आशुतोष तिवारी, जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर में कुपोषण का संकट एक बार फिर गहराता दिख रहा है. आंकड़े बता रहे हैं कि जिले के हजारों बच्चे कुपोषण से जूझ रहे हैं. एनआरसी सेंटर्स पर गंभीर कुपोषित बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है. लेकिन इस गंभीर समस्या पर भी सियासत हावी है. भाजपा सरकार जहां दावा कर रही है कि कुपोषण दर में कमी आई है, वहीं कांग्रेस इसे योजनाओं की कटौती और कुपोषण से निपटने में सरकार की विफलता बता रही है. सवाल यह है कि बच्चों का पोषण राजनीति की भेंट क्यों चढ़ रहा है?
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महिला एवं बाल विकास विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार, बस्तर जिले के आंगनबाड़ी केंद्रों में 83 हजार बच्चे पंजीकृत हैं, जिनमें से 14,563 बच्चे कुपोषित हैं. इनमें 2,264 बच्चे गंभीर कुपोषण की श्रेणी में आते हैं. जिले के 7 एनआरसी सेंटरों में 150 से अधिक बच्चे भर्ती हैं, जिनका इलाज चल रहा है. परियोजना अधिकारी मनोज सिंह के अनुसार शासन की 10 से ज्यादा योजनाएं इन बच्चों के पोषण के लिए चल रही हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी और सुविधाओं की सीमाएं चुनौती बनकर सामने हैं.

भाजपा सरकार ने योजनाओं को किया बंद
वहीं कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा सरकार ने सत्ता में आते ही उन योजनाओं को बंद कर दिया, जो कुपोषण से लड़ने में प्रभावी साबित हो रही थीं. कांग्रेस के जिला अध्यक्ष सुशील मौर्य के मुताबिक, पिछली सरकार ने डीएमएफटी फंड के ज़रिए आंगनबाड़ी केंद्रों में अंडा, दूध और पोषण लड्डू जैसे आहार शुरू किए थे, लेकिन अब इन सभी को बंद कर दिया गया है. यही वजह है कि कुपोषित बच्चों की संख्या में दो सालों में बढ़ोतरी हुई है और सरकार की योजनाएं कागजों तक ही सिमट गई हैं.
कांग्रेस का भ्रष्टाचार से भरा कार्यकाल बता रहे महापौर
भाजपा का पलटवार भी तीखा है. पार्टी प्रवक्ता और जगदलपुर के महापौर संजय पांडे कांग्रेस कार्यकाल को भ्रष्टाचार से भरा बताते हैं. उनका दावा है कि कांग्रेस शासन में महिलाओं से काम छीनकर बीज निगम के जरिए रेडी टू ईट सप्लाई कराई गई, ताकि फंड की बंदरबांट की जा सके. भाजपा सरकार के आने के बाद अब सभी आंगनबाड़ी केंद्रों में रेडी टू ईट और गर्म भोजन दिया जा रहा है और कुपोषण दर में कमी आई है. उनके अनुसार, फिलहाल जिले में कुपोषण की दर 17% है, जो बीते वर्षों से बेहतर है.
दो सालों में 8 हजार कुपोषित बच्चों को किया भर्ती
हालांकि, जमीनी आंकड़े सरकार के दावों को पूरी तरह समर्थन नहीं देते. बीते दो वर्षों में एनआरसी सेंटरों में 8 हजार कुपोषित बच्चों को भर्ती किया गया, लेकिन इनमें से सिर्फ 60 प्रतिशत बच्चों को ही पोषण मिला, शेष 40 प्रतिशत बच्चे अब भी कुपोषण की गिरफ्त में हैं. सरकार योजनाएं चला रही है, बजट भी खर्च हो रहा है, लेकिन इन योजनाओं का क्रियान्वयन और निगरानी सवालों के घेरे में है. नतीजा ये है कि बस्तर का बच्चा आज भी कुपोषण से लड़ने के लिए अकेला खड़ा है… और राजनीतिक बयानबाज़ी इस लड़ाई को और मुश्किल बना रही है.
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