रायपुर। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश और प्रदेश का नाम रोशन कर चुके पैरा-आर्मरेसलर श्रीमंत झा ने छत्तीसगढ़ सरकार से शहीद राजीव पांडे खेल पुरस्कार 2023-24 और 2024-25 के लिए नामांकन की मांग करते हुए भावनात्मक अपील की है। उनका कहना है कि वर्षों की मेहनत और अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियों के बावजूद उन्हें अब तक राज्य से वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार हैं।

हाल ही में श्री झा ने दिल्ली में आयोजित पैरा एशियन आर्मरेसलिंग चैंपियनशिप 2025 में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए कांस्य पदक जीता। इससे पहले भी वे कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक जीत चुके हैं। बावजूद इसके, उनका नाम राज्य के सर्वोच्च खेल पुरस्कारों की सूची में अब तक शामिल नहीं किया गया है।

पैरा-आर्मरेसलर श्रीमंत झा ने कहा कि हर वर्ष आवेदन करता हूं, उम्मीद लेकर इंतजार करता हूं, पर हर बार निराशा ही हाथ लगती है। क्या एक दिव्यांग खिलाड़ी की मेहनत, त्याग और उपलब्धियां राज्य पुरस्कार के योग्य नहीं हैं?”

अन्य राज्यों ने दिया सम्मान, छत्तीसगढ़ में उपेक्षा

श्रीमंत ने यह सवाल भी उठाया कि देश के कई राज्यों ने गैर-मान्यता प्राप्त खेलों और दिव्यांग खिलाड़ियों को राज्य स्तर पर सम्मानित किया है। उन्होंने मनीष कुमार (मध्यप्रदेश), श्रीनिवास गौड़ा (कर्नाटक), जोबी मैथ्यू (केरल) और मार्गरेट पाठाव (मेघालय) जैसे उदाहरण गिनाए, जिन्हें उनके राज्यों ने सर्वोच्च खेल पुरस्कारों से नवाज़ा, जबकि उनके खेल भी राज्य खेल सूची में शामिल नहीं थे।

श्रीमंत झा ने कहा कि दूसरे राज्यों में जब दिव्यांग और विशेष खेलों से जुड़े खिलाड़ियों को सम्मान मिल सकता है, तो छत्तीसगढ़ में हम जैसे खिलाड़ियों को क्यों अनदेखा किया जाता है?

खेल के साथ शिक्षा में भी अग्रणी

आपको बता दें कि श्रीमंत सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं, बल्कि मैकेनिकल इंजीनियर भी हैं। उन्होंने सीआईटी राजनांदगांव से बीई और दुर्ग से डिप्लोमा किया है। दिव्यांगता के बावजूद वे पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर हैं और युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

सरकार और जनप्रतिनिधियों से अपील

श्रीमंत झा ने मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, खेल मंत्री और प्रदेश के जनप्रतिनिधियों से आग्रह किया कि दिव्यांग खिलाड़ियों को भी उचित पहचान और सम्मान मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम भी छत्तीसगढ़ की मिट्टी में पले-बढ़े हैं और उसी तिरंगे को सीने से लगाकर देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। हमें सिर्फ पदक नहीं चाहिए, हमें पहचान चाहिए, वो सम्मान जो हमारी मेहनत और त्याग के लिए मिलना चाहिए।

श्रीमंत ने यह भी कहा कि यदि उन्हें यह पुरस्कार मिलता है, तो यह उनके साथ-साथ राज्य के सभी दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा और आत्मसम्मान का प्रतीक होगा।

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