मुकेश सेन, टीकमगढ़। ‘तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है,मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है’ कवि अदम गोंडवी की ये पंक्तियां कोई पुरानी कविता नहीं। बल्कि आज भी भारत के कई गांवों की रोजमर्रा की सच्चाई हैं।  मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में ऐसा ही एक गांव है शंकर जी खिरक, जो जनपद पलेरा की ग्राम पंचायत जेवर का हिस्सा है। जहां विकास अभी तक कीचड़ में फंसा हुआ है।

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बीते रोज 52 वर्षीय कैलाश कुशवाहा की तबीयत अचानक बिगड़ी। उन्हें हाई बीपी, शुगर और सांस की गंभीर दिक्कत हो गई। लेकिन गांव से बाहर निकलने का कोई पक्का रास्ता और सड़क नहीं है। यहां एंबुलेंस पहुंचने की बात तो दूर की है, किसी पैदल चलने वाले को भी यहां से निकलने में मशक्कत करनी पड़े।

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जब मरीज को लेने एंबुलेंस नहीं पहुंच सकी, तब चारपाई सहारा बनी। गांव वालों ने मिलकर इंसानियत की डोलती सांसों को चारपाई पर लिटाया और लगभग 1 किलोमीटर की कीचड़ भरी पगडंडी पार करके उत्तर प्रदेश के मऊरानीपुर अस्पताल तक पहुंचाया। मरीज को समय पर इलाज मिल गया जिससे उसकी जान बच गई। लेकिन इस घटना से सबसे बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। क्या 75 सालों के लोकतंत्र में अब भी लोगों को जिंदगी चारपाई पर ढोनी पड़ेगी?

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सिर्फ कैलाश नहीं, हर बरसात में गांव होता है बेबस

यह पहला मौका नहीं है। कुछ ही दिन पहले इसी गांव की बुजुर्ग महिला बेटी बाई को भी गांव वालों ने चारपाई पर अस्पताल पहुंचाया था। यहां करीब 400 लोग रहते हैं। लेकिन बरसात के मौसम में गांव की सड़क दलदल में तब्दील हो जाती है। स्कूल जाने वाले बच्चे रोज इसी कीचड़ में फिसलते हुए पढ़ने जाते हैं।

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दीनदयाल ने सुनाई दर्द भरी दास्तां

बुजुर्ग को ले जाने वाले स्थानीय निवासी दीनदयाल कुशवाहा ने बताया कि “यहां बरसों से सड़क की मांग की जा रही है। लेकिन हर बार सिर्फ फाइलें घूमती हैं। अगर किसी की तबीयत बिगड़े तो उसे कंधे पर उठाकर ले जाना हमारी मजबूरी बन गई है।” वहीं मामला सामने आने पर एसडीएम जतारा संजय दुबे ने तुरंत रास्ता बनवाने की प्रक्रिया शुरू करवाने की बात कह दी। साथ ही संबंधित अधिकारियों से बात करने का आश्वासन दिया।

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