भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की ताजा बैठक में रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं करने का निर्णय लिया है. यानी मौजूदा रेपो रेट 5.50% पर बरकरार रहेगी. सीधा मतलब ये कि आम जनता की जेब पर फिलहाल अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा – लोन महंगे नहीं होंगे और आपकी मौजूदा EMI भी जस की तस रहेगी.

6 अगस्त को RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बैठक के नतीजों की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि समिति के सभी 6 सदस्य ब्याज दर को स्थिर रखने के पक्ष में थे. गवर्नर के अनुसार, मौजूदा वैश्विक आर्थिक अस्थिरता और टैरिफ अनिश्चितताओं को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है. साथ ही, भारत में मानसून की अच्छी प्रगति और आगामी त्योहारी सीजन को ध्यान में रखते हुए मौद्रिक नीतियों को स्थिर बनाए रखना उपयुक्त समझा गया.

इस साल के भीतर RBI पहले ही तीन बार ब्याज दरों में कटौती कर चुका है – फरवरी, अप्रैल और जून में क्रमश: 0.25%, 0.25% और 0.50% की कमी हुई. कुल मिलाकर रेपो रेट में 1% की कटौती हो चुकी है. इस फैसले से साफ है कि RBI फिलहाल सतर्क स्थिति में है और हर कदम सोच-समझकर उठा रहा है.

रेपो रेट क्यों होता है अहम?

रेपो रेट वह दर होती है जिस पर RBI बैंकों को अल्पकालिक कर्ज देता है. जब यह दर बढ़ती है, तो बैंकों का उधार लेना महंगा होता है और वे अपने ग्राहकों को महंगे लोन देने लगते हैं. इससे मार्केट में मनी फ्लो घटता है और महंगाई पर नियंत्रण पाया जाता है. दूसरी ओर, जब इकोनॉमी को सहारे की जरूरत होती है, तो RBI रेपो रेट घटाकर मनी फ्लो को बढ़ाता है.

2025 के आर्थिक परिदृश्य की बात करें तो वैश्विक व्यापार की चुनौतियां अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं. लेकिन भारत के भीतर उपभोक्ता भावना और मांग में स्थिरता दिख रही है. यही कारण है कि RBI ने न तो दरें बढ़ाने का जोखिम उठाया, न ही अतिरिक्त राहत देने की जरूरत समझी.

अगली मीटिंग पर निगाहें टिकीं

RBI की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) हर दो महीने में बैठक करती है. इस वित्तीय वर्ष (2025-26) के लिए कुल 6 बैठकें निर्धारित की गई हैं, जिनमें पहली अप्रैल में और यह दूसरी अगस्त में आयोजित हुई. अगली समीक्षा बैठक अक्टूबर में प्रस्तावित है, और आर्थिक गतिविधियों, महंगाई दर और वैश्विक कारकों को देखते हुए अगली नीति पर बाजार की निगाहें टिकी रहेंगी.

विश्लेषण: राहत का यह दौर कब तक टिकेगा?

विशेषज्ञों का मानना है कि वर्तमान में ब्याज दरें स्थिर रखना एक रणनीतिक निर्णय है. यह वो ‘ठहराव’ हो सकता है जिसके बाद अर्थव्यवस्था में बड़ा झटका या बदलाव देखने को मिले. आने वाले महीनों में अगर महंगाई बढ़ती है, या वैश्विक संकट गहराता है, तो RBI ब्याज दरें फिर से बढ़ा सकता है. वहीं अगर आर्थिक स्थिरता बनी रही तो ये दरें और घट भी सकती हैं.