मोहाली : पंजाब के तरनतारन में 1993 में हुए फर्जी एनकाउंटर मामले में मोहाली की सीबीआई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने सेवानिवृत्त एसएसपी भुपिंदरजीत सिंह, डीएसपी दविंदर सिंह, इंस्पेक्टर सूबा सिंह, एएसआई गुलबर्ग सिंह और रघबीर सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह सजा 4 अगस्त को सुनाई गई।


यह मामला 12 जुलाई 1993 का है, जब तरनतारन के रानीवाला गांव के पास पुलिस ने एक फर्जी मुठभेड़ में तीन विशेष पुलिस अधिकारियों (एसपीओ) सहित सात युवकों को मार गिराया था। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई ने इस मामले की जांच शुरू की और 30 जून 1999 को केस दर्ज किया। 31 मई 2002 को सीबीआई ने दस पुलिसकर्मियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। इनमें से पांच आरोपी गुरदेव सिंह, ज्ञान चंद, जग्गीर सिंह, महेंद्र सिंह और रघुबीर सिंह की मौत हो चुकी है, जबकि बाकी पांच को 1 अगस्त 2025 को दोषी ठहराया गया और अब उन्हें उम्रकैद की सजा दी गई है।


सीबीआई जांच में खुलासा हुआ कि पुलिस ने रानीवाला गांव के शिंदर सिंह उर्फ शिंदा, सुखदेव सिंह, देसा सिंह और काला सिंह को उनके घरों से गैरकानूनी रूप से हिरासत में लिया था। इनमें से शिंदर सिंह, सुखदेव सिंह और देसा सिंह शराब ठेकेदार जोगिंदर सिंह के साथ ड्यूटी पर तैनात एसपीओ थे, जबकि काला सिंह गांव का निवासी और घरेलू काम करने वाला व्यक्ति था। पुलिस ने इनके खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों का आरोप लगाया और दावा किया कि हथियार बरामद करने के दौरान चार आतंकवादियों ने उन पर हमला किया।


हालांकि, जांच में पाया गया कि पुलिस ने इन युवकों को उनके घरों से अगवा किया, गैरकानूनी हिरासत में रखा, यातनाएं दीं और फिर एक फर्जी मुठभेड़ की कहानी गढ़कर उनकी हत्या कर दी। मुठभेड़ में मारे गए चार अन्य व्यक्ति भी विशेष पुलिस अधिकारी थे, जिन्हें पुलिस ने आतंकवादी बताकर मार डाला। हैरानी की बात यह है कि मृतकों के शव उनके परिजनों को भी नहीं सौंपे गए।