अमित पांडेय, डोंगरगढ़। रविवार को डोंगरगढ़ शहर पूरे दिन पुलिस की छावनी में तब्दील नजर आया। दरअसल, माँ बम्लेश्वरी मंदिर ट्रस्ट समिति के चुनाव को लेकर सर्व आदिवासी समाज ने आपत्ति दर्ज कराते हुए ट्रस्ट में 50% आरक्षण की मांग की थी। इसे देखते हुए प्रशासन सुबह से ही अलर्ट मोड पर था और आंदोलन पर नजर रखते हुए डोंगरगढ़ के चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल तैनात किया गया, ताकि कोई अप्रिय घटना न हो।

चुनाव की बात करें तो सुबह से ही मंदिर ट्रस्ट समिति के दोनों पैनल और निर्दलीय प्रत्याशी मतदाताओं को लुभाने में जुटे रहे। इस दौरान तीन श्रेणियों में मतदान हुआ, साधारण श्रेणी में 1537 में से 1465, आजीवन श्रेणी में 917 में से 804 और संरक्षण श्रेणी में 522 में से 496 मतदाताओं ने मतदान किया। चुनाव प्रक्रिया शांतिपूर्वक पूरी हुई और सोमवार को परिणाम घोषित किए जाएंगे।

आदिवासी समाज ने की ट्रस्ट में 50% आरक्षण की मांग
हाई स्कूल मैदान में प्रदर्शन कर रहे आदिवासी समाज ने ट्रस्ट समिति में 50 प्रतिशत आरक्षण आदिवासी समुदाय को सौंपने की बात कही। आंदोलनकारी समाज का कहना था कि माँ बम्लेश्वरी उनकी आराध्य देवी हैं और उनका गोत्र ‘उइके’ से जुड़ा हुआ है, इसलिए मंदिर का अधिकार आदिवासी समाज को मिलना चाहिए।

प्रदर्शनकारियों का यह भी आरोप रहा कि कुछ प्रभावशाली लोगों ने मंदिर प्रबंधन पर कब्जा कर लिया है और आदिवासी समाज को जानबूझकर इससे दूर रखा जा रहा है। शाम होते-होते आंदोलनकारियों ने मुख्य मार्ग पर जाम लगाकर विरोध को और तेज कर दिया। प्रशासन की मौजूदगी में उन्होंने एक ज्ञापन सौंपा और चेतावनी दी कि यदि आगामी तीन महीने में उनकी मांगों पर ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो बड़ा और उग्र आंदोलन किया जाएगा।

गौरतलब है कि चुनाव और सर्व आदिवासी समाज की आपत्ति के चलते सुबह से ही डोंगरगढ़ में चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात रही। प्रशासनिक अधिकारी, जिनमें डोंगरगढ़ एसडीएम अभिषेक तिवारी सहित कई वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे, पूरे दिन मौके पर डटे रहे और आंदोलनकारियों को शांत करने की कोशिश करते रहे। पुलिस अधिकारियों ने भी लगातार संवाद बनाकर स्थिति को नियंत्रण में रखा।

राजा कमल नारायण सिंह ने करवाया था मंदिर का निर्माण
इतिहास की बात करें तो माँ बम्लेश्वरी मंदिर का निर्माण खैरागढ़ रियासत के राजा कमल नारायण सिंह ने करवाया था, जो देवी भक्त और कई प्रसिद्ध जस और पचरा के रचयिता थे। बाद में 1976 में राजा बीरेन्द्र बहादुर सिंह ने मंदिर का पुनर्निर्माण कर ट्रस्ट का गठन किया और मंदिर प्रबंधन ट्रस्ट समिति को सौंपा गया। तब से यह ट्रस्ट परंपरागत रूप से संचालन करता आ रहा है, लेकिन अब आदिवासी समाज की मांगों के चलते यह मुद्दा विवादों में आ गया है।
अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि प्रशासन आदिवासी समाज की माँगों पर क्या रुख अपनाता है और क्या अगले तीन महीनों में कोई समाधान निकल पाता है।
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