विटामिन D मिलना शुरू होता है.

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ध्यान की स्थिति बनती है

जब व्यक्ति ध्यानपूर्वक सूर्य की ओर मुख कर ‘ॐ सूर्याय नमः’ कहकर जल देता है, तब मन एकाग्र होता है. यह एक तरह की प्राणायाम प्रक्रिया है, जो मानसिक शांति देती है.

स्नान के बाद शरीर सक्रिय होता है

जल अर्पण के समय शरीर का सीधा खड़ा होना, हाथों का ऊपर उठना और सूरज की ओर देखना — ये सभी योगिक मुद्राएं हैं, जो दिन की शुरुआत में शरीर को जाग्रत करती हैं.

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जल अर्पण का सही समय क्या होना चाहिए?

सूर्योदय के 30 मिनट के भीतर, जब सूर्य लालिमा में हो. ब्रह्ममुहूर्त के बाद स्नान करके पूर्व दिशा की ओर मुख रखें. तांबे के लोटे से शुद्ध जल (उसमें थोड़ी सी तुलसी या कुमकुम डाली जा सकती है) का उपयोग करें.

सावधानियां भी जरूरी हैं

जल अर्पण करते समय पैर धोकर भूमि पर खड़े होकर करें. जल सीधे ज़मीन पर न गिराएं. तुलसी या पौधे की जड़ में गिराएं या साफ जगह पर. अर्घ्य देते समय मौन रहें या जप करें. मोबाइल या बातचीत से बचें.

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