पटना। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान ने एक बार फिर बिहार की कानून-व्यवस्था को लेकर नीतीश कुमार की सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। उन्होंने साफ कहा कि बिहार में अपराधी बेलगाम हैं और प्रशासन पूरी तरह से नाकाम है। हालांकि, इसके बावजूद वे यह दोहराते हैं कि वे एनडीए का हिस्सा थे, हैं और रहेंगे। यह दोहरा रुख राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है।

चिराग की रणनीति बेहद सोची-समझी

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो चिराग की यह रणनीति बेहद सोची-समझी है। वे एक ओर नीतीश कुमार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करते हैं, तो दूसरी ओर एनडीए के साथ अपनी निष्ठा भी जताते हैं। इसका उद्देश्य बिहार में अपनी पार्टी की राजनीतिक पकड़ मजबूत करना है। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में लोजपा (रामविलास) ने अकेले 135 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिससे जेडीयू को बड़ा नुकसान हुआ था। इस बार भी उनकी मंशा सीट बंटवारे में बड़ा हिस्सा पाने की है।

महत्वाकांक्षा गठबंधन से ऊपर नहीं

चिराग पासवान यह भी मानते हैं कि महत्वाकांक्षी होना गलत नहीं है, लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा गठबंधन से ऊपर नहीं है। वे बार-बार नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात दोहराते हैं, लेकिन उनके समर्थकों के पोस्टर “चिराग के स्वागत को तैयार है बिहार” कुछ और ही संकेत देते हैं।

अटकलें लगाई जा रही

इसके साथ ही चिराग और राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर की आपसी तारीफें भी चर्चा में हैं। दोनों ही नीतीश सरकार की आलोचना करते हैं, जिससे संभावित नए राजनीतिक समीकरणों की अटकलें लगाई जा रही हैं। हालांकि चिराग ने साफ किया कि वे आने वाले पांच वर्षों तक नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री मानते हैं।

तेजी से लोकप्रिय हो रही

बिहार की राजनीति में चिराग की “बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट” नीति खासकर दलित और पिछड़े तबकों में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। वे 2025 के विधानसभा चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाने की कोशिश में हैं। उनका यह संतुलन साधने वाला रवैया एक ओर उन्हें एनडीए में बनाए रखता है, वहीं दूसरी ओर उन्हें भविष्य का विकल्प भी बनाता है।