अजयारविंद नामदेव, शहडोल। मां की ममता, डॉक्टरों की लगन और SNCU की टीम की दिन-रात की मेहनत ने एक नन्ही जान को मौत के मुंह से बाहर निकाल लिया। उमरिया जिले में ढाई माह पहले एक बेहद कमजोर बच्ची का घर पर ही जन्म हुआ था। बच्ची की हालत काफी नाजुक थी और उसे तत्काल शहडोल जिला अस्पताल के SNCU में भर्ती कराया गया। जहां जिला अस्पताल के डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ ने दिन-रात मेहनत कर बच्ची की जान बचाई।

जन्म के समय 7 महीने की भी नहीं थी बच्ची

उमरिया जिले के पाली ब्लॉक के ग्राम बर्तरा निवासी सुस्मिता सिंह पति रामगोपाल सिंह ने 2 जून को समय से ढाई माह पहले एक बेहद कमजोर बच्ची को घर पर ही जन्म दिया। जन्म के समय बच्ची का वजन मात्र 900 ग्राम था और वह पूरे सात महीने की भी नहीं थी। बच्ची की हालत काफी नाजुक थी और उसे तत्काल शहडोल जिला अस्पताल के SNCU में भर्ती कराया गया। बच्ची को सांस लेने में भारी परेशानी हो रही थी। नवजात के फेफड़ों में स्वयं सांस लेने की क्षमता न होने के कारण उसे CPAP मशीन पर रखा गया। साथ ही चिकित्सकों ने कैफीन साइट्रेट, आयनट्रोप सहित अन्य जरूरी दवाओं के माध्यम से इलाज शुरू किया।

ये भी पढ़ें: मौत के बाद भी नसीब नहीं हुआ शव वाहन: बारिश में बाइक से भीगते हुए ले गए परिजन, सिस्टम की बेबसी पर उठे सवाल, कांग्रेस ने घेरा

सात दिनों तक मशीन पर रहने के बाद बच्ची को केवल ऑक्सीजन पर शिफ्ट किया गया। इसी दौरान ट्यूब और सीरिंज की मदद से 2-2 एमएल दूध देना शुरू किया गया। साथ ही मां को नियमित रूप से कंगारू मदर केयर (KMC) के लिए प्रशिक्षित किया गया। मां ने हर दो घंटे में SNCU पहुंचकर अपनी बच्ची को गोद में लेकर त्वचा से त्वचा का स्पर्श प्रदान किया, जिससे बच्ची को मां की गर्माहट और सुरक्षा मिली, स्टाफ की ओर से हैंड वॉशिंग, स्तनपान तकनीक और मानसिक सहयोग में भी मां को लगातार मार्गदर्शन मिला।

30 दिन बाद फिर बिगड़ी तबीयत

रोजाना दूध की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाई गई और KMC की मदद से बच्ची का वजन भी बढ़ता गया। करीब 30 दिन बाद बच्ची की तबीयत फिर बिगड़ी, लेकिन डॉक्टरों ने समय रहते इलाज कर दोबारा उसकी जान बचा ली। 45 दिनों के इलाज के बाद बच्ची का वजन बढ़कर 1.380 किलोग्राम हो चुका है। ROP और अन्य जांचें सामान्य आने के बाद परिजनों के आग्रह पर बच्ची को SNCU से डिस्चार्ज कर दिया गया।

ये भी पढ़ें: जन्मदिन की खुशी दे गई उम्रभर का दर्द: दो सगे भाइयों की नर्मदा नदी में डूबने से मौत, 42 घंटे चला रेस्क्यू, दोस्तों के साथ बर्थडे मनाने पहुंचे थे ओंकारेश्वर

स्टाफ की कमी के बाद भी बचाई बच्ची की जान

शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सुनील हथगेल ने बताया कि यह हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है। अस्पताल में पिछले दो महीने से चार बाल रोग विशेषज्ञों के स्थानांतरण के कारण स्टाफ की भारी कमी है। इसके बावजूद डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ ने दिन-रात मेहनत कर बच्ची की जान बचाई। उन्होंने पूरी SNCU टीम की मेहनत को सलाम किया और कहा कि इस तरह की कहानियां चिकित्सकीय क्षेत्र की सच्ची प्रेरणा हैं। नन्हीं जिंदगी की जीत की यह कहानी न सिर्फ मेडिकल टीम की मेहनत का प्रमाण है, बल्कि मातृत्व, समर्पण और विज्ञान की ताकत का जीवंत उदाहरण भी है।

Lalluram.Com के व्हाट्सएप चैनल को Follow करना न भूलें.
https://whatsapp.com/channel/0029Va9ikmL6RGJ8hkYEFC2H