दिल्ली स्थित अपने आधिकारिक निवास पर जले हुए कैश मिलने के बाद विवादों में फंसे इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा(Yashwant Verma) ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)में याचिका दायर की है. उन्होंने इन-हाउस जांच समिति की उस रिपोर्ट को चुनौती दी है, जिसमें उनके खिलाफ “गंभीर सबूत” होने का उल्लेख किया गया था, जिसके आधार पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने महाभियोग की सिफारिश की थी. जस्टिस वर्मा ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि उन्हें निष्पक्ष सुनवाई का उचित अवसर नहीं दिया गया.

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जस्टिस वर्मा ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि यह रिपोर्ट एक पूर्वनियोजित और पूर्वाग्रह से प्रभावित प्रक्रिया का परिणाम है, जिसमें न केवल उन्हें न्यायिक अवसर से वंचित किया गया, बल्कि उनके संवैधानिक अधिकारों का भी उल्लंघन हुआ है. यह याचिका उस समय प्रस्तुत की गई है जब संसद का मॉनसून सत्र 21 जुलाई से आरंभ होने वाला है और सरकार महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी कर रही है.

क्या है मामला?

14 मार्च को दिल्ली में जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास के बाहर आग लगने की घटना के दौरान दमकल कर्मियों को जली हुई नकदी एक बोरे में रखी हुई मिली. इस घटना की जानकारी तत्कालीन दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने तत्कालीन सीजेआई को दी, जिसके परिणामस्वरूप 22 मार्च को एक तीन सदस्यीय इन-हाउस जांच समिति का गठन किया गया. इस समिति में न्यायमूर्ति शील नागू (तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश, पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट), न्यायमूर्ति जीएस संधवालय (तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट) और न्यायमूर्ति अनु शिवरामन (जज, कर्नाटक हाई कोर्ट) शामिल थे.

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इस समिति ने 55 गवाहों से पूछताछ करने के बाद 10 दिनों की जांच के दौरान 3 मई को अपनी 64 पृष्ठों की रिपोर्ट तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना को प्रस्तुत की. रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि जस्टिस वर्मा के आवास से मिली नकदी उनके “गुप्त या प्रत्यक्ष नियंत्रण” के संकेत देती है. इसके अलावा, समिति ने यह भी कहा कि यह आचरण न्यायपालिका की गरिमा और सार्वजनिक विश्वास के खिलाफ है, और इसे महाभियोग योग्य गंभीर दुराचार के रूप में वर्गीकृत किया गया. समिति ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने की सिफारिश की, जिसके बाद सीजेआई खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस संबंध में पत्र लिखा.

जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा है कि

समिति ने उन्हें पूरी और निष्पक्ष सुनवाई का अवसर नहीं प्रदान किया, जिससे यह प्रक्रिया पूर्वाग्रह और जल्दबाजी में संपन्न हुई. मूल तथ्यों की गहन जांच नहीं की गई, विशेष रूप से नकदी के स्वामित्व और उसकी वैधता के संदर्भ में. आरोपियों पर अपनी बेगुनाही साबित करने का बोझ डाल दिया गया, जबकि वे स्वयं आरोपी थे. इस जांच प्रक्रिया में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ. इसके अलावा, उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि रिपोर्ट ने केवल “इनकार” और “षड्यंत्र” के आरोपों के माध्यम से उनकी सफाई को खारिज कर दिया, जबकि नकदी के संबंध में कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं था.

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इस मामले ने राजनीतिक पहलू भी ग्रहण कर लिया है. संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने बताया है कि सरकार विपक्ष के साथ बातचीत कर रही है ताकि मॉनसून सत्र में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया जा सके. इस प्रस्ताव को पेश करने की जिम्मेदारी कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को दी गई है.

इस बीच, विपक्षी INDIA गठबंधन ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग की मांग को फिर से उठाने की तैयारी शुरू कर दी है. 13 दिसंबर 2024 को 55 विपक्षी सांसदों ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया था, जिसमें विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में उनके भाषण को आधार बनाया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की इन-हाउस जांच की योजना बनाई थी, लेकिन राज्यसभा सचिवालय के हस्तक्षेप के बाद यह मामला ठंडा पड़ गया. इस विवाद में नया मोड़ तब आया जब उपराष्ट्रपति और राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ ने 19 मई को इन-हाउस जांच प्रक्रिया की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाते हुए इसे “अप्रभावी” करार दिया और कहा कि इस मामले में आपराधिक जांच अधिक उपयुक्त होगी.