उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना की मानहानि से जुड़े मामले में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को दोषी करार देने के ट्रायल कोर्ट के निर्णय को दिल्ली हाई कोर्ट ने बरकरार रखा है। यह मामला वर्ष 2000 का है, तब वीके सक्सेना गुजरात के एक संगठन के अध्यक्ष थे। अदालत ने कहा कि वीके सक्सेना द्वारा दायर मामले में पाटकर को दोषी ठहराने के ट्रायल कोर्ट और अपीलीय अदालतों के फैसलों में कोई अवैधता नहीं थी। 2 अप्रैल को साकेत कोर्ट के सेशंस अदालत ने मेधा पाटकर की सजा को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था।

“कांग्रेस ने सिंधु जल समझौता किया, भारत का 80% पानी पाक को दिया…उसे MFN का दर्जा दिया” – लोकसभा में पीएम मोदी ने कांग्रेस की जमकर उधेड़ी बखिया

न्यायालय के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं

इसके साथ ही अदालत ने पाटकर को परिवीक्षा पर रिहा करने के अपीलीय अदालत के फैसले को भी बरकरार रखा। हालांकि, अदालत ने पाटकर को राहत देते हुए परिवीक्षा की उस शर्त में संशोधन किया जिसके तहत उन्हें हर तीन महीने में ट्रायल कोर्ट में पेश होना पड़ता था। पीठ ने कहा कि वह ऑनलाइन या फिर किसी अधिवक्ता के माध्यम से वह अदालत में पेश हो सकती हैं। अदालत ने कहा कि अन्य सभी शर्तों में इस न्यायालय के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

BREAKING : पीएम मोदी ने डोनाल्ड ट्रंप के दावे की निकाली हवा, बोले- दुनिया के किसी भी नेता ने भारत को ऑपरेशन रोकने के लिए नहीं कहा”

क्या है पूरा मामला?

यह पूरा मामला वर्ष 2000 का है जब नेशनल काउंसिल आफ सिविल लिबर्टीज नामक संगठन के वीके सक्सेना अध्यक्ष थे। उन्होंने 2000 में पाटकर के नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के खिलाफ एक विज्ञापन प्रकाशित किया था। यह आंदोलन नर्मदा नदी पर बांधों के निर्माण का विरोध करता था। इस विज्ञापन का शीर्षक था ‘सुश्री मेधा पाटकर और उनके नर्मदा बचाओ आंदोलन का असली चेहरा’।

‘अपना मेंटल बैलेंस खोकर…’, राज्यसभा में खड़गे के लिए बोले नड्डा, भड़का विपक्ष, मांगनी पड़ी माफी ; कमेंट रिकॉर्ड से हटाया गया

इस विज्ञापन के प्रकाशन के बाद पाटकर ने सक्सेना के खिलाफ एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की। इसमें उन्होंने वीके सक्सेना पर कई आरोप लगाते हुए एक प्रेस नोट जारी किया था। प्रेस नोट की रिपोर्टिंग के बाद सक्सेना ने 2001 में अहमदाबाद की एक अदालत में पाटकर के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया।

Parliament Monsoon Session : ‘गालियों का हिसाब है, ट्रंप के दावों का नहीं, कांग्रेस की विरासत पर ये सरकार और कितने दिन चलेगी ?’- राज्यसभा में बोले मल्लिकार्जुन खड़गे

10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर 2003 में यह मामला दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया था। मई-जुलाई 2024 में पाटकर को इस मामले में दोषी ठहराया गया और मजिस्ट्रेट अदालत ने उन्हें पांच महीने की जेल की सजा सुनाई और सक्सेना को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।

Parliament Session: ‘हमला कैसे हुआ नहीं बताया…’, संसद में प्रियंका गांधी ने सरकार पर बोला हमला, मारे गए पर्यटकों को बताया भारतीय तो बीजेपी सांसदों ने लगाए ‘हिंदू-हिंदू’ के नारे

Follow the LALLURAM.COM MP channel on WhatsApp
https://whatsapp.com/channel/0029Va6fzuULSmbeNxuA9j0m