सत्यपाल सिंह राजपूत, रायपुर। कालड़ा हॉस्पिटल और गंगा डायग्नोस्टिक का संचालन NGT के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए किया जा रहा है. एसटीपी एवं ईटीपी ट्रीटमेंट प्लांट नहीं होने की वजह से संक्रमित पानी को सीधे नाला में छोड़ा जा रहा है. इस दूषित पानी के संपर्क में आकर लोगों के बीमार होने का खतरा बना हुआ है.
लालपुर में सौ बिस्तर का कालड़ा हॉस्पिटल संचालित है. स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही गैर ज़िम्मेदारी रवैये से हॉस्पिटल मनमानी पर उतारु है. अस्पताल प्रबंधन उपचार के बिना संक्रमित पानी को नाले में छोड़ रहा है. कालडा हॉस्पिटल के डायरेक्टर सुनील कालडा ने बताया कि हमारा सौ बिस्तर का अस्पताल है जहा बर्न, प्लास्टिक सर्जरी. एक्सिडेंट, हड्डी रोग, गायनी, अन्य बीमारियों का इलाज होता है. एक महीने में विभिन्न बीमारियों के अंदाज़न 300 से ज़्यादा ऑपरेशन होते है, तो वहीं OPD में एक दिन में 100 से ज़्यादा केस आते हैं. इसमें 15 से 20 क्रिटिकल केस होते हैं. लेकिन इन सब के बावजूद ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है. डॉ. कालडा ने वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी नोटिस का जवाब देने की बात कही, साथ ही दावा किया कि हमारे यहां छोटा ट्रीटमेंट प्लांट है, लेकिन इसे दिखाने के बात कहने पर टालमटोल करने लगे. अब सवाल ये उठता है कि अगर अस्पताल में ट्रीटमेंट प्लांट है, तो स्वास्थ्य विभाग ने नोटिस जारी क्यों किया है.
इसी बिल्डिंग में संचालित गंगा डायग्नोस्टिक एंड मेडिकल सेंटर के सीईओ बनमाली साहू ने बताया कि उनके लैब में एमआरआई, एक्स- रे ,सोनोग्राफी, ECG, टीएमटी आदी का टेस्ट होता है, और एक दिन में लगभग 400-500 मरीज़ आते हैं. बनमाली ने स्वीकार किया कि वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट नहीं होने की वजह से स्वास्थ्य विभाग से नोटिस मिला है. भवन में कालड़ा हॉस्पिटल भी है इसलिए दोनों के मिलकर STP यानी वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट बनाने की भी चर्चा हुई है. इसका प्रोजेक्ट बनते ही बहुत ही जल्द कार्य प्रारंभ कर दिया जाएगा. उन्होंने माना कि वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट को इग्नोर करना मतलब ख़तरा की ओर इशारा करता है.
क्या कहता है नियम
जैव चिकित्सा अपशिष्ठ प्रबंधन नियम 2016 के अनुसार निजी क्षेत्र के पंजीकृत क्लीनिक, अस्पताल, नर्सिंग होम, में बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट उचित व्यवस्था करना चाहे क्यों न एक बिस्तर का हो. इस नियम में सख्ती बरतते हुए एनजीटी ने इस नियम का कड़ाई से पालन करने का निर्देश दिया है. जिला चिकित्सा अधिकारी केआर सोनवानी ने बताया कि स्वास्थ्य संचालक ने नियम में ढिल दिया है कि छोटे अस्पतालों जहां पानी कम इस्तेमाल होता है, वहां हाईपो दवा में 24 घंटा तक डूबा कर रखना होगा, फिर नाला या नाली पानी में छोड़ सकते हैं. लेकिन जो बड़े अस्पताल है उन सबको एसटीपी एवं ईटीपी बनाना होगा इसके लिए नोटिस जारी कर दिया गया है.
निगम आयुक्त ने स्वास्थ्य विभाग पर डाली जिम्मेदारी
निगम आयुक्त शिव अनंत तायल ने इसके लिए जिम्मेदारी का बोझ स्वास्थ्य विभाग डालते हुए कहा कि हम सिर्फ नाला का पानी जहां से नदी मिलता है, उसके लिए जिम्मेदार वहां वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बना रहे हैं. डेढ़ से दो साल में बनाकर तैयार हो जाएगा. दरसअल, अस्पताल के पैथोलॉजी व एक्स-रे यूनिट से जहरीला पानी के साथ निकलने वाला मरीजों का मलमूत्र, बलगम, मवाद, खून, केमिकल नालों के जरिए तालाबों और नदी तक पहुंच रहा है, इसके संपर्क में आने वाले संक्रमित हो रहे हैं.ये हाल प्रदेश के सभी जिलों में यही हाल है.