सीवान। बिहार के स्वास्थ्य एवं विधि मंत्री मंगल पांडेय ने चुनावी वर्ष में सरकार की उपलब्धियां गिनाने के लिए एक प्रेस वार्ता बुलाई। इस दौरान उन्होंने राज्य में हुए विकास कार्यों और विभिन्न योजनाओं की जानकारी साझा की। लेकिन प्रेस वार्ता का माहौल तब गर्मा गया जब एक पत्रकार ने सीवान सहित पूरे बिहार में बढ़ते अपराध को लेकर सवाल पूछ लिया।

पत्रकार पर भड़क गए

सवाल सुनते ही मंत्री जी असहज हो उठे और पत्रकार पर भड़क गए। उन्होंने न सिर्फ सवाल को टाल दिया, बल्कि तीखे लहजे में उंगली उठाते हुए धमकी भरे अंदाज में कहा पहले 1993 से 2005 का इतिहास पढ़िए, फिर सवाल पूछिए।
इस बयान ने प्रेस की स्वतंत्रता और लोकतंत्र में मंत्री की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

धमकाते नजर आए

मंत्री मंगल पांडेय, जो स्वयं राज्य के विधि मंत्री हैं लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को इस तरह धमकाते नजर आए। उन्होंने यह भी कहा कि 2005 से पहले जब वे ट्रेन से हाजीपुर से सीवान आते थे तो शाम छह बजे के बाद लोग स्टेशन से बाहर निकलने से डरते थे।

“अपराध का स्वर्ण युग”

बातों-बातों में मंत्री जी ने यह भी स्वीकार किया कि 2005 से पहले अपराधियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई होती थी, वे भागते थे और पकड़े भी जाते थे। यह बयान उनके पहले के बयानों से बिल्कुल उलट है, जहां वे अक्सर राजद शासनकाल को “अपराध का स्वर्ण युग” बताते हैं और कहते हैं कि उस दौर में अपराधियों ने थानों पर कब्जा कर लिया था और पुलिस मूकदर्शक बनी रहती थी।

एक राजनीतिक बयान था?

अब सवाल यह उठता है कि यदि उस दौर में पुलिस कार्रवाई करती थी जैसा उन्होंने अब कहा है, तो फिर उनका पहले का आरोप क्या सिर्फ एक राजनीतिक बयान था? और सबसे अहम बात मंत्री को शायद यह जानकारी नहीं थी कि कुछ ही दिन पहले उनके गृह प्रखंड से महज 25 किलोमीटर दूर तीन लोगों को सरेआम तलवार से काट दिया गया।

लोकतंत्र में सवाल पूछना अपराध नहीं

यह संपूर्ण प्रकरण सिर्फ एक मंत्री के विरोधाभासी बयानों और व्यवहार को ही नहीं दिखाता, बल्कि यह भी बताता है कि लोकतंत्र में सवाल पूछना अपराध नहीं है, बल्कि यह पत्रकार का अधिकार और कर्तव्य है। मंत्री को समझना होगा कि सवालों से बचना नहीं, जवाब देना लोकतंत्र की पहचान है।