Sarzameen Movie Review: कश्मीर की ठंडी फिजाओं में जब परिवार, पितृत्व और पहनावे के बीच एक नई जद्दोजहद जन्म लेती है, यहीं से निकलती है ‘सरजमीन’ की भावना. यह फिल्म सिर्फ एक बाप-बेटे की कहानी नहीं, बल्कि हर उस दिल का आईना है जो घर, फर्ज और पहचान के बीच खुद को बंटा हुआ पाता है.

इसमें है सेना की अनुशासन भरी दीवार के पीछे छुपा एक नाजुक परिवार जिससे हर आर्मी की फैमली रिलेट कर पाएगी. अगर सेना और आर्मी फैमली की दास्तां को करीव से महसूस करना चाहते हैं तो ये फिल्म आपके लिए है.

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Sarzameen Movie Review

Sarzameen Movie Review

कहानी क्या है? (Sarzameen Movie Review)

सरजमीन एक आर्मी फाइटर विजय मेनन (प्रित्विराज सुकुमारन) की कहानी है, जिसका बेटा हरमन (इब्राहिम अली खान) पिता की नजरों में कभी ‘बहादुर, जांबाज’ बन नहीं पाता. बाप की नाराजगी बेटे की तनहाई बन जाती है. मां मेहर (काजोल) चुपचाप सब झेलती है, बाप-बेटे के जंग में झूलती परिवार की छाया है, लेकिन हार नहीं मानती. जम्मू- प्रित्विराज सुकुमारन एक टफ आर्मी अफसर बनाना इनके लिए पुरानी चीज है, लेकिन इनका चेहरा, आंखें, हाव-भाव ‘कह-मत सुनो’ वाला ठाट रखती हैं.

काजोल फिल्म का सबसे मजबूत पाइलर है. मां की भूमिका कम है, पर एक एक्शन सीन में भी जहां बाकी लोग भटक रहे हैं, काजोल की आंखें ‘मेन’ हैं. इब्राहिम अली खान के डेव्यू के बाद से इस फिल्म में ईमानदारी है जैसे झिझक, वचकपन, पिता से मोहब्बत पर फिर भी क्रियेटिव स्पेस नहीं मिल सका, लेकिन उन्होंने कोशिश भरपूर की है. कलाकार फिल्म से बेहतर लगेंगे.

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फिल्म की अच्छाइयां (Sarzameen Movie Review)

मां की भूमिका में काजोलः खासकर जिस तरह मेहर परिवार को जोड़ती है, अक्सर हाशिए पर रहने वाली एक मां का ‘रिस्पेक्ट’ वापस लाती है.

प्रित्विराज का एक्स-माइलयारा आर्मी मैन सीन्स में उनका भार (‘मैं फौजी हु, देश मेरी जान है) दिखता है. इब्राहिम का शानदार रोल भले ही स्क्रिप्ट कमजोर हो, लेकिन हरमन की कमजोरी, डर को उन्होंने बखूबी दिखाया.

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क्यों देखें (Sarzameen Movie Review)

अगर एक परिवार की प्रेम कहानी को अरसे से मिस कर रहे हैं, तो यह फिल्म कश्मीर के यूथ तनाव वाले माहौल में ये परिवार ट्रॉमा के साये में जीने को मजबूर है. हरमन की किडनैपिंग, आतंकियों से डीलिंग, देशभक्ति की कसमें ये सब कुछ है. लेकिन फिल्म का स्क्रीनप्ले ऐसा पलटता है कि कुछ सीन्स में ऑडियंस को लग सकता है कि ‘ये तो मिशन कश्मीर और राजी जैसी फिल्मों का ‘मैशअप’ है.’

एक्टिंग कैसी है? (Sarzameen Movie Review)

प्रित्विराज सुकुमारन एक टफ आर्मी अफसर बनाना इनके लिए पुरानी चीज है, लेकिन इनका चेहरा, आंखें, हाव-भाव ‘कह-मत सुनो’ वाला ठाट रखती हैं. काजोल फिल्म का सवसे मजबूत पाइलर है. मां की भूमिका कम है, पर एक एक्शन सीन में भी जहां बाकी लोग भटक रहे हैं, काजोल की आंखें ‘मेन’ हैं. इब्राहिम अली खान के डेब्यू के बाद से इस फिल्म में ईमानदारी है जैसे झिझक, वचकपन, पिता से मोहब्बत पर फिर भी क्रियेटिव स्पेस नहीं मिल सका. लेकिन उन्होंने कोशिश भरपूर की है. कलाकार फिल्म से बेहतर लगेंगे.

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कहानी की खामियां (Sarzameen Movie Review)

सीरियस क्लीशे माकं बाप का बेटे को कठोर बनाना, मां का सुलझाना, आत्म-समर्पण, देशप्रेम का हाथ खड़ा करना ये सब कुछ पहले देखा हुआ लगता है.

कहानी में स्टोरी का खिचाव. ना तो कहानी नई है, ना तड़का. मूवी ‘मिशन कश्मीर’ और ‘राजी’ का बचा खुचा सेटअप लगती है.
म्यूजिक बेजान फिल्म में म्यूजिक थोड़ा फार्म के लिए डाला गया है, लेकिन वो फील नहीं आता जो एक देशभक्ति वाली फिल्मों में होता है

आपके लिए है. लेकिन तेजरफ्तार और कुछ जोशीला देखने को नहीं मिलेगा.

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