विक्रम मिश्र लखनऊ। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कभी सियासत का केंद्र तय करती थी या केंद्र में रहती भी थी। लेकिन आज प्रादेशिक दलों की बैसाखी पर सवार कांग्रेस अपने वजूद को ज़िंदा रखने के लिए जद्दोजहद कर रही है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अब अपने झंडाबरदारों को जुटाने के लिए भी संघर्ष करती नज़र आती है।
पंचायत चुनाव अकेले लड़ने का फैसला
फिलहाल उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव का बिगुल फूंक दिया गया है। ऐसे में कांग्रेस की नीति तय करने वाले पहली पंक्ति के नेताओं ने प्रदेश में पंचायत का चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया है। हालांकि ये नियम सिर्फ त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ही लागू होगा इसके बाद 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में फिर से इंडी गठबंधन के बैनर तले ही कांग्रेस तय सीटों पर चुनावी मैदान में उतरेगी।
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आखिर पंचायत चुनाव में कांग्रेस अकेले क्यों है
कहते है संगठन में शक्ति होती है लेकिन संगठन में समीकरण और हैसियत के हिसाब से ही पद और कद का निर्धारण भी होता है। इसी नियम के आधार पर कांग्रेस उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले खुद की औकात बताने की कोशिश कर रही है।क्योंकि पंचायत चुनाव से तकरीबन उत्तर प्रदेश की लागभग 190 सीटें सीधे तौर पर प्रभावित होती है। ऐसे में अगर इंडी गठबंधन के साथ समझौता कर विधानसभा चुनाव में सम्मानजनक सीट लड़ने के लिए मिल सके उसके लिए पंचायत चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करना ही होगा।
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पिछले समय मे हुए विधानसभा उपचुनाव में आपको याद ही होगा कि समाजवादी पार्टी में कांग्रेस को कोई सीट नही दिया था। जबकि इसी बात की नाराजगी हरियाणा में कांग्रेस ने सपा के साथ दिखाई थी। कांग्रेस के प्रदेश के आला नेताओ की माने तो बेहतर परिणाम ही विधानसभा चुनाव में गठबंधन में सीटों की स्थिति तय करेंगे।
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