SEBI IPO Rule Change 2025: भारतीय शेयर बाजार को नियंत्रित करने वाली संस्था SEBI एक ऐसे प्रस्ताव पर काम कर रही है जो IPO में खुदरा निवेशकों की भागीदारी की तस्वीर ही बदल सकता है. बड़े IPO में अब तक जिन खुदरा निवेशकों को भारी आरक्षण मिलता था, उन्हें अब उस हिस्से में कटौती का सामना करना पड़ सकता है.
SEBI के इस प्रस्ताव का मकसद IPO प्रक्रिया को अधिक स्थिर और संस्थागत निवेशकों के अनुकूल बनाना है. लेकिन इसका सीधा असर आम निवेशकों की पहुंच पर पड़ सकता है.
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SEBI IPO Rule Change 2025
बड़े IPO में रिटेल की पकड़ कमजोर, SEBI की चिंता बढ़ी (SEBI IPO Rule Change 2025)
SEBI ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में IPO का औसत आकार बढ़ा है, लेकिन खुदरा निवेशकों की सक्रिय भागीदारी उस अनुपात में नहीं बढ़ी है. खासकर जब IPO का आकार ₹5000 करोड़ या उससे ऊपर का होता है, तो रिटेल सब्सक्रिप्शन को भरने के लिए लाखों आवेदन चाहिए होते हैं, जो व्यावहारिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो जाता है.
SEBI का मानना है कि खुदरा निवेशकों की संख्या में यह ठहराव, बड़े IPO की सफलता पर सवाल खड़ा कर सकता है.
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वैश्विक अनिश्चितता बनी बड़ी वजह (SEBI IPO Rule Change 2025)
SEBI ने यह भी कहा है कि दुनिया भर में चल रहे युद्ध, आर्थिक तनाव और बाजार की अस्थिरता के चलते IPO लॉन्च करना अब पहले जितना आसान नहीं रहा. ऐसे माहौल में यदि रिटेल निवेशक पूरे कोटे को नहीं भरते, तो इससे IPO की साख और डिमांड पर नकारात्मक असर पड़ सकता है.
इसी खतरे से निपटने के लिए SEBI अब संस्थागत निवेशकों (QIBs) को ज्यादा प्राथमिकता देना चाहती है.
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₹5000 करोड़ से ऊपर के IPO में बदलेगा गणित (SEBI IPO Rule Change 2025)
SEBI के नए प्रस्ताव के अनुसार, यदि किसी कंपनी का IPO ₹5000 करोड़ से अधिक का होता है, तो खुदरा निवेशकों के लिए आरक्षण को 35% से घटाकर 25% किया जा सकता है. वहीं, QIBs यानी क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल बायर्स के हिस्से को 50% से बढ़ाकर 60% करने का सुझाव दिया गया है.
हालांकि, यह “ग्रेडेड अप्रोच” के ज़रिए लागू किया जाएगा यानी जितना बड़ा IPO, उतना अधिक हिस्सा संस्थागत निवेशकों के लिए.
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एंकर इन्वेस्टर्स की परिभाषा भी होगी व्यापक (SEBI IPO Rule Change 2025)
SEBI केवल रिटेल और संस्थागत निवेशकों के अनुपात में ही बदलाव नहीं कर रहा है, बल्कि एंकर इन्वेस्टर्स की परिभाषा में भी बदलाव लाने जा रहा है. अब म्यूचुअल फंड्स के अलावा बीमा कंपनियां और पेंशन फंड्स को भी इस श्रेणी में शामिल किया जा सकता है.
इस बदलाव से बड़े निवेशकों को IPO में पहले से और मजबूत स्थिति मिल सकती है और लिस्टिंग से पहले ही कंपनियों को एक भरोसेमंद फंडिंग बेस मिल जाएगा.
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रिटेल इन्वेस्टर्स के लिए इसका क्या मतलब है? (SEBI IPO Rule Change 2025)
यदि यह प्रस्ताव लागू होता है, तो खुदरा निवेशकों को बड़े IPO में पहले जैसी प्राथमिकता नहीं मिलेगी. उनकी हिस्सेदारी कम होने से IPO में आवंटन मिलने की संभावना घटेगी. यह विशेषकर उन निवेशकों के लिए चिंता का विषय हो सकता है जो केवल लिस्टिंग गेन के लिए निवेश करते हैं.
हालांकि, इससे बाजार की स्थिरता और संस्थागत निवेश की गुणवत्ता बेहतर हो सकती है, जो दीर्घकालिक रूप से सभी निवेशकों के लिए सकारात्मक संकेत होगा.
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बदलाव अनिवार्य, लेकिन संतुलन आवश्यक (SEBI IPO Rule Change 2025)
SEBI का यह कदम IPO मार्केट में स्थिरता लाने की दिशा में महत्वपूर्ण हो सकता है. लेकिन यह तभी सफल माना जाएगा जब खुदरा निवेशकों की पहुंच और सुरक्षा दोनों का संतुलन भी सुनिश्चित किया जाए.
बदलाव की प्रक्रिया में छोटे निवेशकों की आवाज़ भी सुनी जानी चाहिए, क्योंकि यही वर्ग बाजार की असली रीढ़ है.
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