अमित पांडेय, खैरागढ़। खैरागढ़ में हर साल बरसात आते ही शहर पानी-पानी हो जाता है. आमनेर नदी उफान पर है, इतवारी बाजार में घुटनों तक पानी भर गया है, पुलों पर यातायात ठप है, और मोहल्लों में घरों के भीतर पानी घुस गया है. हर साल की तरह इस बार भी वही तस्वीर सामने है — रेस्क्यू ऑपरेशन, मुआवजे की घोषणाएं, और प्रशासन की ‘तत्कालीन सतर्कता’. लेकिन असल सवाल यह है कि आखिर इस शहर को हर साल इस संकट से गुजरने पर क्यों मजबूर होना पड़ता है?

यह भी पढ़ें : लगातार बारिश से कच्चा मकान ढहा, मलबे में दबने से मासूम बच्ची की मौत, 6 लोग सुरक्षित निकाले गए…

दरअसल, खैरागढ़ की बाढ़ अब सिर्फ बारिश की नहीं, बल्कि शहरी कुप्रबंधन और वर्षों की लापरवाही की कहानी बन चुकी है. रियासत काल के समय शहर में बने बड़े-बड़े नाले, जो कभी बरसाती पानी को आसानी से निकालने में सक्षम थे, आज अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुके हैं. मानव मंदिर रेस्टोरेंट और जैन मंदिर के बीच जो एक समय पर विशाल नाला हुआ करता था, वहां अब पक्की दुकानें खड़ी हैं. यही हाल शहर के अन्य प्रमुख जल निकासी मार्गों का भी है, या तो उन्हें पाट दिया गया है, या उन पर अवैध निर्माण हो चुका है.

शहर के नालों को योजनाबद्ध तरीके से चौड़ा करने और बहाव की दिशा को सुचारु करने के बजाय, हर साल प्रशासन केवल बरसात के दौरान सक्रिय दिखता है. पानी भरने के बाद अफसरों की गाड़ियां गली-गली घूमती हैं, राहत शिविरों की बातें होती हैं, मुआवजे के फॉर्म भरवाए जाते हैं और फिर बारिश रुकते ही सब कुछ शांत हो जाता है, जैसे कुछ हुआ ही न हो.

यह कोई नई समस्या नहीं है, लेकिन इसका स्थायी समाधान आज तक नहीं निकाला गया. सरकारें बदलीं, प्रतिनिधि बदले, लेकिन हालात जस के तस हैं. सवाल यह नहीं है कि बारिश क्यों हो रही है, सवाल यह है कि शहर हर साल उसी बारिश में क्यों डूब रहा है? जब तक शासन और प्रशासन इस समस्या को ‘आपदा प्रबंधन’ की बजाय ‘शहरी योजना’ का हिस्सा नहीं बनाएगा, तब तक खैरागढ़ हर साल यूं ही पानी में डूबता रहेगा — और उसके साथ डूबती रहेंगी लोगों की उम्मीदें, संपत्तियां और सवाल.